भोपाल। राजधानी सहित प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में बारिश का दौर थम गया है। मौसम विज्ञानियों के मुताबिक अभी एक सप्ताह तक बरसात होने के आसार कम ही हैं। मानसून के देश भर में छाने के बाद अचानक जुलाई माह में मानसून ब्रेक की स्थिति बनने से मौसम विज्ञानी भी हतप्रभ हैं। उनका कहना है कि अमूमन मानसून की बरसात थमने का दौर अगस्त माह में ही देखने में आता है, लेकिन जुलाई माह में इस तरह की स्थिति लगातार दूसरे वर्ष बनी है। पिछले वर्ष 13 जुलाई से वर्षा का दौर थम गया था। बुधवार सुबह तक प्रदेश में इस सीजन की कुल 268.2 मिमी. बरसात हुई है। जो सामान्य बरसात (193.9 मिमी.) से 38 फीसद अधिक है।
मौसम विज्ञान केंद्र के पूर्व निदेशक डॉ. डीपी दुबे ने बताया कि उड़ीसा और आध्र के तटीय क्षेत्र में बना कम दबाव का क्षेत्र झारखंड पर स्थिर रहकर कमजोर पड़ गया है। उसकी दिशा भी उत्तर भारत की तरफ हो गई है। इससे मप्र में अपेक्षाकृत बरसात नहीं हुई। दूसरा अरब सागर से आगे बढ़कर कच्छ के आसपास बना कम दबाव का क्षेत्र भी दूसरी दिशा में कराची और अरब देशों की तरफ बढ़ रहा है। इसके अतिरिक्त मानसून द्रोणिका भी हिमालय के तराई क्षेत्र की तरफ खिसकने लगी है। साथ ही वर्तमान में मप्र में भी कोई वेदर सिस्टम नहीं है। इस तरह की स्थिति को मानसून ब्रेक माना जाता है। डॉ. दुबे के मुताबिक मानसून ब्रेक की स्थिति अक्सर अगस्त माह में बनती है। जलवायु परिवर्तन में भी इसकी एक वजह हो सकती है।
15 जुलाई के बाद बारिश की उम्मीद
वरिष्ठ मौसम विज्ञानी अजय शुक्ला ने बताया कि 13 जुलाई के आसपास बंगाल की खाड़ी में मानसूनी हलचल शुरू होने के संकेत मिल रहे हैं। यदि वहां कम दबाव का क्षेत्र बनकर आगे बढ़ता है तो 15 जुलाई से मप्र में एक बार फिर बरसात का दौर शुरू हो सकता है। हालांकि, वर्तमान में हवाओं का रुख दक्षिण-पश्चिमी बना हुआ है। इस वजह से वातावरण में कुछ नमी आ रही है। इससे तापमान बढऩे पर स्थानीय स्तर पर गरज-चमक के साथ बौछारें भी पड़ सकती हैं।
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