ब्‍लॉगर

अरविंद केजरीवाल और धार्मिकता का पाखंड

– दिनेश प्रताप सिंह

एक बात तय हो गई कि अब कोई भी पार्टी देश में हिंदू विरोधी भावनाओं को उभारकर राजनीति नहीं कर सकती। आजादी के 70 साल बाद ही सही, भारत के गैर भाजपा राजनीतिक दलों को अहसास हो गया कि तुष्टीकरण के जरिए सत्ता प्राप्त करने का रास्ता बंद हो गया। इसके लिए सभी को आरएसएस और भाजपा का आभारी होना चाहिए कि दशकों तक पोषित छद्म सेकुलरिज्म की नीति अब और नहीं चलेगी। लेकिन यह मानना भी सही नहीं होगा कि गैर भाजपा दलों का कोई हृदय परिवर्तन हो गया है। उनका मन नहीं बदला, केवल उनकी चाल बदल गई। वह भी इस कारण कि जनसंघ की स्थापना के साथ ही जिस राष्ट्रवाद की अवधारणा और हिंदू हितों की कार्ययोजना लेकर जो लोग चलते रहे, समाज और देश को लगातार जागृत करते रहे, उनकी बात अब जनता सुनने लगी है। उनके पक्ष में जनता खुलकर मतदान करने लगी है।

हिंदू विरोधी विचारों को आगे बढ़ाकर सत्ता की राजनीति करने वाले अब धीरे-धीरे देशभर की सत्ता से बाहर होने लगे हैं। इसलिए मजबूरन वे हिंदू और हिंदू विश्वास के प्रतीकों की बात करने लगे हैं। ताजा उदाहरण दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बदले अंदाज का है। दिल्ली सरकार के बजट को राष्ट्रवादी बजट और दिल्ली में रामराज्य की अवधारणा के साथ सरकार चलाने का दावा केवल राजनीतिक मजबूरी है।

विधानसभा के बजट सत्र में उप राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘ मैं भगवान राम और हनुमान का भक्त हूं। हम दिल्ली की जनता की सेवा के लिए रामराज्य की संकल्पना से प्रेरित 10 सिद्धांतों का पालन कर रहे हैं।’’ उनमें खाद्य पदार्थ मुहैया कराना, चिकित्सा देखभाल, बिजली, पानी उपलब्ध कराना, रोजगार, आवास, महिला सुरक्षा और बुजुर्गों को सम्मान देना शामिल हैं।

केजरीवाल जिस चुनावी तिकड़म को रामराज्य की परिकल्पना बता रहे हैं, दरअसल उन्हें रामराज्य के बारे में कुछ ज्ञात नहीं है। जब अयोध्या में रामराज्य स्थपित हुआ था तब तीनों लोक हर्षित हो गए, उनके सारे शोक जाते रहे। कोई किसी से वैर नहीं करता था। श्रीरामचंद्रजी के प्रताप से सबकी विषमता मिट गई थी। लोग अपने-अपने वर्ण और आश्रम के अनुकूल धर्म में तत्पर हुए सदा वेद मार्ग पर चलते और सुख पाते थे। सभी दम्भरहित थे, धर्मपरायण थे। सभी कृतज्ञ थे। कपट-चतुराई किसी में नहीं थी।

रामराज्य में रहने वाले छोड़ दीजिए, क्या उस काल के आम आदमी के गुण भी केजरीवाल में हैं? रामराज्य में राजा के लिए स्वयं का त्याग सबसे बड़ा आदर्श था, केजरीवाल स्वयं इस आदर्श के सबसे बड़े भंजक रहे हैं। त्याग की बात कौन कहे ‘‘सबके हिस्से का सबकुछ और केवल मुझे ही‘‘- केजरीवाल के व्यक्तित्व और कृतत्व का उदाहरण रहा है। पार्टी के पद से लेकर सत्ता के शीर्ष पद तक सिर्फ मेरा नाम और मेरे रास्ते में जो आए उसका मिटा दो नाम- यही ब्रह्मवाक्य केजरीवाल ने अपनाया। बात बीते इतिहास की नहीं है, हालिया वर्षों का ही है। जब केजरीवाल ने रामराज्य के त्याग के उदाहरण का परिहास करते हुए हर उस आदमी को राजनीतिक बलि पर चढ़ा दिया, जिसने केजरीवाल को ऊपर चढ़ाने में सीढ़ी की भूमिका निभाई। योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, मयंक गांधी, अंजलि दमानिया, सुभाष वारे और आनंद कुमार जैसे लोगों को अपने रास्ते से हटाने का उदाहरण सामने है। अंत में कुमार विश्वास जैसे शुभचिंतक व्यक्ति का कपट और चालबाजी से पार्टी से बाहर करने का प्रकल्प तो केजरीवाल के चरित्र को और भी प्रमाणित करता है।

आम आदमी पार्टी राजनीति में सच्चाई की स्थापना और नैतिक बल पर जोर के नाम पर सत्ता आई लेकिन किया ठीक उसका उल्टा। राजनीति में पदार्पण के साथ ही इस पार्टी में झूठ का बोलबाला रहा। सबसे ज्यादा झूठ का सहारा स्वयं केजरीवाल ने लिया। केजरीवाल ने यह प्रचारित किया कि मीडिया प्रधानमंत्री के साथ है और उनके कहने पर ही मीडिया उनके बारे में गलत खबरें दिखाती है। बाद में उनका झूठ तब पकड़ा गया, जब स्वयं एक चैनल से इंटरव्यू के दौरान सेटिंग करते दिखाई दिए। केजरीवाल ने अपने बच्चों की कसम खाई कि वह ना तो कांग्रेस से समर्थन लेंगे और ना देंगे। पर उनकी कसम तुरंत झूठी साबित हुई और उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली।

