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    Article 370: 70 साल पहले शुरू हुई लड़ाई को मिला मुकाम, 1949 में पंडित प्रेमनाथ डोगरा ने फूंका था बिगुल

  • December 12, 2023

    जम्मू (Jammu)। विशेष दर्जा हटाने (remove special status) के लिए 70 साल पहले शुरू हुई लड़ाई (fight started 70 years ago) को आखिर 11 दिसंबर 2023 को मुकाम मिल गया। संसद के बाद (after Parliament) सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने भी अनुच्छेद-370 (Article 370) हटाने के फैसले को सही ठहराया। राज्य में परमिट प्रथा, दो प्रधान-दो निशान व दो विधान के खिलाफ पंडित प्रेमनाथ डोगरा (Pandit Premnath Dogra) व डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (Dr. Shyama Prasad Mukherjee) समेत प्रजा परिषद के कई कार्यकर्ताओं का बालिदान रंग लाया।

    बात जम्मू में 1949 से शुरू हुई। साइंस कॉलेज में छात्रों ने राज्य का झंडा नहीं फहराने दिया। आंदोलन के पीछे पंडित प्रेमनाथ डोगरा का हाथ मानते हुए पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर श्रीनगर जेल भेज दिया। दो प्रधान, दो विधान व दो निशान के खिलाफ चल रहे आंदोलन के तहत राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराने के आरोप में अलग-अलग समय में पुलिस की गोलीबारी में 16 युवकों की मौत हो गई। गोलीबारी की घटनाएं जम्मू के ज्योड़ियां, कठुआ के हीरानगर, रामबन व राजोरी के सुंदरबनी में हुईं। चारों स्थानों पर प्रजा परिषद के बलिदानियों का स्मारक बनाया गया।


    जम्मू-कश्मीर की संघर्ष गाथा लिखने वाले प्रो. कुलभूषण मोहत्रा बताते हैं कि प्रजा परिषद की मुख्य मांग राज्य का भारत के अन्य भागों के साथ पूर्ण एकीकरण थी। साथ ही, राज्य में आने-जाने के लिए परमिट प्रथा समाप्त करना थी। आंदोलनकारियों पर जुल्म के दौरान डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने राज्य में प्रवेश करने की कोशिश की तो रावी दरिया पर बने पुल से उन्हें गिरफ्तार कर श्रीनगर ले जाया गया। यहां 22-23 जून, 1953 की रात रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई। प्रजा परिषद के आंदोलन ने ही वट वृक्ष का रूप धारण किया और अब राज्य का विशेष दर्जा समाप्त हुआ।

    1964 में भी पेश हुआ था निजी विधेयक
    जानकारों का कहना है कि 11 सितंबर, 1964 को बिजनौर से लोकसभा सांसद प्रकाश वीर शास्त्री ने अनुच्छेद 370 समाप्त करने के लिए लोकसभा में निजी विधेयक पेश किया था। इसे जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी छह सदस्यों ने समर्थन दिया था। चार दिसंबर, 1964 को इंद्रजीत मल्होत्रा, शाम लाल सराफ, गोपाल दत्त मैंगी एवं अन्य तीन लोकसभा सदस्यों में मतभेद होने के कारण यह विधेयक गिर गया। 9 जुलाई, 1971 को अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में निजी विधेयक पेश किया, जिसमें कहा गया कि 26 जनवरी 1972 तक राज्य का विशेषाधिकार समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

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