93 में विजयवर्गीय ने कांग्रेस के शेर के नाम से जाने जाने वाले सुरेश सेठ से यह सीट छीनकर लहराया था जीत का परचम
इन्दौर। श्रमिक क्षेत्र के नाम से जाने जाने वाला विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 2 (Assembly Constituency No. 2) अब नए इंदौर (Indore) के नाम से ज्यादा जाना जाता है। विजयवर्गीय के महापौर बनते ही इस क्षेत्र में सडक़ों का चौड़ीकरण हुआ और यहां व्यापार-व्यवसाय बढ़ा। ऐसा कोई क्षेत्र यहां नहीं है, जहां छोटे से बाजार से लेकर बड़े बाजार नहीं हंै और सबसे ज्यादा मॉल भी इसी क्षेत्र में हैं, जहां इन दिनों दिवाली की रौनक छाई है। राजनीतिक लिहाज से यह विधानसभा कभी कांग्रेस का गढ़ होती थी, लेकिन विजयवर्गीय ने इसे कांग्रेस के शेर कहे जाने वाले सुरेश सेठ (Suresh Seth) से ऐसा छीना की, इसके बाद वे खुद भी इस सीट को दूसरी बार रमेश मेंदोला से वापस लेने में नाकामयाब रहे।
श्रमिक क्षेत्र में किसी समय श्रमिक नेताओं का बोलबाला था और यह कांग्रेस का अभेद गढ़ माना जाता था, लेकिन 1993 में इस तरह से विजयवर्गीय ने यहां कृपाशंकर शुक्ला को हराया कि उसके बाद इस सीट पर कांग्रेस का कोई भी प्रत्याशी जीत नहीं सका। यह सीट सुरेश सेठ के कब्जे में थी। 1993, 1998 और 2003 में विजयवर्गीय लगातार विधायक रहे और 2008 के चुनाव में वे अपनी पूरी राजनीतिक विरासत को अपने नजदीकी रमेश मेंदोला को सौंपकर महू चले गए, जहां से लगातार दो बार विधायक रहे। अब यहां से मेंदोला 2008 से लगातार विधायक हैं। तीन बार वे विधायक रहे हैं और चौथी बार फिर उनके समर्थक उन्हें पिछली बार से ऐतिहासिक वोटों से जिताने का दावा कर रहे हैं। पिछली बार वे 71 हजार 11 वोटों से जीते थे, लेकिन 2013 के चुनाव के मुकाबले उनकी लीड कम हो गई थी। 2013 में वे 91 हजार 107 वोटों से जीते थे। हालांकि कार्यकर्ताओं की मेहनत ने इस क्षेत्र को अभेद किला बना दिया है, जो कांग्रेस के लिए भेदना मुश्किल है। फिर भी कांग्रेस के प्रत्याशी चिंटू चौकसे पूरी कोशिश में लगे हैं। चिंटू पिछली बार निगम चुनाव में कई सीटें कांग्रेस के पास आने से उत्साहित हैं।
तिवारी दो बार लगातार रहे विधायक
1962 में यह सीट अस्तित्व में आई थी और कांग्रेस ने अपना खाता खोला। पहली बार यहां गंगाराम तिवारी विधायक बने और 1967 में हुए चुनाव में लगातार वे दूसरी बार चुनाव जीते। इसके बाद कांग्रेस के केवल कन्हैयालाल यादव ही ऐसे रहे, जो दो बार लगातार विधायक चुने गए। यादव ने एक बार होमी दाजी को तो एक बार विष्णुप्रसाद शुक्ला को हराया था।
विजयवर्गीय यहां भी बने शुभांकर
भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भी इस सीट के लिए शुभांकर साबित हुए हैं। 4 नंबर सीट उनके जीतने के बाद आज तक कांग्रेस के हाथ में नहीं गई तो दो नंबर सीट के भी यही हाल है। तीन बार वे विधायक रहे और तीन बार से यहां रमेश मेंदोला विधायक हैं, वहीं महू में भी कांग्रेस के हाथ से छीनकर उन्होंने यह सीट भाजपा की झोली में डाली, जहां तीन बार से भाजपा विधायक हैं।
लगातार कम्युनिस्ट लड़ते रहे
किसी समय मजदूरों की राजनीति का गढ़ रही इस सीट पर कम्युनिस्ट कायम हैं, लेकिन कपड़ा मिलों के बंद होने के बाद इस क्षेत्र में कम्युनिस्टों की संख्या कम होती गई, लेकिन आज भी हर चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी अपने उम्मीदवार खड़े करती है। बीच-बीच में मजदूर गतिविधि का केन्द्र रहे मालवा मिल चौराहे पर इनकी सभाएं भी होती रहती हैं।
कई बड़े नेताओं के हारने और जीतने की गवाह बनी यह सीट
1998 में इस सीट से कॉमरेड होमी दाजी हारे। हालांकि वे 1972 में यहां से विधायक रहे। इसके बाद विष्णुप्रसाद शुक्ला बड़े भैया जैसे नेता भी यहां से दो बार चुनाव हार गए। उन्हें एक बार 1985 में कन्हैयालाल यादव और दूसरी बार 1990 में सुरेश सेठ ने हराया था। इसके बाद ही कृपाशंकर शुक्ला जैसे कांग्रेस के थाटी नेता 1993 में हारे तो। 1998 में रेखा गांधी को यहां से टिकट देकर कांग्रेस ने एक नया प्रयोग किया, लेकिन वे भी हार गईं। इसके साथ ही 2003 में अजय राठौर, 2013 में छोटू शुक्ला और पिछले चुनाव में मोहन सेंगर हारे। हालांकि सेंगर अब भाजपा में हैं।
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