अग्निबाण एक्सपोज… मामला योजना 140 में 5 साल पहले बुलाए 98 भूखंडों के टेंडर का, हाईकोर्ट की रोक के चलते बोर्ड नहीं ले पाया था निर्णय… अब दबाव-प्रभाव के साथ ढूंढा जा रहा है तोड़
इंदौर, राजेश ज्वेल। प्राधिकरण (IDA) की इस वक्त की सबसे महंगी और चर्चित योजना 140 में 5 साल पुराने आवासीय भूखंडों के 98 टेंडरों पर बीते एक साल से प्राधिकरण निर्णय नहीं ले पा रहा है। जबकि 2 से 3 गुना कीमत इन भूखंडों की आज बढ़ चुकी है और 300 करोड़ से ज्यादा की राशि प्राधिकरण को इन भूखंडों से अतिरिक्त मिलेगी। बावजूद इसके एक बड़े भूखंड घोटाले (Land Scam) को अंजाम देने पर प्राधिकरण बोर्ड आमादा नजर आ रहा है, क्योंकि संकल्प पारित करने और कमेटी की रिपोर्ट आने के महीनों बाद भी इन टेंडरों को निरस्त कर नए टेंडर (Tender) बुलाने का निर्णय नहीं लिया जा रहा। उलटा दबाव-प्रभाव और आर्थिक प्रलोभनों के चलते इन पुराने टेंडरों को मंजूर करने की गली तलाशी जा रही है। हालांकि अफसरों का स्पष्ट कहना है कि किसी सूरत में इन 5 साल पुराने टेंडरों को मंजूरी नहीं दी जा सकती, क्योंकि हाईकोर्ट ने ही इन टेंडरों पर रोक लगाई थी। लिहाजा प्राधिकरण की कोई गलती भी नहीं है।
अग्निबाण (Agniban) पूर्व में भी इस खेल को उजागर कर चुका है। यही कारण है कि 24 दिसम्बर को हुई बोर्ड बैठक में जब इस प्रस्ताव को शामिल किया गया तो बोर्ड ने कोई निर्णय नहीं लिया, बल्कि संकल्प पारित कर एक कमेटी का गठन कर दिया गया। दरअसल इस पूरे मामले में असल कहानी यह है कि प्राधिकरण ने योजना 140 के आवासीय उपयोग के 192 भूखंडों के टेंडर 07.09.2018 को जारी किए थे और 20.09.2018 की अंतिम तिथि थी और अभय प्रशाल में 1040 टेंडरों को खोला गया और 122 टेंडर उस समय उच्च दर के प्राप्त हुए थे। जब ये टेंडर अनुशंसा समिति के समक्ष रखे जाना थे। मगर उसके पहले ही इंदौर हाईकोर्ट ने इन टेंडरों के व्ययन किए जाने पर रोक लगा दी और स्टे ऑर्ड के चलते प्राधिकरण ना तो इन टेंडरों को खोल पाया और ना ही कोई निर्णय लिया जा सका। उसके पश्चात 22 टेंडरदाताओं ने अपनी धरोहर राशि ईडी के जरिए वापस प्राप्त कर ली और बचे 98 टेंडरदाताओं ने हाईकोर्ट में भी इंटरविनर बनने के लिए पीटीशन दायर की। बाद में हाईकोर्ट ने 18.08.2022 को आदेश पारित करते हुए टेंडरों पर लगी रोक हटा ली। मगर तब तक इंदौर के रियल इस्टेट कारोबार में जो एकाएक तेजी आई उसके चलते योजना 140 के इन टेंडरों की कीमत 2 से 3 गुना तक बढ़ गई। प्राधिकरण ने औसतन 4 हजार से लेकर 8 हजार रुपए स्क्वेयर फीट तक की दर रखी थी और उसी मान से ये टेंडर प्राप्त हुए। मगर वर्तमान में 15 हजार रुपए या उससे अधिक दर योजना 140 में पहुंच चुकी है और प्राधिकरण ने खुद 300 करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि इन 98 भूखंडों को बेचने के बाद अधिक मिलने की बात कही