नई दिल्ली। सनातन धर्म (eternal religion) में श्राद्धकर्म या पितृ पक्ष की एक अलग ही महत्ता है। शास्त्रों के अनुसार आश्विन मास (ashwin month) की कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक पितृ पक्ष मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों पितृ, पितृलोक से मृत्यु लोक (Death Lok from Pitruloka) पर अपने वंशजों से सूक्ष्म रूप में मिलने के लिए आते हैं। इस अवसर पर हम उनके सम्मान में अपनी सामर्थ्यानुसार उनका स्वागत व मान-सम्मान करते हैं। इसके परिणामस्वरूप सभी पितृ अपनी पसंद का भोजन व सम्मान पाकर अति प्रसन्न व संतुष्ट होकर सभी परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य, दीर्घायु, वंश वृद्धि व अनेक प्रकार के आशीर्वाद देकर पितृ लोक लौट जाते हैं।
पितृ पक्ष में लोग अपनी सामर्थ्य के अनुरूप अपने पितरों की तृप्ति के लिए भोजन का प्रबंध करते हैं। ऐसा विश्वास है कि श्राद्ध पक्ष में रोजाना चार-चार पूड़ी, सब्जी व मिष्ठान गाय, कुत्ते व कौवे को देने पर हमारे पितृ संतुष्ट होकर बहुत प्रसन्न होते हैं।
शास्त्रों में उल्लेख है कि पितरों में अर्यमा श्रेष्ठ हैं, वह पितरों के देव हैं। श्राद्ध कर्म करने से वे भी तृप्त हो जाते हैं। श्राद्ध करने वाला व्यक्ति शांति व संतोष प्राप्त करता है। श्राद्ध कर्म(shraadh ceremony) करने से गृह क्लेश समाप्त होता है। परिवार के सदस्यों में प्रेम रहता है व परिवार अकाल मृत्यु के भय से मुक्त होता है।
पितृ पक्ष में बेल, पीपल, तुलसी, बरगद, केला, वट वृक्ष, या शमी का पौधा लगाना चाहिए।
पितृ पक्ष में कुत्ता, गाय को भोजन कराना शुभ फलदायक होता है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. हम इसकी पुष्टि नहीं करते है.)
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