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    बसपा से विमुख भाजपा से लगाव

  • May 03, 2022

    – डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

    उत्तर प्रदेश में भाजपा को सकारात्मक जनादेश प्राप्त हुआ था। यह मोदी व योगी द्वारा स्थापित सुशासन को सर्वजन का समर्थन था। यह कहना निराधार है कि भाजपा की सफलता में बसपा का योगदान था। बसपा सत्ता की चाभी अपने पास रखने के उद्देश्य से चुनाव लड़ रही थी। उसका आकलन था कि किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा। मायावती अपनी चिर परिचित शैली में ही चुनाव के दौरान सक्रिय हुईं। लेकिन मोदी-योगी सरकार की अवधि में हुए राजनीतिक बदलाव को समझने में विफल रहीं।

    उत्तर प्रदेश सपा-बसपा के दौर को बहुत पीछे छोड़ कर आगे निकल चुका है। चुनाव के माध्यम से उस दौर में लौटने की संभावना को नकार दिया गया है। कहा जा रहा है कि यूपी में भाजपा को बसपा के कारण सफलता मिली। वस्तुतः ऐसा कहने वाले पराजय पर आत्मचिंतन से बचना चाहते हैं। वस्तुतः 2014 लोकसभा चुनाव के समय से भाजपा की विजय यात्रा प्रारंभ हुई थी। वह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी प्रभावी दिखाई दी। नरेंद्र मोदी ने सबका साथ-सबका विकास व सबका विश्वास को सरकार का ध्येय मार्ग बनाया था। पांच वर्षों तक उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ ने इसी आधार पर सुशासन को स्थापित किया। इसमें दबंगों के लिए बुलडोजर और वंचितों, गरीबों, किसानों के लिए विकास था।

    डॉ. भीमराव आंबेडकर को सम्मान व दलितों के उत्थान संबंधी अभूतपूर्व कार्य किये गए। इससे बसपा के प्रतिबद्ध मतदाता भी उससे विमुख होने लगे। किसी भी दशा में इनका सपा की ओर देखना संभव नहीं था। सपा सरकार के समय को दलित वर्ग भूल नहीं सकता। गेस्ट हाउस कांड को मायावती ने गठबंधन के चलते भले नजरअंदाज कर दिया था, लेकिन इसका प्रतिकूल प्रभाव गांवों तक दिखाई दिया था। दशकों तक यह विभाजन बना रहा। ऐसे सभी लोगों को सपा-बसपा का पहले हुआ गठबंधन पसंद नहीं आया था। इस कारण भी अपने प्रतिबद्ध मतदाताओं पर बसपा की पकड़ कमजोर पड़ने लगी।

    इसके साथ ही वोट ट्रांसफर कराने की क्षमता भी जवाब देने लगी थी। कहा गया कि बसपा ने सपा को पराजित कराने के हिसाब से उम्मीदवार उतारे थे। इसमें भी एमवाई फैक्टर को ध्यान में रखा गया था। यदि इस फार्मूले में दम होता तो अन्य सभी सीटों पर बसपा का प्रभाव दिखना चाहिए था। ऐसा नहीं हुआ। बसपा के एकमात्र उम्मीदवार को सफलता मिली। कहा जा रहा है कि वह निर्दलीय लड़ते तब भी जीत जाते। ऐसा ही आकलन कांग्रेस के दो विजेताओं के विषय में भी किया जा रहा है। इस प्रसंग में दो तथ्य महत्वपूर्ण है। एक यह कि एमवाई समीकरण कहीं कमजोर या भ्रमित नहीं हुआ। उसने सुनियोजित रूप में सपा का समर्थन किया। इनका बसपा उम्मीदवारों पर विश्वास नहीं था।

    दूसरा यह कि अब मायावती में वोट ट्रांसफर कराने का पहले जैसा करिश्मा नहीं रहा। दलित मतदाताओं ने अपने हित को ध्यान में रखते हुए स्वेच्छा से भाजपा को समर्थन दिया। कल्याणकारी योजनाओं के लाभ का भी चुनाव पर असर पड़ा। योगी आदित्यनाथ ने केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं को प्राथमिकता के आधार पर क्रियान्वयन किया था। इसका परिणाम हुआ कि पचास योजनाओं में यूपी नम्बर वन रहा। करोड़ों की संख्या में जरूरतमंदों को इन योजनाओं का शत-प्रतिशत लाभ मिला। इसमें दलित व मुस्लिम परिवारों की बड़ी संख्या थी। अंतर यह रहा कि दलित वर्ग के मतदाताओं ने इन कार्यों के बदले भाजपा का समर्थन किया। किंतु मुस्लिम मतदाताओं ने सपा को ही पसंद किया।

    दलित मतदाताओं का यह निर्णय मायावती के निर्देश पर नहीं हुआ था। मायावती कभी यह नहीं चाहती होंगी उनकी पार्टी का सफाया हो जाये। उत्तर प्रदेश के बाहर बसपा का कोई अस्तित्व नहीं है। यूपी में भी वजूद समाप्त होने का मतलब मायावती जानती हैं। वह उत्तर प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन करना चाहती थी लेकिन दलित वर्ग के मिजाज को समझने में वह विफल रहीं। वह पहले जैसी गलतफहमी में थीं। पहले भी वह सत्ता मिलने के बाद ही लखनऊ में रहती थीं। विपक्ष में आते ही उनका निवास दिल्ली में हुआ करता था। चुनाव के समय ही वह रैली करने निकलती थीं। इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया था।