है। यानी अगर प्राधिकरण 5 साल पुरानी दर पर इन 98 भूखंडों के टेंडरों को मंजूरी देता है तो उसे 300 करोड़ रुपए से अधिक की सीधी चपत पड़ेगी। हालांकि कई टेंडरदाता प्राधिकरण पर दबाव-प्रभाव बना रहे हैं और राजनीतिक के साथ आर्थिक प्रलोभनों का भी इस्तेमाल इस मामले में किया जा रहा है, क्योंकि हर टेंडरदाता पुरानी या थोड़ी सी बढ़ी हुई दर पर ही ये बेशकीमती भूखंड हासिल करना चाहता है। यही कारण है कि बोर्ड संकल्प पारित होने के 7 माह बाद भी कोई निर्णय नहीं लिया जा रहा है और ऐन-केन-प्रकारेण इन 98 भूखंडों के टेंडरों को मंजूर करने का दबाव राजनीतिक बोर्ड से लेकर अफसरों पर डाला जा रहा है। हालांकि अफसरों का दो टूक मानना है कि इन टेंडरों को मंजूर कर ही नहीं सकते। अन्यथा भविष्य में होने वाली जांच-पड़ताल में उलझना पड़ेगा।
प्राधिकरण बोर्ड 7 माह पहले ये संकल्प कर चुका है पारित
प्राधिकरण ने 24.12.2022 की अपनी बोर्ड बैठक में इन 98 भूखंडों के संबंध में प्रस्ताव पारित किया था, जिसके आधार पर संकल्प क्रमांक 156 पारित किया गया, जिसमें 5 बिन्दुओं पर समिति बनाकर परीक्षण करवाने का निर्णय लिया गया। सम्पदा, वरिष्ठ लेखा, विधि और योजना के कार्यपालन यंत्री की समिति बनाई गई। इसमें सभी वैधानिक पहलुओं पर विचार किया और प्राधिकरण के हित का विशेष ध्यान समिति को रखने के निर्देश बोर्ड ने दिए और विगत वर्षों में बाजार भाव में क्या वृद्धि हुई उसका भी आंकलन करने के साथ अन्य आवश्यक बिन्दुओं को समावेश करना कमेटी के जिम्मे किया गया। मजे की बात यह है कि उक्त कमेटी भी अपना प्रतिवेदन सौंप चुकी है, जिसमें स्पष्ट कहा गया कि चूंकि यह टेंडर सक्षम प्राधिकारी बोर्ड द्वारा मंजूर नहीं किए गए और यथास्थिति कायम रही और वर्तमान में बाजार मूल्य में वृद्धि अत्यधिक हो गई है। अत: पुन: टेंडर आमंत्रित किए जाना प्रस्तावित है।
चुनाव के चलते मचेगा हल्ला, लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू जांच भी तय
अभी विधानसभा चुनाव के चलते प्राधिकरण अगर इस भूखंड घोटाले को अंजाम देता है तो हल्ला मचना तय है। लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू में शिकायतें तो होंगी ही। वहीं मामला चूंकि 300 करोड़ से अधिक की बड़ी राशि का है। लिहाजा शासन स्तर पर भी इस मामले में कार्रवाई की जाएगी। प्राधिकरण बोर्ड द्वारा पारित संकल्प और समिति के प्रतिवेदन के आधार पर अब प्रदेश के महाधिवक्ता से विधिक राय भी मांगी गई है। हालांकि अभी तक यह राय प्राप्त नहीं हुई। मगर उसके पहले सुनियोजित तरीके से कुछ जूनियर वकीलों की सलाह अवश्य ली जाने लगी, जिसमें टेंडर निरस्त किए बिना नए सिरे से ऑफर दिए जाने या बढ़ी हुई राशि लेने की गली बताई जा रही है। हालांकि व्ययन नियमों में इस तरह के कोई प्रभाव हैं ही नहीं
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