बेंगलुरु: चंद्रयान-3 का रोवर प्रज्ञान, जिसके पिछले पहियों पर भारत का राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ और इसरो का लोगो बना हुआ है, चंद्रमा की धरती पर इन दोनों की ‘स्पष्ट’ छाप छोड़ने में असमर्थ रहा है. वैज्ञानिकों की मानें तो यह एक अच्छा संकेत है. यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में मिट्टी के गुणों की एक नई समझ देता है. चांद का दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र भविष्य के कई मिशनों का साक्षी बनने वाला है, क्योंकि यहां पानी होने की संभावना है. मून के साउथ पोल रीजन की मिट्टी के बारे में नई जानकारी, चंद्रमा पर जीवन की उपस्थिति की परिकल्पना करने वाले मिशनों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकती है.
द टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट में इसरो के चेयरमैन एस सोमनाथ के हवाले से इसके बारे में बताया गया है. एस सोमनाथ कहते हैं, ‘अशोक स्तंभ और लोगो के अस्पष्ट छाप ने एक नई समझ दी है. हम पहले से ही जानते हैं कि यह (मिट्टी) अलग है, लेकिन हमें यह पता लगाना होगा कि इसे अलग क्या बना रहा है. चंद्रमा की मिट्टी धूल भरी नहीं, बल्कि ढेलेदार है. इसका मतलब है कि कोई चीज मिट्टी को बांध रही है, हमें यह अध्ययन करने की जरूरत है कि मिट्टी को क्या बांध रहा है.’
छाप छोड़ने वाली उभरी हुई छवियों का परीक्षण इसरो सैटेलाइट इंटीग्रेशन एंड टेस्ट एस्टैब्लिशमेंट (Isite) द्वारा बनाए गए लूनर स्वाइल सिमुलेंट (LSS) पर किया गया था, जहां इसने स्पष्ट छाप छोड़ी थी. एलएसएस को अमेरिका के अपोलो प्रोग्राम द्वारा एकत्र किए गए चंद्रमा की मिट्टी के नमूनों से मेल खाने के लिए विकसित किया गया था. मिट्टी का यह सैम्पल चंद्रमा के भूमध्यरेखीय क्षेत्र से लिए गया था. जबकि इसरो का चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के करीब लैंड हुआ है. चांद के अलग-अलग भागों में मिट्टी भी अलग है.
चंद्रमा पर मिले ढीली मिट्टी के संकेत
रिपोर्ट में फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (PRL) के निदेशक अनिल भारद्वाज के हवाले से कहा गया है, ‘हम बहुत स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि रोवर मूवमेंट के कारण चंद्रमा की सतह पर लीक बन रही है. लैंडिंग साइट और रोवर मूवमेंट साइट के आसपास की तस्वीरों से पता चलता है कि रोवर के मूवमेंट से बनी लीक लगभग एक सेंटीमीटर गहरी है. लैंडर के लेग (विक्रम लैंडर के चार पैर) चंद्र सतह के अंदर धंसे जा रहे हैं, जो ढीली मिट्टी का संकेत दे रहे हैं. जैसे-जैसे गहराई में जाएंगे, मिट्टी सघन होती जाएगी.’
नींद से कब जागेंगे प्रज्ञान और विक्रम?
विक्रम और प्रज्ञान के स्लीप मोड से जागने की बात पर इसरो चेयरमैन एस. सोमनाथ ने कहा, ‘अब तक कॉन्टैक्ट स्थापित नहीं हो सका है. लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि अब प्रज्ञान और विक्रम काम नहीं करेंगे. हम पूरे चंद्र दिवस (पृथ्वी के 14 दिन) तक इंतजार करेंगे और कॉन्टैक्ट स्थापित करने की कोशिश करते रहेंगे. इस दौरान चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लगातार सूर्य की रोशनी पड़ेगी और तापमान बढ़ता ही जाएगा. इससे लैंडर और प्रज्ञान के उपकरणों भी गर्म होंगे. तो ये दोनों 14वें दिन भी नींद से जाग सकते हैं. हमारे पास पूरे 14 दिन कोशिश करते रहने और इंतजार करने के अलावा कॉन्टैक्ट स्थापित करने का और कोई दूसरा तरीका नहीं है.’
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