– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
अमेरिका के टेक्सास प्रांत में वही हो गया, जो पिछले 250 साल से उसके हर शहर और मोहल्ले में होता रहा है। हर आदमी के हाथ में बंदूक होती है। वह कब किस पर चला दे, पता नहीं चलता। बंदूक का प्रयोग आत्महत्या के लिए तो अक्सर होता ही है लेकिन अमेरिका में कोई दिन ऐसा नहीं गुजरता, जबकि कहीं न कहीं से सामूहिक हत्या की खबरें न आती हों। अभी टेक्सास में 18 साल के एक नौजवान ने बंदूक उठाई और अपनी दादी को मार डाला। फिर वह एक स्कूल में गया और वहां उसने दो अध्यापकों और 19 बच्चों को मौत के घाट उतार दिया। 10 दिन पहले ही न्यूयार्क के एक बड़े बाजार में एक नौजवान ने दस अश्वेत लोगों को मार डाला था। अब से लगभग 53-54 साल पहले जब न्यूयाॅर्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में मैं पढ़ता था तो मैं यह देखकर दंग रह जाता था कि वहां बाजार में खरीदारी करते हुए या किसी रेस्तरां में खाना खाते हुए भी लोग अपने बैग में या कमर पर छोटी-मोटी पिस्तौल छिपाए रखते थे। लगभग सभी घरों में बंदूकें रखी होती थीं।
इस समय अमेरिका के 33 करोड़ लोगों के पास 40 करोड़ से भी ज्यादा बंदूकें हैं। यानी हर परिवार में तीन-चार बंदूकें तो रहती ही हैं। ये क्यों रहती हैं? मुझे मेरे अध्यापकों ने बताया कि बंदूकें रखना अमेरिकी संस्कृति का अभिन्न अंग शुरू से ही है। जब दो-ढाई सौ साल पहले गोरे यूरोपीय लोग अमेरिका आने लगे तो उन्हें स्थानीय ‘रेड इंडियंस’ का मुकाबला करना होता था। उसके बाद अफ्रीकी अश्वेत लोगों का बड़े पैमाने पर अमेरिका आगमन हुआ तो शस्त्र-धारण की जरूरत पहले से भी ज्यादा बढ़ गई। इसीलिए अमेरिकी संविधान में जो दूसरा संशोधन जेम्स मेडिसन ने 1791 में पेश किया था, उसमें आम लोगों को हथियार रखने का पूर्ण अधिकार दिया गया था। वह अधिकार आज भी ज्यों का त्यों कायम है। अमेरिका की सीनेट यानी वहां की राज्यसभा, जो वहां की लोकसभा याने हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स से ज्यादा शक्तिशाली है, इस संवैधानिक कानून को कभी खत्म होने ही नहीं देती है।
डेमोक्रेटिक पार्टी के बराक ओबामा और अब जो बाइडन इसके विरुद्ध हैं लेकिन वे कुछ नहीं कर सकते। कन्जर्वेटिव पार्टी के नेता अब भी पुरानी लीक को ही पीट रहे हैं। वे यह क्यों नहीं समझते कि उनकी अकड़ की वजह से औसत अमेरिकी नागरिक का जीवन कितना भयावह हो गया है। विश्व महाशक्ति होने का दावा करनेवाला अमेरिका अपनी इस हिंसक प्रवृत्ति के कारण सारी दुनिया में कितना बदनाम होता रहता है। अमेरिका की बदनामी उसके ईसाई समाज के लिए भी चिंता का विषय है। अहिंसा और ब्रह्मचर्य का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करनेवाले ईसा मसीह के बहुसंख्यक ईसाई समाज में हिंसा, बलात्कार और व्यभिचार की बहुतायत क्या उस राष्ट्र की छवि को मलिन नहीं कर रही है?
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं।)
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