नई दिल्ली । अमेरिका-चीन (US-China) में बढ़ती टेंशन और चीन (China) में बदलते कारोबारी माहौल के चलते 50 अमेरिकी कंपनियां (US Company) वहां से अपना कारोबार समेटने की तैयारी में हैं. ये कंपनियां अब चीन से अपने कारोबार को दूसरे देशों में शिफ्ट करने के लिए तैयार हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा भारत को मिलेगा, क्योंकि इनमें से 30 फीसदी कंपनियां मैन्युफैक्चरिंग समेत दूसरे कारोबार के लिए भारत (India) का रुख कर सकती हैं.
अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीन छोड़ने के लिए तैयार 50 अमेरिकी कंपनियों में से 15 भारत में निवेश करना चाहती हैं. इन 50 कंपनियों का कुल निवेश 12 लाख करोड़ रुपये है. अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स की मेंबर 306 कंपनियां हैं.
निवेशकों को भाने लगा है भारत
इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत अब मेक्सिको, अमेरिका और यूरोप को पीछे छोड़कर निवेशकों की पसंद बनता जा रहा है. बीते साल भारत को निवेश के लिए 5वां स्थान दिया गया था. जबकि इस साल भारत दूसरे स्थान पर पहुंच गया है.
दक्षिण पूर्व एशियाई देश इंडोनेशिया, सिंगापुर और मलेशिया निवेशकों की पसंद में सबसे आगे है. लेकिन चीन निवेशकों की प्राथमिकता में अब अपनी पोजीशन लगातार गंवाता जा रहा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि मैनेजमेंट से जुड़ीं कंपनियों के लिए भारत की प्राथमिकता लगातार बढ़ती जा रही है. पिछले साल चीन में निवेश की योजना बना रही 40 फीसदी अमेरिकी कंपनियां अब भारत में निवेश पर विचार कर रही हैं. खासकर मैनेजमेंट कंसल्टिंग क्षेत्र में 54 परसेंट कंपनियों ने अपने निवेश की दिशा बदलकर भारत की तरफ रुख कर लिया है.
कोरोना के बाद भारत में सुधरा निवेश का माहौल
इसके अलावा गारमेंट और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने भी भारत में निवेश को लेकर अपनी प्राथमिकता जाहिर की है. अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स की मेंबर ज्यादा अमेरिकी कंपनियों ने माना है कि भारत में निवेश के प्रति बेहतर माहौल है. भारत का बड़ा मार्केट भी उन्हें यहां आने के लिए लुभा रहा है.
कोरोना के बाद चीन में निवेश के माहौल में कई बड़े बदलाव हुए हैं जो विदेशी कंपनियों को रास नहीं आ रहे. शी जिनपिंग सरकार ने बेरोजगारी और बूढ़ी होती आबादी जैसी चुनौतियों से निपटने के लिए नीतियों में बदलाव किए हैं, लेकिन इन बदलावों ने निवेशकों के भरोसे को हिला दिया है.
चीन में 16 से 24 साल के युवाओं में बेरोजगारी दर 21.3 परसेंट तक पहुंच गई है, जो 3 दशकों में सबसे ज्यादा है. ड्रैगन की उम्रदराज होती आबादी भी एक बड़ी समस्या बन गई है जिससे उत्पादन क्षमता पर असर हुआ है. इन आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों के बीच चीन की आर्थिक स्थिरता पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.
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