नई दिल्ली: साइबर क्राइम की पहली कड़ी सिम कार्ड होता है. फर्जी सिम पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने मॉडर्न टेक्नोलॉजी को हथियार बनाया है. आठ लाख से ज्यादा फर्जी सिम डिएक्टिवेट किए जा चुके हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और फेस रिकॉग्निशन इनेबल्ड टेलीकॉम सिम सब्सक्राइबर वैरिफिकेशन सिस्टम (ASTR) से एजेंसियां निगरानी कर रही हैं, ताकि लोगों के बैंक खाते, क्रेडिट कार्ड या पेमेंट वॉलैट पर साइबर अपराधी डाका ना डाल सके.
साइबर अपराध का गढ़ कहे जाने वाले जामताड़ा, मेवात और पुरुलिया से की जा रही हरेक संदेहास्पद कॉल पर एजेंसियां एएसटीआर सिस्टम से नजर रखे हुए हैं. इन्हीं साइबर क्राइम स्पॉट के 8 लाख से ज्यादा फर्जी सिम डिएक्टिवेट किए गए हैं, क्योंकि लेटेस्ट सिस्टम से एजेंसियां कुछ ही पलों में जान लेती हैं कि सिम स्वैप्ड या फर्जी तो नहीं हैं.
हरियाणा, मेवात में एएसटीआर पायलट प्रोजेक्ट के सफल होने के बाद पूरे देश के लिए इसे लागू किया गया है. जहां 16.70 लाख सिम डिटेल और सरकारी पहचान पत्रों के डीटेल का मिलान कराया गया. वहीं, 5 लाख के करीब सिम डिएक्टिवेट किए गए हैं.
कैसे काम करता है ASTR?
ट्राई के अनुसार देश में 114.36 करोड़ मोबाइल यूजर्स हैं. जहां से शिकायते आई हैं एएसटीआर में उन जगहों के सभी मोबाइल यूजर्स के सिम कार्ड के फोटो, फार्म, दस्तावेज फेशियल रिकग्निशन तकनीक से स्कैन किए गए हैं.
स्कैनिंग के बाद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए सिम डिटेल और सरकारी पहचान पत्रों के डिटेल का मिलान कराया जाता है. फोटो, जन्म-तिथि, पिता का नाम, पता, हस्ताक्षर के मिलान में मिली गड़बड़ी के आधार पर एजेंसियां आगे बढ़ती हैं. किसी सिम की हकीकत जानने की डिटेल मिलान प्रक्रिया में कुछ ही पल लगते हैं.
अगर किसी सिम से आपराधिक गतिविधि हुई तो तत्काल मिलान के साथ एजेंसियों को सभी दस्तावेजों की डिजिटल डिटेल जाता है. एजेंसियां संबंधित राज्यों की पुलिस को एक्टिव करती हैं. जांच होने तक सिम डिएक्टिव कर दिया जाता है. साथ ही कितने फोन में संबंधित सिम का इस्तेमाल किया गया है, यह जानकारी भी सिस्टम देता है.
तैयार हो रहा अपराधियों का डेटा
सभी सिम यूजर्स के सिम फार्म, दस्तावेज और फोटो सॉफ्टवेयर में दर्ज हैं. देशभर में अपराधियों का डेटा तैयार होने के बाद उनका डेटा इस सॉफ्टवेयर में मर्ज किया जाएगा. नया सिम लेने में वीडियो के जरिए और ऑनलाइन वेरिफिकेशन के लिए दिए गए दस्तावेज से एआई इनेबल्ड सॉफ्टवेयर और पुख्ता हुआ है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
साइबर क्राइम के खिलाफ बने कानून और तकनीकी मामलों के एक्सपर्ट पवन दुग्गल के अनुसार मान लीजिए कि आपके पास एक कॉल आया, जिसमें लालच देकर आपसे निवेश करने या फिर तुरंत पैसा ट्रांसफर करने की बात कही गई. आप ऑनलाइन नेशनल साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल (एनसीसीआरपी), पुलिस, लोकल साइबर यूनिट, बैंक साइबर यूनिट या लोकल पुलिस को इसके बारे में सूचना देते हैं.
सभी राज्यों, बैंकों तथा अन्य संस्थानों की साइबर यूनिट केंद्रीय गृह मंत्रालय की एनसीसीआरपी से लिंक्ड हैं. जैसे ही उन्हें इस बारे में सूचना मिलती है, सबसे पहले एएसटीआर की मदद से सिम की सच्चाई जानकर संबंधित सिम को डिएक्टिवेट किया जाता है. इसके बाद आगे की कार्रवाई शुरू की जाती है. कई मामलों में साइबर फ्रॉड होने से पहले ही सिम डिएक्टिवेट करने की सफलता भी एएसटीआर के जरिए सरकार को हासिल हुई है.
कानून की नजर से देखें तो सरकार द्वारा बिना सहमति के लोगों की डिटेल को एक जगह इकट्ठा किया जाना और सरकारी पहचान पत्रों से मिलान कराया जाना निजता के अधिकार का उल्लंघन है. शायद यही वजह है कि सरकार इस सफलता को सार्वजनिक नहीं कर रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक किसी भी व्यवस्था के लिए नियम-कानून होना जरूरी है. इस तकनीक का इस्तेमाल करने से पहले कानूनी आधार स्पष्ट होना चाहिए.
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