नई दिल्ली (New Delhi)। भारत (India) में जजों की नियुक्ति (appointment of judges) को लेकर हमेशा से बहस छिड़ी हुई है। कार्यपालिका या फिर न्यायपालिका (executive or judiciary) जजों की नियुक्ति किसकी जिम्मेदारी होनी चाहिए इसे लेकर देशभर में लोगों को अलग अलग मत है। हाल ही में एक सर्वे के सैंपल में 38 प्रतिशत लोगों ने बताया है कि जजों की नियुक्ति के लिए मौजूदा सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की कॉलेजियम सिस्टम (Present collegium system) ही जारी रहे।
कम से कम 31% लोगों ने कहा कि कार्यपालिका और न्यायाधीशों दोनों को न्यायाधीशों की नियुक्ति करनी चाहिए। दूसरी ओर, 19% जवाब देने वालों ने कहा कि केवल कार्यकारियों को ही निर्णय लेना चाहिए। इस रिपोर्ट के लिए कुल 1,40,917 लोगों ने मत का योगदान दिया है।
जजों की नियुक्ति को लेकर हमेशा से सरकार और न्यायपालिका के बीच तनातनी है। उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों का चयन उनके सहयोगियों की तरफ से कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से किया जाता है। ट्रांसपेरेंसी के अभाव में प्रक्रिया की आलोचना होती रहती है।
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कई मौकों पर कॉलेजियम प्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह संविधान से अलग है और संसद के माध्यम से व्यक्त की गई लोगों की इच्छा को कमजोर कर दिया गया है।
अटकलें लगाई जा रही थी कि कानून मंत्री ने सीजेआई चंद्रचूड़ को न्यायाधीशों के चयन की प्रक्रिया में एक सरकारी प्रतिनिधि को शामिल करने का सुझाव देने के लिए लेटर लिखा था. हालांकि, किरेन रिजिजू ने ऐसे दावों का खंडन किया। कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने इन दावों का खंडन किया कि सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम में सरकारी नॉमिनेशन को शामिल करने का सुझाव देते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा था। कानून मंत्री ने सोमवार को कहा कि इन बयानों का कोई सिर नहीं और कोई सच्चाई नहीं है।
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