नई दिल्ली. अमेरिका ने चीन को बड़ा झटका देते हुए तिब्बत में धार्मिक-आजादी से जुड़ा एक नया कानून पारित किया है। इस कानून को पारित करने को लेकर तिब्बत के राजनीतिक प्रमुख ने अमेरिका के फैसले का स्वागत किया है। दरअसल, अमेरिकी संसद में सोमवार रात तिब्बत पॉलिसी एंड सपोर्ट एक्ट पारित किया। यह एक्ट तिब्बत को अपने आध्यात्मिक नेता दलाई लामा का उत्तराधिकारी चुनने की आजादी देता है। चीन आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा को अलगाववादी करार देता रहा है। ऐसे में अमेरिकी संसद द्वारा तिब्बत के समर्थन में उठाया गया, ये कदम अमेरिका और चीन के बीच विवाद और बढ़ा सकता है।
निर्वासित तिब्बत सरकार के पीएम और तिब्बती केंद्रीय प्रशासन (CTA) के अध्यक्ष लोबसांग सांगेय ने समाचार एजेंसी रायटर्स से बातचीत में अमेरिकी संसद द्वारा पास तिब्बत नीति और समर्थन अधिनियम (TPSA) को ऐतिहासिक बताया। । अमेरिका के इस कदम से चीन बौखला गया। चीन के विदेश मंत्रालय ने अमेरिका पर आंतरिक मामलों में दखल देने का आरोप लगाया। अमेरिका के प्रस्ताव को लेकर सवाल पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने वांग वेनबिन ने कहा, तिब्बत, ताईवान और हांगकांग चीन की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता से जुड़ा है। ये चीन के अंदरूनी मामले हैं। इसमें विदेशी दखल बर्दाश्त नहीं है।
वांग ने कहा, हम आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप और कानून से नकारात्मक धाराओं पर हस्ताक्षर करने से रोकने की अपील करते हैं। अगर अमेरिका ऐसा नहीं करता तो यह द्विपक्षीय संबंधों को नुकसान पहुंचाएगा। चीन हमेशा से ही पूरे तिब्बत को अपना इलाका मानता था। इसी के चलते 21 अक्टूबर, 1950 को चीन ने तिब्बत पर हमला कर दिया था। इस दौरान हजारों लोगों की हत्या की गई थी। वहीं, दलाई लामा 1959 में चीनी शासन के खिलाफ एक असफल विद्रोह के बाद भारत में आ गए। अमेरिका ने तिब्बत पॉलिसी एंड सपोर्ट एक्ट को पारित किया है।
यह बिल तिब्बत में धार्मिक आजादी के साथ साथ लोकतंत्र को मजबूत करने पर्यावरण सरंक्षण, धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को बचाने का समर्थन करता है। नए अमेरिकी कानून में तिब्बत में मानवधिकारों पर भी जोर दिया गया है. इसके अलावा तिब्बत की राजधानी ल्हासा में अमेरिकी काउंसलेट खोलने की बात भी की गई है। यह कानून तिब्बत से एनजीओ आदि को फंडिंग देने पर जोर देता है। इसके अलावा इस कानून में दलाई-लामा समर्थित लोकतांत्रिक सरकार को पूरी तरह से मंजूरी देते हुए तिब्बत से जुड़े मुद्दों पर चीनी सरकार को बातचीत करने के लिए कहा गया है। अगर चीन ऐसा नहीं करता तो उस पर पाबंदियां भी लगाई जा सकती हैं।
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