नई दिल्ली: असम सरकार की ओर से ग्रामीण महिला उद्यमियों के लिए एक नई वित्तीय सहायता योजना तैयार की गई है. इस योजना के जरिए पीएम नरेंद्र मोदी के 2 करोड़ महिलाओं को ‘लखपति दीदी’ बनाने का लक्ष्य को हासिल करना है. हालांकि इस योजना के लाभ के लिए कुछ शर्तें भी लगाई गई हैं. योजना का लाभ उठाने के लिए बच्चों की संख्या सीमा तय कर दी गई है. ग्रामीण क्षेत्रों में सामान्य और ओबीसी कैटेगरी की महिलाएं यदि इस योजना का लाभ उठाना चाहती हैं तो उनके 3 से अधिक बच्चे नहीं होने चाहिए, इसी तरह अनुसूचित जनजाति (ST) और अनुसूचित जाति (SC) की महिलाओं के लिए यह सीमा 4 बच्चों की तय की गई है.
हालांकि, एमएमयूए योजना के लिए, ‘जनसंख्या मानदंडों’ में थोड़ी ढील दी गई है. मोरन, मोटोक और ‘चाय जनजातियां (Tea Tribes)’, जो खुद को एसटी में शामिल किए जाने की मांग कर रही हैं, उन पर भी 4 बच्चों की सीमा तय कर दी गई है. बच्चों की संख्या सीमा तय करने के साथ ही 2 अन्य शर्तें भी लगाई गई हैं. पहला, यदि उनके पास लड़कियां हैं, तो उनका स्कूल में नाम लिखवाना होगा. यदि लड़की बहुत छोटी है और स्कूल जाने की उम्र नहीं हुई है, तो महिलाओं को एक शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करना होगा कि बड़ी होने पर उसका नाम स्कूल में लिखवाया जाएगा. पिछले साल सरकार के वृक्षारोपण अभियान, अमृत बृक्ष आंदोलन के तहत उनकी ओर से जो पेड़ लगाए हैं, वे जीवित रहने चाहिए.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कल गुरुवार को मुख्यमंत्री महिला उद्यमिता अभियान (MMUA) की घोषणा करते हुए कहा कि धीरे-धीरे, राज्य सरकार की सभी लाभार्थी योजनाएं ऐसे ‘जनसंख्या मानदंडों’ से बंध जाएंगी. यह 2021 में उनकी उस घोषणा के अनुरूप है कि जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकार के पास विशिष्ट राज्य-वित्त पोषित योजनाओं के जरिए लाभ हासिल करने वालों के लिए 2 बच्चों की नीति होगी. लेकिन इस नई नीति से करीब 5 लाख महिलाओं को इस योजना से हाथ धोना पड़ सकता है.
मुख्यमंत्री महिला उद्यमिता अभियान का मकसद राज्य के ग्रामीण हिस्सों में स्वयं सहायता समूहों (Self-Help Groups) का हिस्सा बनीं महिलाओं को “ग्रामीण सूक्ष्म उद्यमियों (Rural Micro Entrepreneurs)” के रूप में विकसित करने में मदद करना है, साथ ही हर सदस्य की सलाना आय एक लाख रुपये तय की गई है.
राज्य की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार की ओर से नई व्यवस्था लागू किए जाने के बाद करीब 5 लाख महिलाओं को इस स्वयं सहायता ग्रुप से बाहर हो जाने की संभावना जताई जा रही है. ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर जारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य में कुल 3,43,558 स्वयं सहायता ग्रुप (SHG) हैं, जिसमें कुल 38,45,193 लोग शामिल हैं. कैटेगरी के आधार पर देखा जाए तो अनुसूचित जाति के 3,76,682 लोग इसमें शामिल हैं जबकि अनुसूचित जनजाति के 6,86,478 लोग इससे जुड़े हुए हैं. अल्पसंख्यक वर्ग से 11,83,513 लोग इस समूह का हिस्सा हैं. शेष 15,98,520 लोग अन्य कैटेगरी (सामान्य और ओबीसी) से आते हैं. अब माना जा रहा है कि नई व्यवस्था के अमल में आने की वजह से कम से कम 5 लाख महिलाएं इस योजना से बाहर हो जाएंगी.
सीएम सरमा ने बच्चों को लेकर तय की गई सीमा के बारे में कहा कि इस योजना में बच्चों की संख्या को जोड़ने के पीछे का मकसद यह है कि महिलाएं अपना बिजनेस स्थापित करने के लिए धन का सही तरीक से उपयोग करें. अगर एक महिला के चार बच्चे हैं, तो उसे पैसे खर्च करने का समय कहां मिलेगा, बिजनेस करने का समय कहां मिलेगा? वह बच्चों की पढ़ाई को लेकर लगातार व्यस्त रहेगी.
राज्य सरकार की ओर से करीब 145 व्यावसायिक योजनाएं बनाई गई हैं, जिनमें से वे किसी एक का चयन कर अनुदान का लाभ उठा सकते हैं. यदि वे जरुरी पात्रता मानदंडों को पूरा करती हैं तो शुरुआती साल में सरकार उन्हें 10,000 रुपये देगी. यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे इस धनराशि का उपयोग करती हैं या नहीं, अगले दो सालों में उन्हें सरकार द्वारा 12,500 रुपये और बैंक से 12,500 रुपये का लोन दिया जाएगा.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved