जनप्रतिनिधियों की अनदेखी पड़ी भारी, अनुबंध की शर्त के मुताबिक ठेकेदार कंपनी मांग सकती है हर्जाना
इंदौर, अमित जलधारी। किया-धरा कुछ नहीं…गिलास फोड़ा बारह आना..। लगता है कि शहर के जनप्रतिनिधि इस कहावत को चरितार्थ करने में जी-जान से जुटे हुए हैं। ताजा मामला एबी रोड पर प्रस्तावित एलिवेटेड ब्रिज (Proposed elevated bridge on B Road) का है, जिसे बीआरटीएस कॉरिडोर (शहरी एबी रोड) पर एमआर-9 चौराहे से नौलखा (BRTS Corridor (Urban AB Road) to MR-9 Crossing Naulakha) के बीच बनना है। दो साल पहले पीडब्ल्यूडी ने 306 करोड़ रुपए में इसका ठेका गुजरात की कंपनी को दिया था। कंपनी को दो साल में यह महत्वाकांक्षी ब्रिज बनाकर तैयार करना था, लेकिन जैसे ही कंपनी ने काम शुरू करने की तैयारी की, शहर के जनप्रतिनिधियों ने यह कहते हुए अड़ंगा लगा दिया कि जिस स्वरूप में एलिवेटेड ब्रिज बन रहा है, वह उन्हें मंजूर नहीं है, इसलिए नया प्रोजेक्ट बनाया जाएगा। तब से अब तक दो साल बीत गए और कंपनी काम नहीं कर पाई। कंपनी से हुए अनुबंध में यह प्रावधान भी है कि यदि पीडब्ल्यूडी ब्रिज का काम शुरू नहीं करवा पाएगा, तो उसे ब्रिज की लागत की 10 प्रतिशत राशि बतौर मुआवजा देना पड़ेगी। इसके मुताबिक अब ठेकेदार कंपनी चाहेगी, तो वह 30.60 करोड़ रुपए का हर्जाना पीडब्ल्यूडी से वसूल सकती है।
ब्रिज निर्माण की समयसीमा 17 फरवरी 2023 को खत्म हो चुकी है। हालांकि, अब तक तो कंपनी ने मुआवजे की मांग नहीं की है, लेकिन डर है कि जल्द वह इस अनिर्णय का मुआवजा मांग सकती है। सूत्रों की माने तो इस राशि के अलावा कंपनी अन्य खर्च भी पीडब्ल्यूडी से वसूलने का दावा ठोंक सकती है, यानी मुआवजा और ज्यादा हो सकता है। इधर, इंदौर से भोपाल तक विभाग के अफसर एक-दूसरे का मुंह तांक रहे हैं, क्योंकि यह लेटलतीफी विभाग की तरफ से नहीं, बल्कि जनप्रतिनिधियों की तरफ से की गई है। उन्हें समझ यह नहीं आ रहा कि यदि कंपनी ने इतनी राशि का लेने के लिए दावा ठोंक दिया, तो करेंगे क्या?
अग्निबाण ने महीनेभर पहले छापा था समाचार
अग्निबाण ने 7 फरवरी के अंक में यह समाचार प्रमुखता से छापा था कि एलिवेटेड ब्रिज में नया पेंच फंस गया है, क्योंकि मेट्रो के हिसाब से पिलर बनाएंगे, तो पीडब्ल्यूडी को टेंडर निरस्त करना पड़ेंगे। तब से अब तक न शहर के दूसरे अफसरों ने इसकी चिंता की, न जनप्रतिनिधियों ने। नतीजा यह हुआ कि अब 30 करोड़ रुपए से ज्यादा का हर्जाना पीडब्ल्यूडी यानी सरकार के गले पड़ गया है, जिससे राहत तभी मिल सकती है, जब ठेकेदार कंपनी हर्जाने का दावा नहीं ठोंके।
गडकरी ने इंदौर में कहा था निर्णय नहीं लेने वाले उन्हें पसंद नहीं
एक बार इंदौर प्रवास पर आए केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कार्यक्रम में यह कहा था कि उन्हें निर्णय नहीं लेने वाले अफसर पसंद नहीं हैं। किसी प्रोजेक्ट पर काम करना है, नहीं करना है, इसका निर्णय जरूरी है। हां या ना का फैसला नहीं होने से प्रोजेक्ट लटकते हैं। अब ऐसा ही इंदौर में हो रहा है और वो भी उनके विभाग द्वारा स्वीकृत योजना के साथ। प्रदेश के भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर और देवास जैसे शहरों में लंबे-लंबे एलिवेटेड ब्रिज बनाए जा रहे हैं, लेकिन सबसे बड़े शहर इंदौर में स्थिति इतनी दयनीय है कि जनप्रतिनिधि-अफसर निर्णय नहीं ले पा रहे हैं।
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