    केंद्र में मोदी और यूपी में योगी सरकार बनने के बाद बहुत बदलाव हुआ है। इस अवधि में भाजपा वंचितों-दलितों गरीबों की पहली पसंद बन चुकी है। भाजपा संगठन ने बूथस्तर पर योजनाओं का लाभ लेने वाले मतदाताओं का ब्यौरा जुटाया था। उनसे संपर्क का अभियान चलाया। मायावती यही सोचती रहीं कि दलित उनका साथ नहीं छोड़ेंगे। योगी आदित्यनाथ ने माफियाओं की अवैध सम्पत्ति पर बुलडोजर चलवाये। इससे भी निर्बल वर्ग का मनोबल बढ़ा। इतना ही नहीं योगी ने कहा कि जब्त की गई जमीन पर गरीबों के लिए मकान बनेंगे। जहां एक गरीब,एक दलित रहेगा। यही हमारा सामाजिक न्याय है। माफिया को जो साथ लेकर जाएगा उसको मालूम है कि उसके पीछे-पीछे बुलडोजर भी घूमता हुआ जाएगा।

    भाजपा सरकारों की योजनाएं बिना भेदभाव के लागू की गई। जिन पदों पर संविधान में कोई आरक्षण व्यवस्था लागू नहीं है, वहां पर भी नरेंद्र मोदी सरकार ने दलित और ओबीसी जातियों को पर्याप्त भागीदारी दी। भाजपा सरकारों ने दलितों और वंचितों को वोटबैंक नहीं माना। बल्कि शासन की योजनाएं सब तक पहुंचाईं। सरकार दलितों, वंचितों, आदिवासियों, पिछड़ों, वनवासियों और महिलाओं सहित हर तबके के लिए कार्य कर रही है। तीन करोड़ परिवारों के पास अपना घर नहीं था, सरकार ने ढाई करोड़ परिवारों को आवास दिए। दस करोड़ परिवारों के पास शौचालय नहीं था। स्वच्छ भारत मिशन के तहत सबको शौचालय दिए गए। तीन करोड़ परिवारों के पास बिजली कनेक्शन नहीं था, उन्हें सौभाग्य योजना के तहत बिजली कनेक्शन दिया गया। आठ करोड़ परिवारों के पास ईंधन का साधन नहीं था, उन्हें उज्जवला योजना के तहत रसोई गैस कनेक्शन दिया गया। आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान किया गया।

    अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए दी जाने वाली छात्रवृत्ति सपा सरकार ने नहीं दी। योगी सरकार ने छात्रवृत्ति देने की योजना को लागू किया। हर सरकारी कार्यालय में अनिवार्य रूप से बाबा साहब डॉ. आम्बेडकर की तस्वीर लगवाई गई। पहला चित्र मुख्यमंत्री आवास पर लगा। अनुसूचित जाति एक्ट को केन्द्र सरकार ने और प्रभावी बनाया। दलित अत्याचार के शिकार लोगों की सहायता राशि बढ़ाई गई। योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की कि सरकारी व ग्राम सभा की जमीन पर रह रहे दलित बेदखल नहीं होंगे। योगी को आंबेडकर महासभा ने मुख्यमंत्री को दलित मित्र उपाधि से सम्मानित किया था। चुनाव में भाजपा के संकल्प पत्र में दलित हित के वादे किए गए। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि इन सभी वादों को तय सीमा से पहले ही क्रियान्वित कर दिया जाएगा। इसके दृष्टिगत उन्होंने संबंधित विभागों को निर्देशित किया है। इन संकल्पों के अंतर्गत आवासहीन दलितों को पट्टी पर जमीन दी जाएगी। उस पर आवास भी सरकार बनवाएगी।

    दलितों को आवेदन के पन्द्रह दिन के भीतर जाति प्रमाण पत्र मिलेगा। लखनऊ में बाबा साहब का भव्य स्मारक, शोध केन्द्र का छह दिसम्बर को उद्घाटन किया जाएगा। महर्षि वाल्मीकि का चित्रकूट, संत रविदास का वाराणसी में सांस्कृतिक केन्द्र बनेगा। नरेंद्र मोदी सरकार ने नई दिल्ली में भव्य डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक का निर्माण पूरा किया। इसे संविधान की पुस्तक का स्वरूप दिया गया है। इस प्रकार यह इमारत अपने स्वरूप से ही बहुत कुछ कहती दिखाई देती है। संविधान की किताब रूप में यह भारत की यह पहली इमारत है। इसमें आधुनिक संग्रहालय बनाया गया है। जिसके माध्यम से डॉ. आंबेडकर के जीवन और कार्यों को दिखाया जाएगा।

    राष्ट्रीय स्मारक ही नहीं, नरेंद्र मोदी की सरकार ने डॉ. आंबेडकर से जुड़े पंचतीर्थो का भी भव्य निर्माण कराया है। इसमें महू स्थित उनके जन्मस्थान, नागपुर की दीक्षा भूमि, लंदन के स्मारक निवास, अलीपुर महानिर्वाण स्थली और मुम्बई की चयत्यभूमि शामिल है। उनके जन्मदिन चौदह अप्रैल को समरसता दिवस और छब्बीस नवंबर को संविधान दिवस घोषित किया गया। अनुसन्धान हेतु सौ छात्रों को लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और कोलंबिया विश्वविद्यालय भेजने का निर्णय लिया गया। इन दोनों संस्थानों में डॉ. आम्बेडकर ने अध्ययन किया था।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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