इंदौर। कल सोमवार तक 24 घण्टे में 11 मृतक के परिजनों में से एक ने अपने मृतक का देहदान किया तो वहीं बाकी परिजनों ने अपने मृतक के अंगदान मतलब नेत्रदान और त्वचा दान की। दान में मिले अंगों में 22 नेत्र, 5 मृतकों की त्वचा और 1 देह, यानी डेथ बॉडी शामिल है। यह मृत देह जहां डॉक्टर बनने वाले मेडिकल स्टूडेंट्स के काम आएगी, वहीं दान की गई आंखों से 22 नेत्रहीन दिव्यांगों को रोशनी मिल सकेगी। इसके अलावा जो लोग आगजनी में जल जाते हैं उनके इलाज में दान में मिली त्वचा का इस्तेमाल किया जा सकेगा ।
समाज में अंगदान के प्रति बढ़ रही जागरूकता का उदाहरण 24 घण्टों में शहर में दो जगह देखने को मिला। रीजनल पार्क मुक्तिधाम में अन्य मृतक का नेत्रदान होते देख वहां मौजूद अपनी मां का अंतिम संस्कार करने आए परिजनों ने तत्काल नेत्रदान का फार्म भरकर अपनी मृत मां के नेत्र दान किए। वहीं दूसरी तरफ पोस्टमार्टम के दौरान नेत्रदान होते देख वहां मौजूद अन्नपूर्णा टीआई संजय कामले ने भी अंगदान का फार्म भरा। इसके अलावा हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर रावत परिवार ने अपने परावैज्ञानिक पिता की मृत देह महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज को दान कर दी।
24 घण्टे में इनके हुए अंगदान
जिनके देहदान और अंगदान हुए उनके नाम हैं- डॉ. कीर्तिस्वरूप रावत (देहदान), मनोहरलाल चावला, सुरेंद्र चोपड़ा, रमाबाई कोठारे, नीलू हुंदलानी, ऋषभ कस्बे, शकुंतला लहाड़िया, लीला सचदेव, संपतलाल जैन, शांतिलाल कोचर, हरसिद्धि शर्मा।
अंगदान में मीडिया का सबसे बड़ा रोल
करीब 15 सालों में लगभग 4500 अंगदानदाताओं की आंखों से कार्निया और आई बॉल निकालने वाले मुस्कान संस्था के जीतू बगानी ने बताया कि शहरवासियों में अंगदान के प्रति दिनोदिन जागरूकता बढ़ती जा रही है। इसमें शहर के मीडिया की अहम और महत्वपूर्ण भूमिका है। मीडिया की वजह से इंदौर अंगदान के मामले बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है।
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