लखनऊ: उत्तर प्रदेश की 13 विधान परिषद सीटों को लेकर बीजेपी और सपा ने अपने-अपने पत्ते खोल दिए हैं. बीजेपी ने बुधवार को 9 एमएलसी कैंडिडेट के नामों की घोषणा की है तो सपा के चारों उम्मीदवारों ने अपना नामांकन दाखिल कर दिया है. इसके साथ ही सपा के उन नेताओं के अरमानों पर पानी फिर गया है जो विधान परिषद पहुंचने की जुगत में थे. इमरान मसूद से लेकर ओम प्रकाश राजभर तक को सियासी झटका लगा है तो आजम खान के करीबी नेता को एमएलसी बनाकर उनकी नाराजगी को दूर करने की कवायद की है.
सपा ने एमएलसी के लिए चार प्रत्याशी उतारे
सपा प्रमुख अखिलेश यादव की मौजूदगी में पार्टी के चार उम्मीदवारों ने बुधवार को एमएलसी के लिए नामांकन पत्र दाखिल किया है. स्वामी प्रसाद मौर्य, जासमीर अंसारी, मुकुल यादव और शाहनवाज खान के नाम शामिल हैं. विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी छोड़कर सपा में आने वाले स्वामी प्रसाद और कांग्रेस छोड़कर आए जासमीर अंसारी को अखिलेश ने कैंडिडेट बनाया है.
अखिलेश यादव के लिए करहल सीट छोड़ने वाले पूर्व विधायक सोबरन सिंह यादव के बेटे मुकुल यादव को सपा ने विधान परिषद का प्रत्याशी बनाया है. इसके अलावा आजम खान के करीबी माने जाने वाले सहारनपुर के शाहनवाज खान शब्बू को भी अखिलेश ने विधान परिषद का प्रत्याशी बनाया है, जिसे आजम खान की नाराजगी को दूर करने के तहत देखा जा रहा है.
सपा ने यादव-मुस्लिम समीकरण का रखा ख्याल
अखिलेश ने विधान परिषद के जरिए अपने कोर वोटबैंक यादव-मुस्लिम का पूरा ख्याल रखा है. इसी के मद्देनजर एक यादव और दो मुस्लिम को एमएलसी कैंडिडेट बनाया गया तो स्वामी प्रसाद मौर्य के रूप में एक गैर-यादव ओबीसी को भी जगह देकर सामाजिक समीकरण को दुरुस्त करने का दांव चला गया है. हालांकि, सपा ने राज्यसभा और विधान परिषद दोनों ही चुनाव में दलित प्रतिनिधित्व नहीं दिया है.
इमरान मसूद को अखिलेश ने दिया बड़ा झटका
दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी छोड़कर सपा में आए स्वामी प्रसाद मौर्य और कांग्रेस छोड़कर पार्टी में आने वाले जासमीर अंसारी को एमएलसी का टिकट दिया गया, लेकिन कांग्रेस छोड़कर आए इमरान मसूद को न तो विधानसभा चुनाव में टिकट दिया था और न ही राज्यसभा व विधान परिषद में प्रत्याशी बनाया है. इतना ही नहीं, इमरान मसूद के साथ कांग्रेस छोड़कर सपा में आने वाले सहारनपुर देहात से विधायक रहे मसूद अख्तर को भी टिकट नहीं दिया गया.
आजम के करीबी को मिला सपा का टिकट
एमएलसी के लिए इमरान मसूद को प्रबल दावेदार माना जा रहा था, लेकिन झटका तब लगा जब उन्हें दरकिनार कर सहारनपुर के शाहनवाज खान शब्बू को एमएलसी का प्रत्याशी बना दिया गया. शाहनवाज खान के पिता सरफराज खान सपा सरकार में दर्जा प्राप्त मंत्री रह चुके हैं और इमरान मसूद के साथ छत्तीस के आंकड़े रहे हैं. इतना ही नहीं शाहनवाज को आजम खान का करीबी माना जाता है, जिसके चलते उनके नामांकन के दौरान आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान भी मौजूद थे.
ओम प्रकाश राजभर के अरमानों पर फिरा पानी
सपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ने वाले भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर भी एक एमएलसी सीट अपने बेटे अरविंद राजभर के लिए मांग रहे थे, लेकिन उनके भी अरमानों पर पानी फिर गया है. ऐसे में क्या ओम प्रकाश राजभर सपा के साथ अपनी दोस्ती को बरकरार रखेंगे या फिर नहीं, ये देखने वाली बात होगी. अखिलेश के सामने एक अनार और सौ बीमार वाली स्थिति रही, जिसके चलते सहयोगी दल ही नहीं बल्कि अपने किसी भी करीबी नेता को वो एमएलसी नहीं बना सके.
हार के बाद भी स्वामी प्रसाद को एमएलसी बनाया
अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य को एमएलसी बनाकर गैर-यादव ओबीसी वोटों को सियासी संदेश दिया है. खासकर 6 फीसदी वाले मौर्य, शाक्य, सैनी और कुशवाहा समाज को, क्योंकि स्वामी प्रसाद इसी समुदाय से आते हैं. स्वामी प्रसाद इस समाज के बड़े नेता माने जाते हैं, जिन्हें सियासी तवज्जो देकर अखिलेश यादव अपना सियासी समीकरण का दुरुस्त करना चाहते हैं. इसीलिए स्वामी प्रसाद को हार के बाद भी एमएलसी बनाया है.
मुस्लिमों में भी संतुलन बनाया
अखिलेश ने दो मुस्लिम एमएलसी कैंडिडेट देकर मुसलमानों के भीतर के जातीय समीकरण को दुरुस्त करने की कवायद की है, क्योंकि मुसलमानों ने भी अगड़ा और पिछड़ा जाति का मामला है. शाहनवाज खान मुस्लिमों के अशराफ तबके यानी उच्च जाति से आते हैं तो जासमीर अंसारी पसमांदा मुस्लिम यानी ओबीसी मुस्लिम हैं. बीजेपी की नजर मुसलमानों के ओबीसी वोटबैंक पर है, जिसके चलते योगी सरकार में दानिश आजाद अंसारी को मंत्री बनाया गया और अब एमएलसी का प्रत्याशी बनाया गया है. ऐसे में अखिलेश के लिए पसमांदा मुस्लिमों को प्रतिनिधित्व देना सियासी मजबूरी बन गई थी जबकि शाहनवाज खान को आजम खान के चलते उच्च सदन भेजा गया है.
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