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    बहुचर्चित डब्बा कारोबारी की गिरफ्त में भी रहा एप्पल हॉस्पिटल

  • August 28, 2020

    • अग्निबाणखुलासा… डेढ़ साल जेल में रहा… करोड़ों रुपए का किया निवेश… कुल 35 हैं शेयर होल्डर

    इंदौर। 22 दिन कोरोना मरीज को भर्ती रख 6 लाख का बिल थमाने वाला निजी हॉस्पिटल एप्पल सुर्खियों में है, जिस पर प्रशासन ने छापा डालकर कई तरह की अनियमितताएं पकड़ी और नोटिस भी थमाया। इस हॉस्पिटल में 35 शेयर होल्डर है, जिनमें शहर के कुछ जाने-माने चिकित्सक तो हैं ही, वहीं एक डब्बा कारोबारी भी पिछले दरवाजे से शेयर होल्डर बन गया। अपने पिता और दो भाइयों के नाम पर लगभग 8 से 9 प्रतिशत के शेयर इस डब्बा कारोबारी ने हासिल कर लिए और पिछले कुछ दिनों से पूरे हॉस्पिटल को मनमाने तरीके से ये ही संचालित कर रहा था। उक्त कारोबारी फर्जी एक्सचेंज घोटाले के चलते डेढ़ साल जेल में भी रहकर आया और बाद में जमानत पर छूटा। हॉस्पिटल के संबंध में जो शिकायत सामने आ रही है उसके पीछे भी इसी की करतूत बताई जा रही है, जिसने अपने लोगों को यहां भर्ती किया और खुद भी 3 से 4 लाख रुपए की राशि सैलेरी के रूप में हासिल करता रहा।
    भंवरकुआ चौराहा पर जुलाई-2015 में एप्पल हॉस्पिटल का शुभारंभ हुआ था, जिसमें शहर के कुछ जाने-माने चिकित्सक और अन्य निवेशक जुड़े और लगभग 35 शेयर होल्डरों ने राशि जुटाकर इस हॉस्पिटल को तैयार किया और लगभग 30 करोड़ रुपए का बैंक लोन भी लिया गया, जिसमें से 20-22 करोड़ रुपए का लोन अभी भी बकाया है। लेकिन घाटे के कारण ज्यादातर शेयर होल्डरों ने हॉस्पिटल पर ध्यान देना छोड़ दिया और बीच में इसे बेचने के भी प्रयास किए, मगर कोई खरीददार नहीं मिला। इस हॉस्पिटल के एक डायरेक्टर अशोक सोनी हैं और एक अनुराग, जिनके नाम पर शेयर खरीदे गए। डॉ. सोनी शिशु चिकित्सक हैं, जिनका देपालपुर में क्लीनिक भी है। वहीं चर्चित डब्बा कारोबारी अमित सोनी ने अपना काला धन भी भाइयों और पिताजी के नाम पर इस हॉस्पिटल के निर्माण में निवेश किया। कुछ समय पहले जब फर्जी एक्सचेंज घोटाले के मामले में ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय ने जांच की और अमित सोनी उर्फ सांवेर को इस मामले में जेल की हवा भी खाना पड़ी। लगभग डेढ़ साल तक जेल में बंद रहने के बाद जमानत पर छूटा और उसके बाद एप्पल हॉस्पिटल का संचालन अपने कब्जे में ले लिया। अन्य शेयर होल्डरों को डराने-धमकाने की जानकारी भी सामने आई। वहीं एक एचआर निजी हॉस्पिटल से भर्ती किया गया और अन्य स्टाफ भी अपनी मनमानी से नियुक्त कर दिया। जब हॉस्पिटल पर एक तरह से इसी का कब्जा हो गया, तब अन्य चिकित्सकों-शेयर होल्डरों की नींद खुली और फिर उन्होंने रोकने के प्रयास करते हुए एक कर्नल की नियुक्ति