वाराणसी (Varanasi) । भारतीय पुरातत्व सवेक्षण (Archaeological Survey of India) के वैज्ञानिक सर्वे में मौजूदा ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi) की पश्चिमी दीवार के उत्तरी भाग और उत्तर-पश्चिमी भाग में चार से 15 सेमी तक के विभिन्न आकार के त्रिशूल के प्रतीक (symbol of trishul) मिले हैं। दीवार की सतह पर भी त्रिशूल के प्रतीक हैं। कुछ चिह्नों का झुकाव उत्तर से दक्षिण और कुछ का दक्षिण से उत्तर की ओर है। कुछ ऊपर या नीचे की ओर इशारा कर रहे हैं। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी कक्ष की बाहरी दीवार में विभिन्न प्रतीक हैं। पश्चिम की दीवार पर विभिन्न दिशाओं और आकृतियों में कई आकार के त्रिशूल हैं। दोहरी गांठ और स्वस्तिक के निशान भी हैं। दोहरी गांठें अधिक संख्या में हैं। पश्चिमी कक्ष के उत्तर की ओर केवल स्वास्तिक चिह्न हैं। पश्चिमी दीवार के दक्षिण-पश्चिम भाग की बाहरी दीवार पर विभिन्न आकारों के स्वास्तिक और दोहरी गांठ के प्रतीक बने हैं। पश्चिम के हॉल के पश्चिमी प्रवेश द्वार के पत्थर की परत पर भी स्वास्तिक और त्रिशूल के निशान हैं।
सेंट्रल हॉल के अंदरूनी हिस्से पर भी यही निशान हैं लेकिन सतह पर सिंथेटिक पेंट की मोटी परत के कारण इन्हें पहचानना मुश्किल है। निशान गलियारे और तहखानों में भी हैं। रिपोर्ट में स्वास्तिक को लेकर बताया गया कि यह दुनिया के सबसे प्राचीन प्रतीकों में एक है।
एएसआई रिपोर्ट में कहा गया है कि प्राचीन मंदिर की दीवार से मौजूदा संरचना के किनारे के पत्थरों को लोहे के क्लैंप के जरिये बांधा गया है। सर्वे रिपोर्ट में बताया है कि मौजूदा ढांचे में हर तरफ के तीन क्लैंप को भी जांचा गया। कुछ क्लैंप में जंग लगी है। पश्चिमी दीवार और मौजूदा संरचना के किनारे के पत्थरों को डबल क्लैंप के साथ पिन किया गया है। दक्षिण की ओर के पत्थरों को सिंगल क्लैंप के साथ पिन किया गया है। पश्चिमी दीवार और मौजूदा गुंबद के चूने का भी परीक्षण किया गया है। पश्चिमी दीवार की तुलना में गुंबद के चूने में कैल्शियम अधिक है। दक्षिणी तहखाने में कैल्शियम और सल्फर की मात्रा वाले गारे की अधिकता मिली है।
इस्तेमाल की गईं ईंटों का अध्ययन
मस्जिद के दोनों गुबदों, दक्षिणी और उत्तरी तहखाना, बाहरी खंडहर से प्राप्त सामग्रियों में मिली ईंटों पर रिपोर्ट दी है।
वैज्ञानिक जांच को सुप्रीम कोर्ट में आज अर्जी
ज्ञानवापी परिसर स्थित वुजूखाने के भी वैज्ञानिक सर्वेक्षण के लिए हिन्दू पक्ष सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में प्रार्थनापत्र देगा। वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णुशंकर जैन ने बताया कि हाईकोर्ट के आदेश पर लगी रोक वाली याचिका के तहत प्रार्थना पत्र देंगे। बताया कि अदालत से एएसआई सर्वेक्षण की मांग की जाएगी। अधिवक्ता ने बताया कि ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वेक्षण के दौरान 14 अक्तूबर 2022 को जिला जज की अदालत ने वुजूखाने के सर्वेक्षण से इनकार कर दिया था। जिला जज के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।
व्याला को काटकर फूल-कली शृंखला बनाई गई
एएसआई की रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि पिलर और स्तंभों पर अंकित व्याला (हिंदू पौराणिक प्राणी) की कई आकृतियों को न केवल काटा गया है, बल्कि उस पर फूल-कली की शृंखला बनाकर दिग्भ्रमित करने की कोशिश भी की गई है। पश्चिमी कक्ष में दो स्तंभों पर व्याला की आकृति को काट कर पत्थर को कमल की कलियों के रूप में फिर से उकेरा गया था। व्याला की आकृति वाले कोने को संशोधित कर उसे दोहरावदार फूल-कली शृंखला से बदल दिया गया। यह स्पष्ट समझ में आता है कि पूर्व की मूल आकृति और बाद में उकेरी गई आकृति में भिन्नता है। मौजूदा संरचना में पूर्व के निर्माण के स्तंभों और भित्तिस्तंभों का इस्तेमाल किया गया है। इसमें यह भी प्रतीत हो रहा है कि इन स्तंभों और भित्तिस्तंभों के कुछ हिस्सों को बाद में जल्दबाजी में बनाया गया है। पूर्वी गलियारे के स्तंभों और भित्ति स्तंभों के निरीक्षण सेपता चला है कि कई स्थानों पर कमल पदक के पास उकेरी गई कलियां आकार और प्रकार के साथ उनको अंतिम रूप देने में जल्दबाजी की गई है।
राजमिस्त्री की ओर से लगाए निशान भी मिले
मस्जिद के विभिन्न भागों पर कई प्रकार के प्रतीक और चिह्न, छोटे लेख मिले हैं। एएसआई सर्वे की टीम के अनुसार ये किसी शिल्पकार, राजमिस्त्री के पेशेवर चिह्न हो सकते हैं। इन निशानों को राजमिस्त्रत्त्ी के निशान के नाम से जाना जाता है। प्राचीन इमारतों और संरचनाओं में इस्तेमाल पत्थर पर प्रतीक चिह्न या अक्षर निर्माण से संबंधित हो सकते हैं। पत्थर के महत्वपूर्ण टुकड़ों की सही स्थापना सुनिश्चित करने के लिए ये चिह्न हो सकते हैं। ये निशान छेनी से बनाए गये हैं।
कुछ मामलों में यह भी देखा गया कि निशान पिछले वाले प्रतीक को खराब करने के बाद लगाए गए हैं। एक और संभावना जताई गई है कि मजदूरी प्रायोजनों के लिए मजदूर वर्ग की ओर से किये गये कार्यों को सत्यापित करने के लिए अंकित किये गये हों।
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