इंदौर। हर सरकारी विभाग (Government departments) में वित्त विभाग (finance department) की ओर से ऑडिटर (Auditors) की नियुक्ति सिर्फ इसीलिए की जाती है कि वे टेंडर (Tender) शर्तों से लेकर किए जाने वाले काम, प्रस्तुत बिल सहित अन्य दस्तावेजों की बारीकी से जांच करने के बाद ही सरकारी खजाने (government treasury) से भुगतान करवाएं, मगर नगर निगम (municipal corporation) में जो फर्जी बिल महाघोटाला (fake bill scam) उजागर हुआ, उसमें सबसे बड़ी भूमिका ऑडिट विभाग की ही सामने आई। ठेकेदार और इंजीनियरों के साथ मिलीभगत कर यह भ्रष्ट ऑडिटर फटाफट बोगस फाइलें मंजूर करते रहे, जिसके चलते लेखा विभाग से फटाफट भुगतान होता रहा।
150 करोड़ रुपए तक पहुंचे नगर निगम के इस घोटाले का सिलसिलेवार खुलासा अग्निबाण द्वारा लगातार किया जा रहा है, जिसमें शुरुआत में ही ऑडिटरों की भूमिका स्पष्ट की गई थी कि कैसे उन्होंने विभाग में बिल प्रस्तुत होने से पहले ही भुगतान की मंजूरी दे डाली। निगमायुक्त शिवम वर्मा ने आयुक्त नगरीय प्रशासन और विभाग भोपाल को बिलों में कूटरचना कर भुगतान करवाने और उसमें आवासीय अंकेक्षण दल, यानी ऑडिटरों द्वारा किस तरह अनियमितताएं की गईं, उसका खुलासा किया गया था। इसके चलते पिछले दिनों वित्त विभाग ने इंदौर निगम में पदस्थ उपसंचालक ऑडिट समरसिंह परमार, वरिष्ठ ऑडिटर जगदीश ओहरिया और सहायक ऑडिटर रामेश्वर परमार सहित अन्य को निलंबित भी कर दिया था। उसके बाद पुलिस ने निगम के इंजीनियर अभय राठौर सहित अन्य ठेकेदारों और कर्मचारियों को भी आरोपी बनाकर गिरफ्तार किया। उसी कड़ी में कल एमजी रोड पुलिस ने दो वरिष्ठ ऑडिटरों को भी गिरफ्तार कर लिया, जिसमें समरसिंह और रामेश्वर को पुलिस आज कोर्ट में पेश कर उनका रिमांड भी मांगेगी। उसके पूर्व कल पुलिस ने नोटिस जारी कर पूछताछ के लिए बुलाया और फिर इनकी गिरफ्तारी कर ली। इस मामले में संयुक्त निदेशक अनिल गर्ग और वरिष्ठ ऑडिटर जगतसिंह पर भी इसी तरह की गाज गिर सकती है। हालांकि जगतसिंह ने अपने निलंबन आदेश के खिलाफ कोर्ट से स्टे प्राप्त कर लिया है। इन ऑडिटरों ने बिना बोगस फाइलों को जांचे-परखे उन पर चेक्ड एंड पास्ट फार पेमेंट की सील लगा दी, जिसके चलते लेखा विभाग ने ठेकेदार फर्मों के खातों में करोड़ों रुपए जमा करा दिए।
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