भोपाल। मंत्रिमंडल विस्तार के बाद अब सरकार व संगठन का पूरा फोकस उन नेताओं पर हैं, जो इस समय नाराज चल रहे हैं। इन नेताओं को निगम मंडलों के अलावा आयोगों की कमान सौंप कर उन्हें लॉलीपॉप देने की कवायद शुरू कर दी गई है। हालांकि सरकार के सामने मुश्किल यह है कि सरकार गिरने के एक दो दिन पहले पूर्व की कमलनाथ सरकार अधिकांश आयोगों में कांग्रेस नेताओं की नियुक्ति कर गई है। इसके चलते पद कम और दावेदार अधिक होने से संकट की स्थिति बनी हुई है।
फिलहाल सरकार उन नेताओं पर फोकस करने जा रही है जो नाराज होने के साथ ही अपने बयानों से सरकार के सामने परेशानी खड़ी कर रहे हैं। इस दौरान पहली सूची में उपुचनाव वाले इलाके के नेताओं को नियुक्त किए जाने की तैयारी है। इनमें वे नेता शामिल रहने वाले हैं, जो सिंधिया समर्थक मंत्री और पूर्व विधायकों से चुनाव हार चुके हैं। आने वाले समय में उपचुनाव को देखते हुए इन नेताओं की नियुक्ति करना भाजपा की मजबूरी बन गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मंत्रियों को विभाग बांटने से एक दिन पहले ही इसकी शुरुआत कर दी है। इसके तहत ही विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने वाले कांग्रेस विधायक प्रद्युन सिंह लोधी को भाजपा में आते ही नागरिक आपूर्ति निगम का और निर्दलीय विधायक और कमल नाथ सरकार में मंत्री रहे प्रदीप जायसवाल को खनिज निगम का अध्यक्ष बना दिया। इसके साथ ही इन दोनों को सरकार ने कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दे दिया गया। शिवराज ने इस तैनाती से कई समीकरण साधने के साथ ही यह भी संकेत दिया कि अब वह पार्टी के प्रमुख नेताओं का समायोजन शुरू हो गया है। हालांकि मंत्रिमंडल में विभागों के बंटवारे के बाद ही जिस तरह विधायक अजय विश्नोई ने सिंधिया और शिवराज पर निशाना साधा, उससे यह भी लगने लगा कि असंतोष पार्टी के लिए मुसीबत बनता जा रहा है।
कई नेताओं की खुल सकती है किस्मत
मंत्री न बन पाने की वजह से विधायक अजय विश्नोई, रामपाल सिंह, रमेश मेंदोला, यशपाल सिंह समेत कई नाम हैं, जो किसी न किसी बहाने सरकार पर निशाना साध चुके हैं। यह बात अलग है कि स्थायी सरकार के लिए मुख्यमंत्री की पहली प्राथमिकता 25 सीटों पर होने वाले उपचुनाव जीतने पर है। यही वजह है कि बीते चुनाव में हारने वाले हरल्ले नेताओं को मौका दे सकते हैं। इनमें ग्वालियर पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया , पूर्व नेता प्रतिपक्ष गौरीशंकर शेजवार के पुत्र मुदित शेजवार, पूर्व मंत्री दीपक जोशी और बदनावर में चुनाव हार चुके भंवर सिंह शेखावत का भी नाम है। यह सभी किसी न किसी बहाने अपनी पीड़ा जाहिर कर चुके हैं। इसी तरह से जातीय समीकरण साधने के लिए सांवेर के डॉ. राजेश सोनकर, सुवासरा के राधेश्याम पाटीदार जैसे कुछ नेताओं को भी मौका मिल सकता है। हालांकि भाजपा के ही एक प्रमुख नेता का कहना है कि उपचुनाव तक नेतृत्व विधानसभा क्षेत्रों में दो धु्रव नहीं उभरने देगा। इससे कार्यकर्ताओं में ही गोलबंदी शुरू होगी लेकिन भाजपा में ही कई वरिष्ठों का तर्क है कि बिना यह उपाय अपनाए उपचुनाव की चुनौती से पार नहीं पाया जा सकता है।
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