सियाराम पांडेय ‘शांत’
यह गौरव की बात है कि इस देश को नरेंद्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री मिला है जो न केवल लोगों की उम्मीदों की भाषा पढ़ते-समझते हैं बल्कि उन्हें तरक्की के अंतिम सोपान पर ले जाने के सपने भी देखते हैं। जो देश में चली आ रही वर्षों पुरानी जड़ता को तोड़ने का अगर प्रयास करते हैं तो बच्चों से लेकर बूढ़ों तक की सहूलियतों और मुस्कुराहटों का भी ख्याल रखते हैं। उनसे संवाद करते हैं और उनसे अपने मन की बात कहते हैं।
विदेशी खिलौने हमारे बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं, पर्यावरण प्रदूषण के कारक तो बनते हैं। ऐसे में अगर भारतीय खिलौनों के निर्माण करने और उसे दुनिया भर के बाजारों में भेजने का संकल्प व्यक्त किया जा रहा है तो इसमें बुरा क्या है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में टायकैथन-2021 के प्रतिभागियों से वर्चुअली संवाद किया। प्रतिभागियों से उनके गेम्स के बारे में जानकारी ली। उन्हें अपने गेम्स को और बेहतर बनाने की नसीहत दी। एक बच्ची से तो उन्होंने यहां तक पूछ लिया कि क्या वे अपने देश के लोगों के लिए गेम्स बनाएंगी? यह देश के बालमन को राष्ट्रहित से जोड़ने का प्रयास नहीं तो और क्या है? जिस देश का बालक सूर्य और चंद्रमा को पाने के लिए मचलता रहा हो, जहां के खिलौने दुनिया भर के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हों, उस देश की खिलौनों की जरूरत के लिए अगर विदेशों की ओर देखना पड़ रहा हो तो इसके लिए जिम्मेदार कौन है? इसे कुछ राजनीतिक दल और यहां तक चीनी उत्पाद बेचकर मुनाफा कमाने वाले कुछ व्यापारी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि सुधारने का प्रयास कह सकते हैं लेकिन सच तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह नवोन्मेष कर रहे हैं, स्वदेशी वस्तुओं के निर्माण की अलख जगा रहे हैं, वह काम तो बहुत पहले होना चाहिए था।
प्रधानमंत्री प्रतिभागियों को यह बताना भी नहीं भूले कि दुनिया का खिलौना बाजार करीब 100 बिलियन डॉलर का है। इसमें भारत की हिस्सेदारी सिर्फ डेढ़ बिलियन डॉलर के आसपास ही है। भारत को जरूरत के लगभग 80 प्रतिशत खिलौने आयात करने पड़ते हैं। फलत: देश के करोड़ों-अरबों रुपये बाहर जा रहे हैं। इस स्थिति में बदलाव जरूरी है। प्रधानमंत्री ने प्रतिभागियों से यह भी कहा कि खिलौने और खेल हमारी मानसिक शक्ति, सृजनात्मकता और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करते हैं, इसलिए इन विषयों पर भी बात होनी चाहिए। आज पूरी दुनिया भारत के सामर्थ्य को, कला-संस्कृति को, भारतीय समाज को ज्यादा बेहतर तरीके से जानना-समझना चाहती है। ऐसे में भारतीय खिलौने और खेल उद्योग बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। उन्होंने ऐसे खिलौनों के निर्माण पर जोर दिया है जिसमें भारत का मूल चिंतन नजर आए। पंचतंत्र की कहानियों से हमें यही सीख मिलती है तो फिर हमने अपने बच्चों को हिंसा और तनाव बढ़ाने वाले, उन्हें चिड़चिड़ा बनाने वाले विदेशी गेम्स के भरोसे क्यों छोड़ दिया, यह अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है।
प्रधानमंत्री का मानना है कि विगत 5-6 साल में हैकाथॉन को देश की समस्याओं के समाधान का एक बड़ा प्लेटफॉर्म बनाया गया है। इसके पीछे की सोच है- देश के सामर्थ्य को संगठित करना, उसे एक माध्यम देना। देश की चुनौतियों और समाधान से हमारे नौजवानों को सीधे जोड़ना। शिक्षा मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय सहित कई अन्य मंत्रालयों ने पांच जनवरी को टायकैथन-2021 की संयुक्त रूप से शुरुआत की थी। देश से लगभग 1.2 लाख प्रतिभागियों ने इसके लिए रजिस्ट्रेशन कराकर 17 हजार से अधिक नए विचार रखे। इनमें से 1,567 विचारों को 22 जून से 24 जून तक आयोजित होने वाले तीन दिवसीय आनलाइन टायकैथन ग्रैंड फिनाले के लिए चुना गया था।