भी कर दी, ताकि एकतरफा मनमानी डब्बा कारोबारी की ना चल सके। अभी जिला प्रशासन ने जिन 27 ्निजी हॉस्पिटल को कोरोना इलाज की अनुमति दी उनमें एप्पल हॉस्पिटल भी शामिल है। अभी मरीजों की संख्या बढऩे के चलते इस हॉस्पिटल में भी 37 कोविड मरीजों का इलाज चल रहा है। चूंकि अस्पताल का संचालन मनमाने तरीके से चलता रहा। उसी के परिणाम स्वरूप लूटपट्टी की यह शिकायत सामने आई, जिस पर कलेक्टर मनीष सिंह ने तीन दिन पहले जूनी इंदौर एसडीएम और स्वास्थ्य विभाग से डॉ. अमित मालाकार को भेजकर बिल और रिकॉर्ड जब्त करवाए और उसके बाद फिर हॉस्पिटल को लेकर बवाल मचा, क्योंकि इन दिनों कई अन्य हॉस्पिटलों की भी इसी तरह शिकायतें मिल रही है। सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमित मरीजों के ही फजीते हैं। सूत्रों का यह भी कहना है कि 2013 में ही जब इस हॉस्पिटल की प्लानिंग हुई तब अमित ने अपने भाइयों के नाम से तीन लाख से अधिक शेयर खरीद लिए थे। अभी भी सबसे ज्यादा हिस्सेदारी लगभग 8 से 9 प्रतिशत इनके पास है, जबकि अन्य शेयर होल्डरों की हिस्सेदारी 2 से लेकर 4, 5, 6 प्रतिशत तक ही है। इसमें कुछ जाने-माने चिकित्सक तो ऐसे भी हैं जो बीते 3 सालों स हॉस्पिटल में एक बार भी नहीं गए हैं और पिछले कई समय से इसके संचालन की बाडगोर अमित सांवेर के हाथों में ही रही।
    डेढ़ लाख लौटाना पड़े… मरीज की बेटी ने शिकायत वापस भी ले ली
    6 लाख रुपए का जो बिल कोरोना मरीज को थमाया गया था उसमें से लगभग 2 लाख रुपए की राशि अधिक वसूल किए जाने की शिकायत मरीज की बेटी ने कलेक्टर से की थी। दरअसल 22 दिन तक उक्त मरीज का इलाज चला। 1 अगस्त को मरीज कोरोना पॉजिटिव हुए थे। उसके बाद उनके निजी डॉक्टरों की सलाह पर एप्पल में भर्ती किया गया था। शिकायत में पहले यह आरोप लगाया गया कि पीपीई किट दवाइयों, यूनिवर्सल प्रोटेक्शन, डॉक्टरों की विजिट और सिटी स्कैन सरीके कुछ टेस्टों की राशि बोगस तरीके से हासिल की गई। कलेक्टर मनीष सिंह ने जांच प्रतिवेदन तैयार करवाकर अस्पताल प्रबंधन को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है। वहीं प्रशासनिक दबाव के फलस्वरूप अस्पताल प्रबंधन ने भी 1 लाख 56 हजार रुपए की राशि जो अधिक वसूल की गई थी, मरीज के परिजनों को लौटा दी, जिसके चलते मरीज की बेटी ने अपनी शिकायत वापस भी ले ली। उसने पत्र लिखकर कहा कि बिल के संबंध में हमें कुछ शिकायतें थीं, जिन्हें अस्पताल प्रबंधन ने दूर कर दिया है। लिहाजा अब प्रबंधन और इलाज करने वाले चिकित्सकों से कोई शिकायत नहीं है। हालांकि प्रशासन का कहना है कि नियमानुसार जो अनियमितताएं हुई हैं उनके खिलाफ तो कार्रवाई की ही जाएगी, ताकि अन्य निजी अस्पतालों को भी इससे सब मिल सक

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