नई दिल्ली। रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को 24 दिन बीत चुके हैं। दोनों देशों के बीच जारी इस जंग का असर अब पूरी दुनिया पर दिख रहा है। 24 फ़रवरी को जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था, उसके बाद से दुनियाभर में वैश्विक खाद्य और उर्जा की कीमतों में भारी उछाल आया है।
सीजीडी ने दुनिया को किया आगाह : इस बीच अमेरिकी थिंक टैंक, ‘सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट (सीजीडी)’ ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि जिस पैमाने पर युद्ध के कारण खाद्य और उर्जा की कीमतों में उछाल आ रहे हैं उससे दुनियाभर के करीब चार करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी की तरफ जा सकते हैं। सीजीडी इस बात की तरफ़ भी इशारा करता है कि पूर्व सोवियत क्षेत्र कैसे कृषि व्यापार के लिए कितना अहम है। रूस और यूक्रेन में दुनिया के 29 फीसदी गेहूं का उत्पादन होता है।
गरीब देश होंगे सर्वाधित प्रभावित : दुनिया में उत्पाद किए जाने वाले कुल खाद का छठा हिस्सा रूस और बेलारूस से आता है। थिंक टैंक का कहना है कि इन झटकों का असर व्यापक रूप से महसूस किया जाएगा, लेकिन गरीब देशों को ये ज्यादा प्रभावित करेगा। सीजीडी के विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि जी-20 समेत अनाज उत्पादकों को अपने बाज़ार खुले रखने चाहिए साथ ही उसपर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए। इस बीच सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को मानवीय जरूरतों के लिए तेजी से काम करना चाहिए।
गेंहू की कीमतों में हो रहा इजाफा : गौरतलब है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी होती जा रही है। पिछले कुछ दिनों में संघर्ष के बढ़ने के साथ-साथ खाद्य पदार्थों से लेकर तेल की कीमतों तक में इजाफा देखने को मिला है। गरीब की थाली महंगी हो रही है। दुनियाभर के लोगों को महंगाई बढ़ने का डर सता रहा है। बीते दिनों आई नोमुरा की एक रिपोर्ट के अनुसार, दोनों देशों के बीच जारी जंग अगर जल्द ही शांत नहीं होती तो इसका सबसे ज्यादा असर पूरे एशिया पर पड़ेगा और इससे सबसे ज्यादा प्रभावित भारत होगा। भारत में भी वस्तुओं के दामों में बढ़ोतरी दिखने लगी है।
रुपये में कमजोरी का बड़ा असर : गौरतलब है कि भारत तेल से लेकर जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत अन्य गैजेट्स के लिए दूसरे देशों से आयात पर निर्भर है। अधिकतर मोबाइल और गैजेट का आयात चीन और अन्य पूर्वी एशिया के शहरों से होता और अधिकतर कारोबार डॉलर में होता है। युद्ध के हालातों में अगर रुपये में इसी तरह गिरावट जारी रही तो देश में आयात महंगा हो जाएगा। विदेशों से आयात होने के कारण इनकी कीमतों में इजाफा तय है, मतलब मोबाइल और अन्य गैजेट्स पर महंगाई बढ़ेगी और आपको ज्यादा खर्च करना होगा। साथ ही बता दें कि भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। इसका भुगतान भी डॉलर में होता है और डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा। इससे माल ढुलाई महंगी होगी, इसके असर से हर जरूरत की चीज पर महंगाई की और मार पड़ेगी।
क्रूड ऑयल में तेजी का प्रभाव : विशेषज्ञों के अनुसार, युद्ध आगे बढ़ता है तो क्रूड ऑयल के दाम 120 से 150 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकते हैं। यहां आपको बता दें कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अगर कच्चे तेल की कीमतों में एक डॉलर का इजाफा होता है तो देश में पेट्रोल-डीजल का दाम 50 से 60 पैसे बढ़ जाता है। ऐसे में उत्पादन कम होने और सप्लाई में रुकावट के चलते इसके दाम में तेजी आना तय है और उम्मीद है कि कच्च तेल 150 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने से भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में 10 से 15 रुपये तक की वृद्धि देखने को मिल सकती है। बता दें कि कुछ दिनों तक कच्चे तेल की कीमत में कमी के बाद शुक्रवार को एक बार फिर ब्रेंट क्रूड का दाम 107 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गय है। बीते दिनों ये 139 डॉलर तक पहुंच गया था।
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