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    अतुल सुभाष की सुसाइट और कानून का दुरुपयोग, जानें क्या है धारा 498A?

  • December 12, 2024

    बेंगलुरु। बेंगलुरु(Bangalore) में 34 वर्षीय व्यक्ति की आत्महत्या के मामले (Cases of suicide)ने एक बार फिर घरेलू हिंसा और दहेज प्रताड़ना कानून (Domestic Violence and Dowry Harassment Laws)के कथित दुरुपयोग पर बहस छेड़ दी है। मृतक अतुल सुभाष के परिजनों का आरोप है कि उनकी पत्नी और ससुराल वालों की प्रताड़ना ने उन्हें आत्महत्या के लिए मजबूर किया। सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर आक्रोश देखने को मिल रहा है। लोग इस कानून के दुरुपयोग और इसके असली पीड़ितों के लिए न्याय के रास्ते अवरुद्ध होने पर सवाल उठा रहे हैं।

    498A के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी


    सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिसंबर यानी एक दिन पहले ही एक मामले की सुनवाई के दौरान 498A (अब भारतीय न्याय संहिता की धारा 85) के बढ़ते दुरुपयोग पर गंभीर चिंता जताई। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि बिना किसी ठोस सबूत के लगाए गए सामान्य आरोप कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग का कारण बन सकते हैं।

    शीर्ष अदालत ने कहा कि संशोधन के माध्यम से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में धारा 498ए को शामिल किए जाने का उद्देश्य महिला पर उसके पति और उसके परिजनों द्वारा की जाने वाली क्रूरता को रोकना है, ताकि राज्य द्वारा त्वरित हस्तक्षेप सुनिश्चित किया जा सके। न्यायालय ने कहा, “498A को महिलाओं को उनके पति और ससुराल पक्ष द्वारा किए गए अत्याचार से बचाने के लिए जोड़ा गया था। हालांकि, हाल के वर्षों में वैवाहिक विवादों में वृद्धि के साथ इस कानून का व्यक्तिगत बदला लेने के लिए दुरुपयोग बढ़ा है।”

    पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, हाल के वर्षों में देश भर में वैवाहिक विवादों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, साथ ही विवाह संस्था के भीतर कलह और तनाव भी बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप, आईपीसी की धारा 498ए (पत्नी के खिलाफ पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता) जैसे प्रावधानों का दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, ताकि पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध को बढ़ावा दिया जा सके।’’ न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक विवादों के दौरान अस्पष्ट और सामान्य आरोपों की यदि जांच नहीं की जाती है, तो कानूनी प्रक्रियाओं का दुरुपयोग होगा और पत्नी एवं उसके परिवार द्वारा दबाव डालने की रणनीति को बढ़ावा मिलेगा।

    इसने यह भी कहा, “हम एक पल के लिए भी यह नहीं कह रहे हैं कि आईपीसी की धारा 498ए के तहत क्रूरता झेलने वाली किसी भी महिला को चुप रहना चाहिए और शिकायत करने या कोई आपराधिक कार्यवाही शुरू करने से खुद को रोकना चाहिए।’’ पीठ ने कहा कि (उसका सिर्फ यह कहना है कि) इस तरह के मामलों को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि धारा 498ए को शामिल करने का उद्देश्य मुख्य रूप से दहेज के रूप में किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूतियों की अवैध मांग के कारण ससुराल में क्रूरता का शिकार होने वाली महिलाओं की सुरक्षा करना है।

    भारतीय न्याय संहिता में बदल गई धारा

    भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) के तहत धारा 85 और 86 को IPC की पुरानी धारा 498A और उसके स्पष्टीकरण के रूप में शामिल किया गया है। भारतीय न्याय संहिता की धारा 86 में “क्रूरता” की परिभाषा को विस्तारित किया गया है, जिसमें ऐसे आचरण को शामिल किया गया है जो संभावित रूप से किसी महिला को आत्महत्या की ओर ले जा सकता है या गंभीर चोट पहुंचा सकता है। धारा 85 में ऐसी क्रूरता करने वालों के लिए सजा की रूपरेखा दी गई है, जिसमें तीन साल तक की कैद और जुर्माना लगाना शामिल है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि इन धाराओं को वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए संशोधित करने की आवश्यकता है।

    आईपीसी की धारा 498A क्या है?

    भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A का उद्देश्य महिलाओं को उनके ससुराल में होने वाले अत्याचार और दहेज उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करना है। इस धारा के तहत, यदि किसी महिला को उसके पति या ससुराल पक्ष के लोगों द्वारा किसी भी प्रकार का मानसिक या शारीरिक उत्पीड़न सहना पड़ता है, तो यह अपराध की श्रेणी में आता है।

    अपराध का स्वरूप:

    पति या ससुराल पक्ष के लोग किसी महिला को इस हद तक परेशान करें कि वह आत्महत्या करने की कोशिश करे।
    महिला को गंभीर चोट या मानसिक तनाव पहुंचे।
    दहेज के लिए महिला का उत्पीड़न किया जाए।

    सजा का प्रावधान:

    दोषी पाए जाने पर तीन साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है।

    यह अपराध:

    गैर-जमानती है (Non-Bailable)।
    कॉग्निजेबल है (Cognizable), यानी पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है।
    गैर-समझौतापूर्ण है (Non-Compoundable), यानी इसमें समझौते की अनुमति नहीं है।

    शिकायत करने का अधिकार:

    महिला स्वयं या उसके परिवार के सदस्य शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।

    धारा 498A का उद्देश्य:

    इस धारा को 1983 में इसलिए जोड़ा गया ताकि महिलाओं के खिलाफ होने वाले दहेज उत्पीड़न और अन्य प्रकार के घरेलू हिंसा के मामलों में न्याय सुनिश्चित किया जा सके।

    विवाद और आलोचना:

    हालांकि यह धारा महिलाओं के लिए सुरक्षा का एक मजबूत माध्यम है, लेकिन कई बार इसके दुरुपयोग के मामले भी सामने आए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर निर्देश दिया है कि जांच और गिरफ्तारी के दौरान अतिरिक्त सतर्कता बरती जाए।

    अदालतों की पहले की चेतावनी

    सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय पहले भी 498A के दुरुपयोग को लेकर चेतावनी दे चुके हैं। सितंबर में न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा था कि यह देश के सबसे अधिक दुरुपयोग किए जाने वाले कानूनों में से एक है। उन्होंने एक मामले का उल्लेख किया जहां एक युवक को बिना विवाह संपन्न हुए 50 लाख रुपये का भुगतान करना पड़ा। बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस कानून के तहत बुजुर्ग और बीमार लोगों को बेवजह कानूनी झंझटों में घसीटे जाने पर चिंता व्यक्त की थी। कोर्ट ने सुझाव दिया था कि यदि इसे समझौता योग्य अपराध बना दिया जाए, तो कई मामलों को सौहार्दपूर्ण समाधान के माध्यम से सुलझाया जा सकता है।

    केरल उच्च न्यायालय ने मई 2023 में वैवाहिक विवादों में धारा 498ए का इस्तेमाल न्याय के लिए नहीं, बल्कि पतियों और उनके परिवारों के खिलाफ प्रतिशोध के लिए किए जाने पर चिंता व्यक्त की थी। जुलाई 2023 में, झारखंड उच्च न्यायालय ने स्वीकार किया कि धारा 498ए को महिलाओं को क्रूरता से बचाने के लिए पेश किया गया था, लेकिन अब इसका इस्तेमाल अक्सर प्रतिशोधात्मक उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

    कानून के दुरुपयोग के प्रभाव

    विशेषज्ञों और वकीलों का कहना है कि कानून के दुरुपयोग से वास्तविक पीड़ितों के लिए न्याय पाना कठिन हो जाता है। साथ ही यह वैवाहिक विवादों को और जटिल बना देता है। घटनाओं की बढ़ती संख्या के बीच, विधायिका से यह अपेक्षा की जा रही है कि वह इस कानून की व्यावहारिक वास्तविकताओं पर विचार करे और आवश्यक संशोधन करे ताकि इसका दुरुपयोग रोका जा सके और वास्तविक पीड़ितों को न्याय मिल सके।

    बेंगलुरु के एक इंजीनियर की आत्महत्या के मामले में पत्नी और उसके परिजनों के खिलाफ मामला दर्ज
    उत्तर प्रदेश निवासी सॉफ्टवेयर इंजीनियर की आत्महत्या के मामले में मंगलवार को पत्नी और उसके परिजनों के खिलाफ खुदकुशी के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया। पुलिस ने यह जानकारी दी। पुलिस ने बताया कि बेंगलुरु में एक निजी कंपनी में काम करने वाले अतुल सुभाष ने सोमवार को आत्महत्या की। पुलिस के अनुसार सुभाष ने 24 पन्नों का सुसाइड नोट छोड़ा है जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी, उसके रिश्तेदारों और उत्तर प्रदेश की एक न्यायाधीश पर उत्पीड़न का आरोप लगाया है। उसने बताया कि यह (खुदकुशी की) घटना मराठाहल्ली पुलिस थाना क्षेत्र के अंतर्गत मंजूनाथ लेआउट में हुई।

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