नोएडा: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की मौत की गुत्थी अभी सुलझी नहीं है. महंत के कमरे से बरामद सुसाइड नोट में उनके शिष्ट आनंद गिरि का नाम लिखा है साथ ही नरेंद्र गिरि ने नोट में आनंद पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया है. यह पहली बार नहीं है जब आनंद गिरि किसी विवाद में फंसा हो बल्कि पुराने ऐसे कई मामले में जब आनंद गिरि विवादों की वजह से सुर्खियों में रहे.
नोएडा के सेक्टर 82 स्थित ब्रह्मचारी कुटी आश्रम पर 13 जून 2020 को आनंद गिरि अपने साथियों के साथ पहुंचा था. यहां आनंद गिरि ने आश्रम पर कब्जा करने की कोशिश की थी. लेकिन, जब वो कब्जे में असफल हुआ तो अपने साथियों के साथ वहां से 16 जून को चला गया. इसकी शिकायत महाराज ने नोएडा पुलिस में भी की थी, लेकिन पुलिस ने ना तो कोई FIR दर्ज की और ना ही कोई कार्रवाई की थी.
नोएडा के सेक्टर 82 में बना आदिश्री ब्रह्मचारी कुटी आश्रम कई दशक पुराना है. बताया जा रहा है कि करीब 200 साल पुराने इस आश्रम की देखरेख यहां के महंत ओम भारती जी महाराज कर रहे हैं जो फिलहाल प्रयागराज में हैं. ओम भारती जी महाराज के शिष्य पिंटू महाराज ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि आनंद गिरि नोएडा की आश्रम पर कब्जा करना चाहता था.
उन्होंने बताया कि 13 जून 2020 को आनंद आश्रम में अपने साथियों के साथ पहुंचा था. आनंद गिरि के साथ आए लोगों ने आश्रम में मौजूद सेवक विजय भारती का मोबाइल छीन लिया था और विजय भारती को बंदी बनाकर करीब 4 दिन तक आश्रम में रहा. जब इसकी जानकारी आश्रम के महाराज ओम भारती को मिली तो वह आश्रम पहुंचे. लेकिन, उनके पहुंचने से पहले ही आनंद गिरि अपने साथियों के साथ आश्रम से निकल गया था.
15 लाख रुपये लेकर हुआ फरार
13 जून 2020 को यहां के महंत ओम भारती बोध गया में थे और उस दौरान लॉकडाउन चल रहा था. तभी मौका पाकर आनंद गिरि अपने साथियों और कुछ लोगों के साथ आश्रम पहुंचा और जबरन महंत बन गया. ओम भारती ने इसकी शिकायत तब अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरि से की तो 16 जून 2020 को आनंद गिरि कुटी से चला गया. लेकिन आनंद गिरि जाते-जाते कुटी के CCTV का DVR, जरूरी दस्तावेज और 15 लाख रुपये लेकर भाग गया.
हालांकि, आश्रम के लोगों ने इसकी जानकारी स्थानीय पुलिस स्टेशन को भी दी थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. पिंटू महाराज का आरोप है कि पुलिस ने ना तो एफआईआर दर्ज की और ना ही कोई कार्रवाई की. लेकिन, जिस तरह से आनंद गिरि अपने साथियों के साथ आश्रम पहुंचा था और महंत बनकर पूरे आश्रम पर कब्जा करने की कोशिश की थी, वह एक तरह से गुंडागर्दी थी.
आश्रम की देखरेख कई वर्षों से ओम भारती महाराज कर रहे थे और उनके बारे में आसपास के इलाके में ही नहीं बल्कि प्रशासन तक को जानकारी थी. इसके बाद आनंद गिरि को भी लग गया कि यहां उसकी दाल गलने वाली नहीं है और इसी वजह से वह वापस चला गया.
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