केजरीवाल की पार्टी ने गुजरात में कुछ स्थानीय सीटों में सफलता प्राप्त की है। अब उनकी महत्वाकांक्षा उत्तर प्रदेश में जाने की है। उन्हें मालूम है वहां उनका मुकाबला हिंदू हदय सम्राट योगी आदित्यनाथ से होना है। इसलिए रंग बदलकर केजरीवाल हिंदूवादी होने का स्वांग रचा रहे हैं। लेकिन वास्तव में उनकी प्रकृति क्या है। इसी केजरिवाल ने वोटबैक की खातिर बाटला हाउस और इशरत जहां एनकाउंटर को झूठा करार दिया था। एक मजहब के वोट के लिए जांच एजेंसियों पर सवाल खड़े किए थे। बाटला हाउस पर कोर्ट का फैसला आ गया और यह सिद्ध हो गया कि वहां आतंकवादी ही छिपे थे। इसी तरह एलईटी आतंकवादी डेविड हेडली कोर्ट में कह चुका है कि इशरत जहां आतंकवादी कार्रवाइयों में लिप्त थी। यह केजरीवाल ही थे, जिन्होंने 2013 के विधानसभा के दौरान बकायदा पर्चा निकाला था कि ‘‘बीजेपी एक कम्यूनल पार्टी है। अभीतक मुसलमानों के पास कांग्रेस के अलावा कोई विकल्प नहीं था। अब उनके सामने एक ईमानदार पार्टी आम आदमी पार्टी है।’ इस पर्चे का संज्ञान चुनाव आयोग ने लिया था और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ नोटिस जारी किया था। इस समय राम का सहारा लेने वाले केजरीवाल की असलियत समझी जा सकती है।

पानी, बिजली, शिक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर करोड़ों का प्रचार कर खुद को बहुत काबिल मुख्यमंत्री सिद्ध करने की होड़ में लगे केजरीवाल असलियत से मुंह मोड़ते नजर आते हैं। केजरीवाल को मालूम है कि दिल्ली को रोजाना 1260 मिलियन गैलन पानी की आवश्यकता है, लेकिन आपूर्ति अभी भी 937 मिलियन गैलन की है। यानी जितना लोगों को चाहिए उससे 25 प्रतिशत कम पानी दिल्ली वालों को मिलता है, उसपर तुर्रा यह कि पानी के मामले में दिल्ली सरकार ने कमाल कर दिया है। अभी भी दिल्ली के 17 प्रतिशत घरों में पाइप से पानी नहीं मिलता, 13 प्रतिशत अनाधिकृत काॅलोनियों को पानी की नियमित आपूर्ति से वंचित रखा गया है। केजरीवाल को मालूम है कि जिन कुछ शहरों में भूजल समाप्ति की ओर है, उसमें दिल्ली भी है। 2015 में इसी आम आदमी पार्टी ने यह वायदा किया था कि हर महीने प्रत्येक परिवार को 20 हजार लीटर पानी उनकी सरकार उपलब्ध कराएगी पर दिल्ली सरकार आजतक इस आकड़े तक नहीं पहुंच सकी। आज भी दिल्ली की एक बड़ी जनसंख्या गंदा पानी पीने के लिए मजबूर है और केजरीवाल पानी का रामराज्य लाने की बात करते हैं।

दिल्ली को सिंगापुर बनाने का ख्याल आम आदमी पार्टी के हर बजट में आता है। पर यह ख्याल अगले साल के लिए सवाल में बदल जाता है। एकबार फिर आम आदमी पार्टी ने यह सपना दिखाया है कि 2047 तक दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय सिंगापुर की प्रति व्यक्ति आय के बराबर हो जाएगी। यानी इस पीढ़ी के लिए अरविंद केजरीवाल के पास कोई सपना भी नहीं है। सिंगापुर में प्रति व्यक्ति आय इस समय 58,500 डाॅलर है। रुपये में इसे बदलें तो यह 43 लाख 75 हजार बनता है। केजरीवाल जी 2020-21 में दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय दो लाख 54 हजार थी जबकि 2016-17 में दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय लगभग तीन लाख रुपये थी। अब आप ही बताइए कि पिछले छह साल के अपने शासनकाल में प्रति व्यक्ति आय कितना बढ़ा पाए।

हर कमी को दूसरों के सिर पर डालना और अपनी नाकामी को विज्ञापन के जरिए छिपाना किसी रामराज्य का हिस्सा नहीं हो सकता। जिस मुख्यमंत्री के 40 विधायक अपराधी प्रवृति के हों, जिनके मंत्रियों के विरुद्ध बलात्कार, धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े के मुकदमे अदालतों में चल रहे हों वह यदि रामराज्य की दुहाई दे तो वह किस श्रेणी का व्यक्ति होगा, यह जनता जानती है।

(लेखक, दिल्ली बीजेपी के महामंत्री हैं।)

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