नई दिल्ली (New Delhi)। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा है कि एक अनाथ (orphan children) अनाथ होता है, भले ही उसके माता-पिता की मृत्यु कैसे भी हुई हो। शीर्ष अदालत ने केंद्र से पूछा कि क्या ऐसे तरीके हैं जिनसे पीएम केयर्स फंड (PM Cares Fund) सहित योजनाओं का लाभ (benefits of schemes) सभी अनाथों तक पहुंचाया जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने शुक्रवार को केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी से इस मामले में निर्देश प्राप्त करने को कहा।
पीठ ने कहा, ‘आपने अनाथों के लिए सही नीति बनाई है, जिनके माता-पिता की कोविड महामारी (Covid pandemic) के कारण मृत्यु हो गई। एक अनाथ एक अनाथ है, भले ही माता-पिता की मृत्यु किसी दुर्घटना या बीमारी में हुई हो। इन योजनाओं को लाकर आप स्थिति पर ध्यान दे रहे हैं, न कि माता-पिता पर।’
पीठ ने बनर्जी से कहा,’आप इस बारे में निर्देश चाहते हैं कि क्या कोविड-19 महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों के लिए पीएम केयर्स फंड सहित अन्य योजनाओं का लाभ अन्य अनाथ बच्चों को दिया जा सकता है।’ एएसजी ने कहा कि उन्हें हाल ही में मामले में पेश होने के लिए एक संक्षिप्त जानकारी दी गई थी और वह चार सप्ताह के भीतर अदालत के सवाल का जवाब देंगे।
याचिकाकर्ता पौलोमी पाविनी शुक्ला ने कहा कि महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों को शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत लाभ प्रदान किया गया था और अदालत के निर्देश पर अन्य अनाथ बच्चों को भी इसी तरह के लाभ दिए जा सकते हैं।
शुक्ला ने पीठ से कहा,’दो राज्य दिल्ली और गुजरात शिक्षा का अधिकार कानून की धारा 2 (डी) के तहत एक साधारण सरकारी आदेश जारी कर शिक्षा के अधिकार कानून का लाभ प्रदान कर रहे हैं और यह अन्य राज्यों में भी किया जा सकता है।’
इस मामले में पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि अनाथ बच्चों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के लिए 20 फीसदी आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए जैसा कि स्कूल में प्रवेश में अन्य बच्चों को दिया जाता है। पीठ ने बनर्जी से निर्देश प्राप्त करने और एक विस्तृत हलफनामा दायर करने के लिए कहा और राज्यों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 2 (डी) के पहलू पर अपने जवाब दाखिल करने का भी निर्देश दिया।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved