नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वक्त अमेरिकी यात्रा पर हैं. पीएम दूसरी बार अमेरिकी संसद को संबोधित करेंगे. ये बहुत बड़ा सम्मान है. यह उसी तरह का सम्मान होगा जैसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूर्व ब्रिटिश पीएम विंस्टन चर्चिल को मिला होगा. भारत और अमेरिका के रिश्ते 2000 के बाद से ही मजबूत हुए. उस दौरान चीन ने भी दक्षिण चीन सागर में अपनी ताकत दिखानी शुरू कर दी.
भारत-अमेरिका काफी करीब आए. दोनों के बीच विश्वास और भरोसे का रिश्ता बना और ये हर साल मजबूत होता गया. भारत-अमेरिका के बीच पहली बार रक्षा मामले में 2002 से चर्चा शुरू हुई. 2007 में क्वाड का सपना देखा गया. जापान के पीएम शिंजो आबे ने सबसे पहले इसका विचार रखा था. 2008 में हमें सैन्य विमान (P-8I,C-130) मिलना शुरू हो गए. बड़ा कार्गो विमान C-17 इसके बाद आया. चिनूक और अपाचे काफी बाद में आए.
फिर हमने VVIP विमान के रूप में बीबीजे (Boeing Business Jet) खरीदा. अब नंबर आता है पीएम और राष्ट्रपति के लिए विमान का तो हमने बोइंग 777 खरीदा. हमारे पास नौसेना के लिए हेलीकॉप्टर MH-60 है. अब हम प्रीडेटर ड्रोन (General Atomics MQ-1 Predator) खरीदने जा रहे हैं. हालांकि इनमे से दो पहले ही इंडियन नेवी का पार्ट हैं लेकिन अब हमें 30 प्रीडेटर ड्रोन की मंजूरी मिल सकती है. अमेरिका ने पहली बार 100 फीसदी टेक्नोलॉजी भारत के साथ जेट इंजन बनाने का ऑफर दिया है. G-404 का इस्तेमाल LCA (light Combat Aircraft) Mark I में पहले ही किया जा रहा है. अब इस इंजन के अपग्रेड वर्जन LCA Mark 1-A भी लगाया जाएगा. इसके लिए 99 इंजन का ऑर्डर दिया गया है.
अब भारत में जो F-414 इंजन बनने जा रहे है. ये एक जनरल इलेक्ट्रिक इंजन (General Electric F-414) है. शॉर्ट फॉर्म में इसको GE कहा जाता है. ये पहले से ही भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहा है. जैसे हेल्थ केयर. इसमें भी GE का इस्तेमाल किया जा रहा है. अमेरिका टाटा के साथ मिलकर पहले से ही भारत में General Electric Engine की एक यूनिट डाल कर रहा है. अब एयरोस्पेस में इसके इस्तेमाल को लेकर बड़ी पहल हुई है. किसी भी फाइटर जेट में सबसे अहम होता है उसका इंजन. जेट की जितनी कीमत होती है उसका लगभग एक तिहाई अकेल इंजन का होता है. अभी तक दुनिया में सिर्फ चार देश (अमेरिका, फ्रांस, यूके और रूस) ही जेट इंजन बनाते हैं. अब भारत में अगर ये इंजन बनने लगे तो ये बहुत बड़ी कामयाबी होगी. चीन ने भी बहुत हाथ पैर मारे हैं. बहुत सारा निवेश भी किया लेकिन वो सफल नहीं हो पाए.
कोई भी देश अपनी टेक्नॉलजी शेयर नहीं करता. ये बहुत बड़ी बात होती है. अमेरिका इसके लिए तैयार हो गया है. वो भी 100 फीसदी. भारत में पहले से ही इंजन बन रहे हैं. लेकिन वो रूस और यूके के लाइसेंस पर. किसी ने भी हमें टेक्नॉलिजी नहीं दी. हमारे पास प्रोडक्शन की टेक्निक है. आसान भाषा में आपको समझाने की कोशिश करते हैं. हमें प्रोडक्ट मिल गया और एक नक्शा मिल गया. उस नक्शे में जैसे-जैसे बताया गया है आप उसको वैसे-वैसे फिट करते जाइये, इंजन तैयार हो जाएगा. लेकिन उसके लिए जो कंपोमेंट्स हैं उसकी जानकारी कोई शेयर नहीं करता.
