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    Azadi Ka Amrit Mahotsav: यहां 1917 से ही हर रोज होती है तिरंगे की पूजा, फिर करते हैं अन्न-जल ग्रहण

  • August 14, 2022


    नई दिल्ली: देशभर में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. इस दौरान केंद्र सरकार ने हर घर तिरंगा अभियान की शुरुआत की है. लोग अपने घरों में तिरंगा झंडा फहरा रहे हैं. वहीं कई शहरों में तिरंगा यात्राएं निकाली जा रही हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि झारखंड में ‘टाना भगत’ नामक जनजातीय समुदाय के लोग पिछले 100 साल से भी ज्यादा वक्त से हर रोज अपने घरों में तिरंगा की पूजा करते हैं.

    तिरंगे की पूजा के बाद ही करते हैं अन्न-जल ग्रहण
    इनकी आस्था इतनी गहरी है कि वो हर सुबह तिरंगे की पूजा के बाद ही अन्न-जल ग्रहण करते हैं. देश 75 साल पहले आजाद हुआ, लेकिन यह समुदाय 1917 से ही तिरंगा को अपना सर्वोच्च प्रतीक और महात्मा गांधी को देवपुरुष के रूप में मानता-पूजता रहा है. इनके घर-आंगन में जो तिरंगा फहरता है, उसमें अशोक चक्र की जगह चरखा का चिह्न् अंकित होता है. आजादी के आंदोलन के दौरान तिरंगे का स्वरूप यही था. उसी दौर से इस समुदाय ने ‘हर घर तिरंगा, हर हाथ तिरंगा’ का मंत्र आत्मसात कर रखा है.

    खादी के कपड़े और गांधी टोपी है इनकी पहचान
    गांधी के आदर्शों की छाप इस समुदाय पर इतनी गहरी है कि आज भी अहिंसा इस समुदाय का जीवन मंत्र है. सरल और सात्विक जीवन शैली वाले इस समुदाय के लोग मांसाहार-शराब से दूर हैं. सफेद खादी के कपड़े और गांधी टोपी इनकी पहचान है.

    चरखे वाला तिरंगा हमारा है धर्म
    चतरा के सरैया गांव के रहने वाले बीगल टाना भगत कहते हैं कि चरखे वाला तिरंगा हमारा धर्म है. दूसरी कक्षा तक पढ़े शिवचरण टाना भगत कहते हैं कि हमलोग तिरंगे की पूजा से ही दिन की शुरूआत करते हैं. वो बताते हैं कि रोजाना घर के आंगन में बने पूजा धाम में तिरंगे की पूजा करने के बाद हमलोग शुद्ध शाकाहारी भोजन करते हैं.


    मांस-मदिरा से बनाई दूरी
    बता दें कि टाना भगत एक पंथ है, जिसकी शुरूआत जतरा उरांव ने 1914 में की थी. वह गुमला जिले के बिशुनपुर प्रखंड के चिंगारी नामक गांव के रहने वाले थे. जतरा उरांव ने आदिवासी समाज में पशु- बलि, मांस भक्षण, जीव हत्या, भूत-प्रेत के अंधविश्वास, शराब सेवन के विरुद्ध मुहिम शुरू की. उन्होंने समाज के सामने सात्विक जीवन का सूत्र रखा. अभियान असरदार रहा, जिन लोगों ने इस नई जीवन शैली को स्वीकार किया, उन्हें टाना भगत कहा जाने लगा. जतरा उरांव को भी जतरा टाना भगत के नाम से जाना जाने लगा. जब इस पंथ की शुरुआत हुई, उस वक्त ब्रिटिश हुकूमत का शोषण-अत्याचार भी चरम पर था. टाना भगत पंथ में शामिल हुए हजारों आदिवासियों ने ब्रिटिश हुकूमत के अलावा सामंतों, साहुकारों, मिशनरियों के खिलाफ आंदोलन किया था.

    टाना भगत ने किया ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ ऐलान
    जतरा टाना भगत ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ ऐलान किया- मालगुजारी नहीं देंगे, बेगारी नहीं करेंगे और टैक्स नहीं देंगे. अंग्रेज सरकार ने घबराकर जतरा उरांव को 1914 में गिरफ्तार कर लिया. उन्हें डेढ़ साल की सजा दी गई. जेल से छूटने के बाद उनका अचानक देहांत हो गया, लेकिन टाना भगत आंदोलन अपनी अहिंसक नीति के कारण महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन से जुड़ गया. जतरा टाना भगत ने अपने अनुयायियों को गुरु मंत्र दिया था कि किसी से मांग कर मत खाना और अपनी पहचान को तिरंगे के साथ अपनाना. इसके बाद ही यह तिरंगा टाना भगत पंथ का सर्वोच्च प्रतीक बन गया और वे गांधी को देवपुरुष की तरह मानने लगे. इनकी परंपरागत प्रार्थनाओं में गांधी का नाम आज तक शामिल है.

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