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    इस जीत में कुछ तो है !

  • November 07, 2020

    – अरविंद कुमार शर्मा

    अमेरिका और ब्रिटेन में भारतीय मूल के राजनेताओं में प्रायः हमारी रुचि बनी रहती है। यह जाने बिना कि भारत से ऐसे राजनेताओं का कितना लगाव है, हम उनसे नजदीकियां रखने का अहसास करते हैं। अब अमेरिकी उपराष्ट्रपति उम्मीदवार कमला हैरिस को ही लीजिए, वह एनआरसी और धारा 370 जैसे भारतीय मसलों पर हमसे अलग राय देती रही हैं, फिर भी भारत के लोग उन्हें अपना मानकर चलते हैं। यह अलग बात है कि कमला के भारतीय मूल का बताने के पीछे उनकी मां का भारतीय होना है। उनके पिता जमैका के हैं। इस आधार पर कमला खुद को ‘अफ्रीकी अमेरिकन’ कहती हैं और उनके इस कथन पर भी विवाद है।

    बहरहाल, हम इसबार के अमेरिकी चुनाव में भारतीय मूल के राजनेताओं के प्रदर्शन पर चर्चा कर रहे हैं। डेमोक्रेट जो बाइडन यदि राष्ट्रपति चुने गए तो इस भारतीय मूल की कमला हैरिस का उपराष्ट्रपति बनना भी तय माना जा रहा है। अमेरिका के चुनाव में वहां के भारतीय आमतौर पर डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ रहा करते हैं। यहां तक कि 2016 में भी केवल 16 प्रतिशत भारतीय अमेरिकियों ने ही ट्रंप को वोट दिया था। एक आंकड़े के मुताबिक, अमेरिका में भारतीय मूल के करीब 45 लाख लोग निवास करते हैं।

    किसी भारतीय को पहली सफलता दलीप सिंह सौंध को मिली थी। वे 1957 से 1963 तक वहां के निचले सदन यानी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के सदस्य थे। इसबार उनका रिकॉर्ड डॉक्टर एमी बेरा ने तोड़ दिया है। वर्ष 2016 में एमी बेरा ने रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार स्कॉट जोंस को हराकर दलीप सिंह सौंध की बराबरी ही की थी। अब वह चौथी बार चुनाव जीत गए हैं। डॉक्टर एमी बेरा के अतिरिक्त भारतीय मूल के ही रो खन्ना, प्रमिला जयपाल और राजा कृष्णमूर्ति भी निचले सदन के सदस्य निर्वाचित हो चुके हैं।

    इन चार के अलावा डॉक्टर हीरल तिपिर्नेनी पांचवीं भारतीय राजनेता हो सकती हैं, जिनके अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की सदस्य होने की संभावना जतायी जा रही थी। उनकी रिपब्लिकन उम्मीदवार डेबी सेल्को से कांटे की टक्कर है। बहरहाल विजय दर्ज कर चुके चारों ‘भारतीय अमेरिकन’ हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के ही सदस्य हैं। पिछली बार भी इन चारों के साथ कमला हैरिस जरूर चुनी गई थीं, पर वे ऊपरी सदन यानी सीनेट की सदस्य बनी थीं।

    निचले सदन यानी यानी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की पहली भारतीय अमेरिकी महिला प्रमिला जयपाल हैं, जो पहली बार 2016 में चुनी गई थीं। वे इसबार भी चुनाव जीत गई हैं। 55 साल की प्रमिला जयपाल को इसबार रिपब्लिकन उम्मीदवार क्रैग केलर के मुकाबले 84 फीसद वोट मिले हैं। पिछली बार जब वह चुनी गईं, उनकी 78 साल की मां भी शपथ ग्रहण देखने भारत से अमेरिका पहुंची थीं। चेन्नई में पैदा हुई प्रमिला 16 साल की उम्र में पढ़ाई के लिए अमेरिका पहुंची और 20 साल पहले 2000 में उन्होंने अमेरिकी नागरिकता हासिल कर ली। उनके पति स्टीव विलियमसन मूल रूप से अमेरिकी हैं।

    47 वर्षीय राजा कृष्णमूर्ति ने भी इस चुनाव में भारी जीत दर्ज कराई है। उन्होंने लिबरटेरियन पार्टी के प्रिस्टन नील्सन को 71 फीसद मतों के साथ हराया है। पिछली बार 2016 में रिपब्लिक पार्टी के उम्मीदवार को हराकर वह सदन में पहुंचे थे। खास बात यह है कि तुलसी गबार्ड के बाद वे ऐसे दूसरे सांसद हैं, जिहोंने पिछली बार गीता की शपथ ली थी। वर्ष 1973 में दिल्ली में पैदा हुए राज कृष्णमूर्ति जब तीन महीने के थे, तभी उनके माता-पिता न्यूयार्क में बस गए थे।

    रो खन्ना ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज की है। करीब 44 वर्षीय खन्ना ने दूसरे भारतीय-अमेरिकी 48 साल के रितेश टंडन को हराया है। खन्ना को लगभग 74 फीसद मत मिले हैं। इसके पहले 2016 में उन्होंने आठ बार सांसद माइक होंडा को हराया था। रो खन्ना के माता- पिता पंजाब से अमेरिका के फिलाडेलफ़िया पहुंचे थे। खन्ना स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं और ओबामा प्रशासन में अधिकारी भी रहे। कुल मिलाकर इस बार के अमेरिकी चुनाव में यह नई बात हुई है कि अकेले निचले सदन में ही चार भारतीय जीत हासिल कर चुके हैं। लोग पांचवें की जीत की उम्मीद कर रहे हैं।

    जैसा पहले कहा गया, यह तो बाद में ही पता चलेगा कि अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के साथ चुनकर आए भारतीय मूल के अमेरिकी भारत के प्रति क्या रुख अपनाते हैं, पर एक बात तय है कि हम भारतीय उनके बारे में और भी बहुत कुछ जानने की इच्छा रखेंगे।

    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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