7 फरवरी, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि यह खिलौना मेला व्यापारिक या आर्थिक कार्यक्रम भर ही नहीं है बल्कि देश की सदियों पुरानी खेल और उल्लास की संस्कृति को मजबूत करने की एक कड़ी है। किसी भी संस्कृति में जब खेल और खिलौने आस्था के केन्द्रों का हिस्सा बन जाएं, तो इसका अर्थ है कि वह समाज खेलों के विज्ञान को गहराई से समझता है। हमारे यहां खिलौने ऐसे बनाए जाते थे जो बच्चों के चहुंमुखी विकास में योगदान दें, उनमें तार्किक क्षमता का विकास करें। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में सभी माता-पिता से अपील की थी कि वे बच्चों की पढ़ाई की तरह ही उनके खेलों में भी शामिल हों।
उन्होंने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्ले-आधारित और गतिविधि-आधारित शिक्षा को शामिल करने की बात तो कही ही थी, यह भी कहा था कि खिलौनों के क्षेत्र में भारत के पास परंपरा भी है और तकनीकी भी है, भारत के पास विचारधारा भी हैं, और स्पर्धा भी है। उन्होंने दुनिया को पर्यावरण को मजबूती देने वाले खिलौनों की ओर वापस ले जाने की बात कही थी। उन्होंने देश के साफ्टवेयर इंजीनियरों से भारतीय कहानियों पर आधारित कंप्यूटर गेम्स बनाने की अपील भी की थी। आजाद भारत के इतिहास में शायद ही किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह की मार्मिक अपील देशवासियों से की हो।
उन्होंने खेल और खिलौनों के क्षेत्र में भी देश को आत्मनिर्भर बनाने और वोकल फॉर लोकल होने की बात कही थी लेकिन इसके विपरीत खिलौना व्यापारियों ने प्रचारित कुछ इस तरह किया कि वे मुकेश अंबानी की खिलौना कंपनी को आगे बढ़ाने और अन्य भारतीय खिलौना कंपनियों को नुकसान पहुंचाने की गरज से ऐसा कर रहे हैं। खिलौनों की गुणवत्ता जांच की अनिवार्यता को तो वे कमोवेश इसी रूप में देख रहे हैं।खिलौना उद्योग को 24 प्रमुख क्षेत्रों में दर्जा देने और राष्ट्रीय खिलौना कार्य योजना बनाने का निर्णय भी कुछ व्यापारियों को रास नहीं आया है।
टॉय एसोसिएशन ऑफ इंडिया की मानें तो भारत में हर साल चीन से करीब चार हजार करोड़ रुपये के खिलौने आयात किए जाते हैं। इन्हीं खिलौनों का बाजार मूल्य देखा जाए तो यह तीन गुना तक बढ़ जाता है। लिहाजा चीन से आए खिलौनों का कुल व्यापार करीब 12 हजार करोड़ रुपये का हो जाता है जबकि भारतीय खिलौनों की बात करें तो उनका कुल व्यापार एक हजार करोड़ रुपये का भी नहीं है। उसका मानना है कि खिलौना बाजार में चीन के वर्चस्व को कम करने के लिए मोदी सरकार ने विगत वर्षों में कुछ प्रयास किए हैं, उसका नुकसान भारतीय व्यापारियों को उठाना पड़ा है। ‘माइल स्टोन इपेक्स’ कंपनी के मालिक तो यहां तक कहते हैं कि 2017 में मोदी सरकार सर्टिफिकेशन के नए नियम लेकर आई। इसके चलते हम जैसे व्यापारियों पर हर उत्पाद पर एक लाख रुपए अतिरिक्त पड़ा। फिर सरकार ने चीन से आयात होने वाले खिलौनों पर इंपोर्ट ड्यूटी 20 फीसदी से बढ़ाकर सीधे 60 फीसदी कर दी। इससे भी हमें नुकसान हुआ क्योंकि जो माल हम चीन से लेते हैं उनका भारत में कोई विकल्प ही नहीं है। सवाल यह है कि जब हमें पता है कि हम कई मामलों में चीन पर आश्रित हैं तो अपने देश में आत्मनिर्भर होने और स्वदेशी वस्तुओं के निर्माण और उसके प्रोत्साहन की दिशा में काम क्यों नहीं हुआ?
व्यापारियों को लाभ होना चाहिए लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि यह सब देश की दुर्दशा, विवशता और दयनीयता की कीमत पर हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय स्वावलंबन और स्वाभिमान को लेकर जो आत्मनिर्भर भारत का संकल्प व्यक्त किया है, उसे पूरा करना हम सभी भारतवासियों का कर्तव्य है। कोशिश यह होनी चाहिए कि हम किसी भी विदेशी सामान का उपयोग तब तक न करें जब तक कि बहुत जरूरी न हो।
(लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)