मप्र में महिला कांग्रेस अध्यक्ष के लिए चार महिला नेत्रियों का आपसी विवाद इतना बढ़ा कि महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुष्मिता देव ने कमलनाथ से चर्चा कर अर्चना जायसवाल को मप्र महिला कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया। दरअसल महिला कांग्रेस अध्यक्ष की दौड़ में भोपाल से विभा पटेल, रीवा से कविता पांडे, ग्वालियर से रश्मि पंवार और उज्जैन से नूरी खान के नाम चर्चा में थे। बताते हैं कि यह चारों महिलाएं एक-दूसरे के खिलाफ जानकारियां राष्ट्रीय अध्यक्ष को भेज रही थीं। कुछ के ऑडियो-वीडियो भी भेजे गए। इनसे परेशान होकर सुष्मिता देव ने कमलनाथ को इस बात के लिए तैयार किया कि अर्चना जायसवाल अनुभवी नेता हैं और पूरे प्रदेश में महिला कार्यकर्ताओं को पहचानती हैं। कमलनाथ की सहमति मिलते ही अर्चना जायसवाल के नाम की घोषणा कर दी गई। अब खबर है कि चारों दावेदार महिलाओं को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने पर विचार चल रहा है।
बसपा बनाम भीम आर्मी
मप्र में बहुजन समाज पार्टी का जनाधार तेजी से घट रहा है। जानकारों का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी का वोट बैंक धीरे-धीरे चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण की भीम आर्मी की ओर खिसक रहा है। फिलहाल भीम आर्मी राजनीतिक संगठन नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले उम्मीद की जा रही है कि भीम आर्मी राजनीतिक पार्टी के रूप में उभर सकती है। पिछले दिनों मप्र में भीम आर्मी का खासा असर दिखाई दिया। नेमावर में एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या के बाद चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण नेमावर पहुंचे तो उनके साथ भीड़ देखकर यह अहसास होने लगा है कि बसपा के कार्यकर्ताओं ने उन्हें अपने विकल्प के तौर पर देखना शुरु कर दिया है।
बेशर्म के फूल दिलाएंगे पद!
यह हेडिंग थोड़ी चौंकाने वाली है। लेकिन यह सच है कि पिछले दिनों ग्वालियर में ज्योतिरादित्य सिंधिया को बेशर्म के फूल भेंट करने वाले एनएसयूआई के कार्यकर्ता सचिन द्विवेदी भोपाल से दिल्ली तक चर्चित चेहरे के रूप में पहचान बना चुके हैं। मप्र भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) के अध्यक्ष के लिए कमलनाथ ने सचिन द्विवेदी का नाम प्रस्तावित किया है। यानि बेशर्म के फूल सचिन को पद दिला सकते हैं! दरअसल कमलनाथ का गणित है कि वे स्वयं महाकौशल से, युवा कांग्रेस और महिला कांग्रेस मालवा से आते हैं, इसलिए एनएसयूआई का प्रदेश अध्यक्ष ग्वालियर से होना चाहिए। इसके साथ ही इन चार पदों में एक ब्राह्मण होना भी जरूरी है। इस आधार पर उम्मीद है कि जल्द ही सचिन द्विवेदी के नाम की घोषणा हो सकती है।
मंत्री को केबिनेट मंत्री की फटकार!
खबर आ रही है कि एक केन्द्रीय मंत्री ने पिछले दिनों अपने समर्थक प्रदेश के एक मंत्री को जमकर फटकार लगाई है। केंद्रीय मंत्री ने अपने गृह जिले में इस मंत्री को प्रभारी मंत्री बनवाया है। केंद्रीय मंत्री के पास शिकायतें पहुंची कि जिले में तबादलों के नाम पर जमकर वसूली की जा रही है। केंद्रीय मंत्री ने इसकी पड़ताल कराई और इसके बाद प्रभारी मंत्री को जमकर फटकार लगाई है। देखना है कि इस फटकार का कितना असर मंत्रीजी और उनके समर्थकों पर होता है।
पानी के टेंकर यानि प्रचार और कमाई
मप्र में पानी के टेंकर जन प्रतिनिधियों के लिए प्रचार और कमाई का बड़ा साधन बन गए हैं। विधायक, सांसद निधि से यह टेंकर खरीदकर स्थानीय निकायों को दिए जाते हैं। एक टेंकर निजी क्षेत्र में 65 हजार रुपए का मिलता है। जबकि विधायक सांसद निधि से इसकी खरीद की दर एक लाख 27 हजार रुपए फिक्स की गई है। 50 हजार रुपए प्रति टेंकर की रिश्वत तो नेताओं को मिलती ही है। इसके अलावा इन टेंकरों पर नेताओं के फोटू चस्पा कर प्रचार भी किया जाता है कि फला सांसद विधायक ने अपनी निधि से यह टेंकर दिलाया यानि नेताजी को रिश्वत के साथ-साथ प्रचार भी खूब मिल रहा है।
35 मिनट में 35 करोड़ का दान
जैन संत आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज की मान्यता है कि कोरोना का सही और सटीक ईलाज आयुर्वेद के द्वारा ही किया जा सकता है। उनकी भावना और प्रेरणा से जबलपुर के तिलवारा घाट के पास पूर्णायु नाम से आयुर्वेद का सबसे बड़ा अस्पताल बनना शुरू हो गया है। आचार्यश्री स्वयं 380 किलोमीटर का पदविहार कर चातुर्मास करने यहां पहुंच चुके हैं। इस रविवार को आचार्यश्री की धर्मसभा में पूर्णायु अस्पताल के लिए 35 मिनट में 35 करोड़ का दान एकत्रित हो गया है। अगले एक साल में लगभग 100 करोड़ की दान राशि से यह अस्पताल बनकर तैयार होना है। खास बात यह है कि यहां देश के अनुभवी वैद्य हैं, जो नाडी पकड़कर बीमारी बता देते हैं।
और अंत में…
मप्र विधानसभा देश का पहला ऐसा सदन बनने जा रहा है, जहां पप्पू, फेंकू, तड़ीपार जैसे 1500 शब्द असंसदीय कहलाएंगे। यदि सदन में किसी ने इन शब्दों का उपयोग किया तो यह रिकार्ड में दर्ज नहीं किये जाएंगें। स्पीकर गिरीश गौतम ने मप्र विधानसभा की 1956 से अभी तक की कार्रवाई में समय समय पर स्पीकर द्वारा विलोपित कराये गये शब्दों को छंटवाया तो लगभग 1500 ऐसे शब्द मिले जिन्हें सदन में आपत्तिजनक माना गया है। इन शब्दों को असंसदीय मानते हुए विधायकों को वितरित करने एक किताब छपवाई जा रही है। ताकि भविष्य में विधायक सदन में इन शब्दों का उपयोग न करें।
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