अमेरिकियों का कहना है कि ये एक गंभीर मुद्दा है. अमेरिका भारत को जेट इंजन की 100 फीसदी टेक्नॉलिजी का ट्रांसफर करने जा रहा है. इससे एक ऐसा इकोसिस्टम तैयार होगा जहां भारत में ही मीडियम और छोटे स्तर के ऑर्डर मिलेंगे. लंबे वक्त तक भारत के पास इंजन बनाने की क्षमता होगी. पीएम मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान कुछ डील पर साइन होंगे. पीएम अमेरिकी संसद को भी संबोधित करेंगे. इसका मतलब ये है कि रूस के साथ हमारे घनिष्ठ संबंधों के बावजूद अमेरिका इस संवेदनशीलता को पहचान पा रहा है. इसका मतलब ये भी है कि ये हमारी रणनीतिक नीति है और स्वायत्ता है. अमेरिका भी चाहता है कि भारत का मजबूत रहना बहुत आवश्यक है क्योंकि चीन दक्षिण एशिया में लगातार अपनी ताकत बढ़ा रहा है. यहां पर अगर चीन को कोई रोक सकता है तो वो भारत ही है.
दुनिया भर में ड्रोन की तकनीक का खूब इस्तेमाल हो रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध तो ड्रोन से ही लड़ा जा रहा है. अमेरिका के साथ टेक्नोलॉजी के संबंध में हमारा पहले से ही जुड़ाव है. सेना, नेवी, एयरफोर्स, पुलिस, बीएसएफ और कई एजेंसियां ड्रोन का इस्तेमाल कर रही हैं. ये लेकिन ये बहुत छोटा होता है आसानी से आप इसे हाथ में उठा सकते हैं. भारत में आज छोटे-छोटे ड्रोन के 100 से ज्यादा स्टार्टअप भी हैं. पीएम मोदी ने खुद ड्रोन एसोसिएशन के दो बड़े प्रोग्राम का उद्घाटन किया है. लेकिन बड़े ड्रोन क्या हैं? ये भी एक सवाल है. DRDO तापस ड्रोन पर काम कर रहा है. इनमें से एक विमान ने इसी साल एयरो इंडिया शो के दौरान उड़ान भी भरी थी. हम ड्रोन टेक्निक में काफी तेजी से विकास कर पा रहे हैं. उम्मीद है कि अगले कुछ सालों में आप सेना में इन ड्रोन का इस्तेमाल देखेंगे. लेकिन इसके लिए हमें आयात पर ही निर्भर रहना होगा. भारत ने इजरायल से सर्चर और हेरॉन खरीदा है. लेकिन हमें बड़े ड्रोन की आवश्यकता है. अमेरिकी कांग्रेस ने कुच साल पहले प्रीडेटर को भेजने की मंजूरी दी थी. भारत सरकार ने उनमें से 30 General Atomics MQ-1 Predator के खरीद की मंजूरी दी थी. अब उम्मीद है कि पीएम मोदी के दौरे पर कुछ डील जरूर होगी.
भारत को इस दिशा में अपनी ताकत बढ़ानी होगी. मौजूदा वक्त में भारत की क्षमता 42 लड़ाकू स्क्वाड्रनों की है. लेकिन अभी भारत के पास 30-31 फाइटर जेट ही रह गए हैं. अपग्रेड वर्जन मार्क 1 ए अगले साल आना शुरू हो जाएगा और सभी मार्क 1ए (उनमें से 83) 2029 तक आ जाएंगे. इस गैप को भरने की आवश्यकता है. हमें कभी ये नहीं भूलना चाहिए कि भारत सबसे खतरे वाले देशों में एक है. इसके दो पड़ोसी दोनों परमाणु शक्ति से संपन्न हैं. दोनों के साथ हमारे रिश्ते तनावपूर्ण हैं. संयोग से हमारे पास राफेल मौजूद है. इसने नौसेना के साथ लैंडिंग की है. राफेल का लाभ ये है कि हमारे पास पहले से ही इसके इकोसिस्टम से हम परिचित हैं. दूसरी तरफ GE इंजन का वाला F-18 है. इसका उत्पादन भारत में ही किया जाएगा.
पीएम मोदी एक करिश्माई नेता हैं. वो दुनियाभर में सबसे लोकप्रिय नेताओं में एक हैं. बीते नौ सालों में महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं. चाहे वो इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास हो या आत्मनिर्भर भारत के तहत स्वदेशीकरण को बढ़ावा देना हो. इसके साथ ही बड़ी संख्या में नेताओं के साथ मजबूत संबंध बनाना हो. इसका पता तब चलता है जब वो किसी विदेशी यात्रा में होते हैं और उस वक्त वहां जब वो लोगों से मिलते हैं तो उनका बॉडी लैंग्वेज कुछ और ही कहता है. यही कारण है कि भारत की ओर पूरे विश्व का झुकाव है.
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