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इस वर्ष दो राज्य में विधानसभा चुनाव, नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल क्या मैसेज देना चाहते हैं?

January 02, 2025

नई दिल्ली. नववर्ष (New year) की शुरुआत के साथ ही दिल्ली (Delhi) और बिहार (Bihar) अब चुनावी साल (Election year) में दाखिल हो चुके हैं. राजधानी में अगले महीने विधानसभा चुनाव (Assembly elections) हो सकते हैं तो वहीं बिहार में अक्टूबर-नवंबर तक इलेक्शन होने की संभावना है. दोनों ही राज्यों में पार्टियों के बीच सियासी जंग जोरदार रहने वाली है क्योंकि दिल्ली में बीजेपी तीन दशक का वनवास खत्म कर सत्ता में आना चाहती है, वहीं बिहार में एनडीए के साथ खड़े नीतीश कुमार को कुर्सी से हटाना महागठबंधन के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा. दोनों ही राज्यों में दो चुनावी नारे काफी जोर पकड़ रहे हैं लेकिन क्या इन नारों से निकले संदेश को जनता का सपोर्ट मिलेगा?

बिहार का बाहुबली कौन?
बात अगर बिहार की हो तो नाम सिर्फ नीतीश कुमार का हो… हाल में जेडीयू के इस नारे से साफ है कि सत्ता में रहने का हर हुनर नीतीश कुमार बखूबी जानते हैं. पालाबदल पॉलिटिक्स के महारथी कहे जाने वाले नीतीश अब तक 8 बार सूबे के मुख्यमंत्री बन चुके हैं और इस बार फिर से ताल ठोकने के लिए तैयार हैं. बिहार में बीजेपी भले ही जेडीयू से बड़ी पार्टी हो लेकिन सीएम की कुर्सी पर नीतीश बाबू काबिज हैं. बीजेपी अकेले अपने दम पर सरकार बनाने में अब तक विफल रही है, इसीलिए पार्टी को जेडीयू, लोजपा (रामविलास) और HAM जैसी छोटी पार्टियों का सहारा लेना पड़ रहा है.


बिहार में हर चुनाव से पहले नीतीश के पाला बदलने की अटकलें लगाई जाती हैं और इस बार भी वैसा ही है. हाल में डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से अपने दम पर सरकार बनाने का आह्वान किया तो जवाब में विपक्षी दल आरजेडी ने भी नीतीश कुमार को फिर महागठबंधन का हिस्सा बनने का ऑफर दे डाला. ऐसे में जेडीयू सीटों के मामले में बीजेपी से भले ही उन्नीस हो लेकिन नीतीश कुमार हमेशा चुनाव में चौबीस ही रहेंगे. जेडीयू के इस नारे में भी नीतीश को बिहार का सबसे बड़ा नेता बताया गया है.

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उधर, आरजेडी की अगुवाई वाला महागठबंधन लगातार सत्ता पाने के लिए संघर्ष कर रहा है. तेजस्वी यादव BPSC छात्रों के मुद्दे से लेकर जातीय जनगणना और कानून व्यवस्था को लेकर एनडीए सरकार पर हमलावर हैं. चुनाव से पहले जेडीयू के पोस्टर से ये संदेश साफ है कि नीतीश के बगैर बिहार में सत्ता की सीढ़ी नहीं चढ़ी जा सकती. एनडीए का साथ हो या फिर महागठबंधन का, चुनाव में जिसके साथ नीतीश हैं, पलड़ा उसी का भारी है. लेकिन क्या जनता एक बार फिर एनडीए सरकार पर भरोसा जताएगी या फिर महागठबंधन को मौका देगी, इसका जवाब आने वाले कुछ महीनों में मिल जाएगा.

दिल्ली के दिल में क्या है?
ऐसे ही दिल्ली में एक दशक से अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी (AAP) सत्ता में है. आगे भी कुर्सी पर बने रहने के लिए केजरीवाल की ओर से महिलाओं, बुजुर्गों पर फोकस करके योजनाओं का ऐलान किया जा रहा है. दिल्ली में फ्रीबीज को लेकर AAP सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर रही है लेकिन केजरीवाल को यह फॉर्मूला काफी रास आया है. यही वजह है कि पार्टी ने 70 विधानसभा सीटों वाली दिल्ली में दो बार 60 से ज्यादा सीटें हासिल की हैं.

हाल में लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद अरविंद केजरीवाल को जेल भी जाना पड़ा. यही नहीं, मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन, संजय सिंह जैसे टॉप पार्टी लीडर भी जेल में रह चुके हैं. केजरीवाल ने जमानत पर बाहर आकर CM पद से इस्तीफा दिया और चुनाव में जाने से पहले आतिशी को दिल्ली का सीएम नियुक्त किया. लेकिन वह पहले ही साफ कर चुके हैं कि दिल्ली का चुनाव उनके ही नेतृत्व में लड़ा जाएगा. साथ ही सत्ता में वापसी होने पर मुख्यमंत्री भी केजरीवाल ही बनेंगे.

केजरीवाल की पार्टी की ओर से भी एक नया नारा दिया गया है, ‘नहीं बिगड़ने देंगे दिल्ली का हाल, फिर लाएंगे केजरीवाल’. आम आदमी पार्टी लगातार बीजेपी पर आरोप लगाती रही है कि अगर केजरीवाल सत्ता से गए तो बीजेपी फिर बिजली-पानी के दाम बढ़ा देगी, सब कुछ महंगा कर देगी. पार्टी जनता के सामने भी इन्हीं सब मुद्दों को लेकर जाती है और पार्टी का दावा है कि अगर बीजेपी सत्ता में आती है तो दिल्लीवालों को फ्री में मिलने वाली सभी सुविधाएं बंद कर दी जाएंगी. पार्टी का ये नारा भी इसी संदेश को जाहिर करता दिख रहा है.

उधर, बीजेपी सीधे तौर पर केजरीवाल और AAP पर भ्रष्टाचार समेत झूठे वादे करने का आरोप लगा रही है. साथ ही बीजेपी का आरोप है कि केजरीवाल पुराने वादों को पूरा करे बगैर चुनाव से पहले जनता से नए वादे कर रहे हैं जो कभी पूरे होने वाले नहीं हैं. केंद्र में 10 साल से सरकार होने के बाद भी दिल्ली में बीजेपी अब तक कमाल नहीं कर सकी है, हालांकि लोकसभा की सातों सीटों पर पार्टी काबिज है. लेकिन दिल्ली में बीजेपी पिछले तीन दशक से मुख्यमंत्री की कुर्सी पाने के लिए लड़ रही है. उधर कांग्रेस ने भी दिल्ली में महागठबंधन से अलग होकर AAP के खिलाफ खुली जंग छेड़ दी है. आगामी चुनाव में पार्टी के लिए AAP और बीजेपी से लड़ना बहुत बड़ी चुनौती साबित होने वाला है.

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