यही जिंदगी मुसीबत यही जिंदगी मसर्रत
यही जिंदगी हक़ीक़त यही जिंदगी फ़साना।
वो टूट गए होते…या अपनी जि़ंदगी अफसोस और आंसुओं के हमराह काट रहे होते। 65 बरस के अनिल खरे साब की जि़ंदगी के नशेबो फऱाज़ की कहानी किसी ट्रेजिक फि़ल्म या गमगीन नावेल का हिस्सा महसूस होती है। अनिल राज्य सड़क परिवहन निगम में डिविजनल मेनिजर हुआ करते थे। निगम बंद होने की कगार पे पहुंचा तो इंन्ने साल 2008 में वीआरएस ले लिया। माशा अल्लाह दो होनहार बेटे अमेरिका और लंदन में रोजगार पे लग चुके थे। दोनो मियां-बीवी बड़े सुकून की जि़ंदगी जी रहे थे। उमर का एक पड़ाव ऐसा होता है जब आप तमाम जि़म्मेदारियों से फ़ारिग होके जि़न्दगी से लुत्फअंदोज़ होते हैं। ऐसे ही सुकून के लम्हे अनिल अपनी शरीकेहयात दीप्ति के साथ गुज़ार रहे थे। हर्षवर्धन नगर में अपनी बुज़ुर्ग वालेदा और दो और भाइयों के संग जॉइंट फैमिली में रह रहे खरे परिवार में उस वक्त खुशियों के रंग बिखरे जब अनिल के बड़े बेटे की शादी 11 मई 2018 को तय हो गई। अनिल बताते हैं वो अप्रैल की 17 तारीख थी। मैं और दीप्ति बाज़ार में सामान की खरीदारी के साथ ही बेटे की शादी की तैयारियों में मसरूफ थे। एक दिन बाज़ार में बीवी ने पीठ में शदीद दर्द की शिकायत की। हमने डाक्टर को दिखाया। लेकिन दर्द से राहत नहीं मिली। डॉक्टर ने कैंसर की जांच की सलाह दी। घर का हर फर्द फिक्रमंद हो गया। बायोप्सी की रिपोर्ट पोसिटिव आई। उन्हें एडवांस स्टेज का कैंसर था। अनिल के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। आनन फानन में मुम्बई के टाटा मेमोरियल अस्पताल भागे। वहां कीमो का प्रोटोकाल शुरू हो गया। इधर बेटे की शादी की तारीख पास आती जा रही थी। मई के पहले हफ्ते में कीमो के लिए अनिल मुम्बई में थे। इधर भाई सुनील और संजय ने शादी की तैयारियां जारी रखीं।
उधर मुम्बई में अस्पताल के बिस्तर पे बिस्तर पे निढाल पड़ी बीवी से अनिल ने पूछा बेटे की शादी आगे बढ़ा दें…। उन्हें कुछ एहसास था…बोलीं नहीं। लिहाज़ा शादी की तारीख नहीं बदली गई। 11 मई को बेटे की शादी के दिन मुम्बई में कीमो चल रहा था। अनिल फ्लाइट से भोपाल पहुंचे। शादी की रस्मे पूरी करवाई और अगले रोज़ मुम्बई जा पंहुचे। आखिरकार वही हुआ जिसका डर था। 9 अगस्त 2018 को दीप्ति चल बसीं। यहीं से अनिल के जीवन मे बदलाव आ गया। कैंसर के मरीजों का दर्द नज़दीक से देखने वाला अनिल ने तय किया अब समाज को वो सब वापस करने का वक्त आ गया है जो उससे लिया था। लिहाज़ा इंन्ने कैंसर के मरीजों की खिदमत और मदद के लिए जीवन दीप्ति चेरीटेबल सोसायटी बनाई। ये सोसायटी कैंसर के मरीजों की तीमारदारी के साथ ही उनके अहलेखाना की हर मुमकिन मदद करती है। जवाहरलाल नेहरू कैंसर अस्पताल की धर्मशाला में ये सोसायटी कपड़े और कई दफे खाने का इंतज़ाम करती है। ताशवीस नाक हालत में पहुंच चुके मरीजों को बेड सोल के आराम के लिए एयर बेग भी मुहैया कराते हैं। इनकीं सोसायटी में 150 एक्टिव मेंबर हैं। एक स्टोर में मरीजों के लिए यूरीन पॉट, बेड पेन, व्हील चेयर वगेरह जमा रहते हैं, जिसे मरीजों को दिया जाता है। ज़रूरतमंदों को ये बैसाखी भी देते हैं। सोसायटी की महिला डाक्टरों की टीम सरकारी बालिका स्कूलों में जाकर छात्राओं को गुड और बेड टच की जानकारी के साथ ही सेनेटरी नेपकीन भी देती है। लोगों से पुराने जीन्स पेंट लेके ये स्कूली बच्चों के लिए स्कूल बैग तैयार करवा कर निशुल्क मुहैया कराते हैं। अनिल बताते हैं कि हम कोई सरकारी मदद नहीं लेते। सब मेम्बर कुछ देते हैं तो कुछ दानदाता मदद करते हैं। घर मे ही सोसायटी का दफ्तर है। अनिल कहते हैं मुझे जि़न्दगी ने एक मकसद दे दिया है। बाकी जि़न्दगी भी लोगों की खिदमत करते हुए बिताना चाहता हूं।
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