नई दिल्ली। सरकार के पसंदीदा अफसर होने के बावजूद राकेश अस्थाना (Rakesh Asthana) और वाईसी मोदी (YC Modi) को सीबीआई निदेशक (CBI Director) बनने की होड़ से महज एक नियम के कारण बाहर होना पड़ा। दरअसल निदेशक पद के लिए ऐसे अधिकारियों के नाम पर विचार नहीं करने का नियम है, जिनका सेवाकाल छह महीने से कम बचा हो।
फिलहाल सीमा सुरक्षा बल (Border Security Force) के महानिदेशक की जिम्मेदारी संभाल रहे अस्थाना 31 जुलाई और नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) के प्रमुख वाईसी मोदी 31 मई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं। दोनों ही गुजरात कैडर के आईपीएस (IPS) अधिकारी हैं और 1984, 85, 86 और 87 बैच के विचाराधीन 100 अधिकारियों में सबसे वरिष्ठ हैं।
वरिष्ठ सरकारी सूत्रों के मुताबिक, छह महीने की मियाद वाले नियम को इससे पहले ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई थी। अगर इस बार भी यह नियम नजरअंदाज कर इन दोनों में से किसी को निदेशक बनाया जाता तो दो साल की निश्चित अवधि वाले अन्य नियम के चलते उसकी सेवा 2024 तक चालू रहती।
लोकपाल कानून के मुताबिक, सीबीआई निदेशक के चुनाव के लिए गठित पैनल में पीएम, चीफ जस्टिस और विपक्षी दल के नेता होते हैं। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने भी इस नियम को मानने पर सीजेआई का समर्थन किया।
आखिर में इन दोनों को सूची से हटाकर समिति में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी सुबोध कुमार जायसवाल, डीडीकेआक चंद्रा और वीएसके कौमुदी के नाम पर ही विचार हुआ, जिसमें जायसवाल को नया निदेशक बनाने पर मुहर लग गई।
फरवरी से ‘कार्यवाहक’ कंधों पर थी सीबीआई कमान
अभी तक 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी प्रवीण सिन्हा कार्यवाहक निदेशक के तौर पर सीबीआई की जिम्मेदारी संभाल रहे थे। अतिरिक्त सीबीआई निदेशक सिन्हा को यह जिम्मेदारी फरवरी में पिछले सीबीआई निदेशक ऋषि कुमार शुक्ला के अपना दो साल का कार्यकाल पूरा कर सेवानिवृत्त हो जाने के बाद दी गई थी।
23 की उम्र में आईपीएस बन गए थे नए सीबीआई निदेशक
नए सीबीआई निदेशक सुबोध कुमार जायसवाल 1985 बैच में महाराष्ट्र कैडर के जरिये भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) से जुड़े थे। इस अहम सेवा में चयनित होने के समय उनकी उम्र महज 23 साल थी। जायसवाल उस समय बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई कर रहे थे, इसलिए उन्हें बेहतरीन प्रबंधक भी माना जाता है।
जायसवाल ने छोटी सी उम्र में संभाली नक्सलवाद की चुनौती
महज 23 साल की उम्र के बावजूद नौकरी के शुरुआती दिनों में ही सुबोध जायसवाल को नक्सलवाद की चुनौती झेलनी पड़ी। उन्हें नक्सलवाद के गढ़ कहे जाने वाले औरंगाबाद, उस्मानाबाद और गढ़चिरौली जैसे जिलों का पुलिस अधीक्षक बनाया गया।
तेलगी स्टांप घोटाला, मालेगांव ब्लास्ट की जांच का हिस्सा रहे
सुबोध अग्रवाल 20 हजार करोड़ के तेलगी स्टांप घोटाले की जांच करने वाली टीम का हिस्सा रहे। 2006 में मालेगांव ब्लास्ट की जांच के दौरान सुबोध एंटी टेररिज्म स्क्वाड के डीआईजी थे।
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