इंदौर। संदीप, विशाल, राज, शिवा, विभा, सीमा, कल्पना, लक्ष्मी दीदी महज साधारण नाम नहीं, वे हैं जिन्होंने खुद से लड़कर दुनिया को गलत साबित कर दिया। मानसिक दिव्यांगता के ठप्पे को पीछे छोड़कर व्यावसायिक पुनर्वास में आगे आ गए।
कल तक जिन्हें खुद का होश नहीं था, तेज गुस्सा, चिड़चिड़ापन, हिंसक प्रवृत्ति, मारपीट करना, बिस्तर गीला करना, खाने का तरीका नहीं आना जैसी परेशानियों से जूझ रहे थे, अब वे ही अन्य मानसिक दिव्यांगों के लिए मिसाल बनकर उभरे हैं। शहर की एक संस्था में 9 दिव्यांग सालों की मेहनत के बाद खुद से लड़कर मुख्य धारा से जुड़ गए हैं।
कोई साफ-सफाई करने में माहिर हो गया है तो किसी ने डांस ट्रेनर, चौकीदार की ट्रेनिंग लेकर पूरी संस्था की जिम्मेदारी उठा रखी है। वहीं योग टीचर बनकर अपने साथी दिव्यांगों को स्वस्थ रखने में महती भूमिका निभा रहा है। संस्था युगपुरुषधाम ने संस्था के 9 बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए उनका व्यावसायिक पुनर्वास कराया है। अब ये बच्चे जहां न केवल संस्थान में डाक्टर, सुरक्षा गार्ड, रसोइया, योग टीचर, कराते ट्रेनर, टेबल मेनर्स सिखा रहे हैं, बल्कि व्यावसायिक क्षेत्रों में जाकर काम भी कर रहे हैं। इन बच्चों ने साबित कर दिया कि जहां चाह है वहां राह है। संस्था इन्हें इन कामों के लिए मासिक वेतन का भुगतान भी कर रही है।
मत्कार कर दिखाया… जिन्हे मंदबुद्धि समझा उनमें से कोई डाक्टर तो कोई योग टीचर बना
संस्था में संदीप जहां बच्चों की साफ-सफाई का ध्यान रखते हुए उन्हें भजन और डांस सिखा रहा है, वहीं विशाल ने डाक्टर की जिम्मेदारी उठाते हुए बच्चों को फीट्स की दवाई देना शुरू की है। देर शाम बच्चों को सोने के लिए गद्दे बिछाने से लेकर उनके खाने-पीने की व्यवस्था का पूरा ध्यान रख रहा है। वहीं राजू ने एक साल की चौकीदार की ट्रेनिंग लेने के बाद संस्था की सुरक्षा का जिम्मा अपने सिर उठाया है। शिवा योग टीचर बनकर बच्चों के शारीरिक विकास में मदद कर रहा है। लक्ष्मी दीदी, विभा और कल्पना मानसिक दिव्यांग बच्चों को तैयार करने से लेकर टॉयलेट ट्रे्निंग देने की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं। सीमा ने किचन की जिम्मेदारी उठाते हुए रोटी बेलना, सब्जी बनाना और बाकी काम सीख लिया।
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