– अली खान
हाल ही में ब्रिटेन की नेचुरल एन्वायरमेंट रिसर्च काउंसिल ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि प्रकाश के रंगों और तीव्रता में बदलाव के कारण जीव-जंतुओं की दृष्टि पर जटिल और अप्रत्याशित प्रभाव पड़ रहा है। यह अध्ययन शोध पत्रिका ‘नेचर कम्युनिकेशन’ में प्रकाशित किया गया है। ब्रिटेन के एक्सेटर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन दुनियाभर में प्रकाश प्रदूषण के कारण बढ़ते पर्यावरणीय खतरों के प्रति सचेत करता है।
दरअसल, रात के समय में पड़ने वाली कृत्रिम रोशनी की जरूरत ने जीव-जंतुओं के जीवन को खासा प्रभावित किया है। कृत्रिम रोशनी की अत्यधिक तीव्रता ने छोटे-छोटे कीट-पतंगों पर विनाशकारी प्रभाव डाला है। पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में इन छोटे-छोटे कीटों का अहम योगदान रहता है। इनका विनाश पारिस्थितिकी असंतुलन को बढ़ाने वाला है।
कीटों पर पड़ने वाले कृत्रिम प्रकाश के प्रभाव को लेकर किए गए शोध से पता चला है कि पूरी दुनिया में रात के समय में प्रकाश व्यवस्था का स्वरूप पिछले करीब 20 वर्षों के दौरान नाटकीय रूप से बदला है। एलईडी जैसे विविध प्रकार के आधुनिक रोशनी उपकरणों का चलन बढ़ा है। यह स्वाभाविक है कि प्रकाश के प्रति कीटों का आकर्षण अधिक रहता है। लेकिन कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था कीटों की दृष्टि को बहुत ज्यादा प्रभावित करती है।
कृत्रिम प्रकाश का कीटों पर पड़ने वाले प्रभावों का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने कीटों और उन्हें अपना शिकार बनाने वाले पक्षियों की दृष्टि पर 20 से अधिक प्रकार की रोशनी के प्रभाव की जांच की है। अध्ययन में पाया गया कि कई कीटों की दृष्टि कुछ विशिष्ट प्रकार की रोशनी में बढ़ जाती है, जबकि प्रकाश के कुछ अन्य रूपों से इनकी दृष्टि बाधित होती है।
एक्सेटर विश्वविद्यालय के कार्नवाल कैंपस स्थित पारिस्थितिकी एवं संरक्षण केंद्र से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर जालयान ट्रासिआंकों बताते हैं कि आधुनिक ब्रांड-स्पेक्ट्रम प्रकाश व्यवस्था इंसानों को रात में अधिक आसानी से रंगों को देखने में सक्षम बनाती है। लेकिन ये आधुनिक प्रकाश स्रोत अन्य जीव-जंतुओं की दृष्टि पर बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसके पीछे की वजह यह है कि मानव दृष्टि के लिए डिजाइन की गई कृत्रिम रोशनी में नीली और पराबैंगनी श्रेणियों का अभाव होता है, जो इन कीटों की रंगों को देखने की दृष्टि क्षमता के निर्धारण में अहम है। यह स्थिति कई परिस्थितियों में किसी भी रंग को देखने की कीटों की क्षमता को अवरुद्ध कर देती है। ऐसी स्थिति कीटों को शिकारियों से बचकर छिपे रहने के लिए अनुकूल नहीं होती है। फूलों को खोजना एवं परागण करना भी उनके लिए कठिन हो जाता है। ऐसे में प्रकाश की मात्रा एवं तीव्रता को सीमित करने के सामान्य प्रयासों से आगे बढ़कर प्रकाश व्यवस्था के लिए संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाए जाने की जरूरत है।
कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था की जरूरतों और उपयोगिता को समझते हुए आगे से कदम उठाए जाने चाहिए। कृत्रिम प्रकाश से होने वाला प्रदूषण समस्त वातावरण को प्रदूषित करता है। प्रकाश प्रदूषण स्वाभाविक तौर पर पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है। कृत्रिम प्रकाश की तीव्रता बैचेनी को बढ़ा देती है और मानव स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है। कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था को दुरुस्त करके न केवल हम कीटों पर पड़ने वाले विनाशी प्रभाव को कम कर सकते हैं, बल्कि हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों से भी बच सकते हैं। इसके लिए हमें आकाश-प्रदीप्ति को कम करना होगा, प्रकाश अतिचार में कमी करनी होगी, आवश्यक न्यूनतम तीव्रता के साथ प्रकाश के स्रोतों का उपयोग, अधिभोग सेंसर का उपयोग करते हुए प्रकाश प्रदूषण को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।
इसके साथ-साथ प्रकाश जुड़नार में सुधार किया जाए, जिससे कि वे अपने प्रकाश को जहां जरूरत है वहां और अधिक सटीकता और न्यून पक्ष प्रभाव को निर्देशित कर सके। इसके अलावा हमारी कृत्रिम प्रकाश प्रदूषण के प्रति जागरूकता ही पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूती प्रदान कर सकती है। यदि हम कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था को दुरुस्त कर लेते हैं तो बहुत हद तक संभव है कि हम स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव से बच सकते हैं और कीटों के जीवन को भी बचा सकते हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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