वाशिंगटन. राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने अमेरिकी सीनेटर मार्को रुबियो (Marco Rubio) को विदेश मंत्री ( foreign minister) पद के लिए अपना उम्मीदवार चुना है. यह जानकारी सूत्रों के हवाले से दी है. अगर पुष्टि हो जाती है, तो रुबियो जनवरी में ट्रंप के पदभार संभालने के बाद अमेरिका के टॉप राजनयिक (Top Diplomat) के रूप में काम करने वाले पहले लैटिन अमेरिकन होंगे. फ्लोरिडा के मूल निवासी रुबियो को ट्रंप की शॉर्टलिस्ट में सबसे आक्रामक उम्मीदवारों में से एक माना जाता था.
पिछले कुछ साल में, उन्होंने अमेरिका के दुश्मनों के लिए सख्त रुख अपनाने की वकालत की है. इसके साथ ही चीन, ईरान और क्यूबा जैसे देशों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का ताकत से जवाब देने की रहनुमाई की है.
2016 के रिपब्लिकन राष्ट्रपति पद के नामांकन के लिए पूर्व प्रतिद्वंद्वी रुबियो को चुनने का ट्रंप का फैसला उनकी विदेश नीति की दिशा में संभावित बदलाव का संकेत देता है. प्रमुख गठबंधनों के समर्थन और अमेरिकी विरोधियों पर आलोचनात्मक रुख के लिए जाने जाने वाले 53 वर्षीय रुबियो सीनेट में अनुभवी विदेश नीति का नजरिया लाते हैं.
भारत के साथ संबंधों के समर्थक
रुबियो भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने के मुखर समर्थक रहे हैं. उन्होंने भारत को हिंद-प्रशांत इलाके में एक महत्वपूर्ण साझेदार के रूप में स्थापित किया है. पिछले कुछ साल में, उन्होंने अमेरिका-भारत सहयोग को गहरा करने की कोशिशों की वकालत की है, खासकर रक्षा और व्यापार के क्षेत्रों में.
रुबियो का भारत के प्रति समर्थन एशिया में चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए कांग्रेस में द्विदलीय कोशिशों के मुताबिक है. उन्होंने अक्सर मजबूत भारत-अमेरिका संबंधों की रणनीतिक अहमियत को उजागर किया है, ऐसी नीतियों की वकालत की है, जो न केवल साझा आर्थिक हितों को बढ़ावा देती हैं बल्कि दोनों देशों के लोकतांत्रिक सिद्धांतों को भी मजबूत करती हैं.
चीन पर सख्त रुबियो
चीन के मामले में रुबियो का रुख काफी सख्त है. सीनेट में चीन नीति पर एक अग्रणी आवाज के रूप में, उन्होंने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के मानवाधिकारों के हनन, व्यापार प्रथाओं और दक्षिण चीन सागर में आक्रामक कार्रवाइयों की आलोचना की है. उन्होंने उन नीतियों का समर्थन किया है, जो चीन पर आर्थिक दबाव बढ़ाती हैं, जिसमें प्रतिबंध और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर प्रतिबंध शामिल हैं.
रुबियो का नजरिया चीन को घरेलू और इंटरनेशनल लेवल पर उसके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराने पर जोर देता है. अगर उनकी नियुक्ति होती है, तो वे विदेश विभाग में भी यही पद संभालेंगे. उनके पिछले रिकॉर्ड से पता चलता है कि वे चीनी प्रभाव के खिलाफ अमेरिका के सख्त रुख पर जोर देते रहेंगे, जिसमें भारत, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ संबंधों को मजबूत करना भी शामिल है.
NATO के कट्टर समर्थक
रुबियो का विदेश नीति का अनुभव यूरोप तक भी फैला हुआ है, जहां वे NATO के कट्टर समर्थक रहे हैं. अपने सीनेट करियर के दौरान, रुबियो ने वैश्विक स्थिरता को बनाए रखने और रूसी आक्रामकता का मुकाबला करने में NATO गठबंधन की अहमियत पर जोर दिया है.
NATO के बोझ को साझा करने की ट्रंप की पिछली आलोचना के विपरीत, गठबंधन के लिए रूबियो का मुखर समर्थन यूरोपीय भागीदारों के साथ ज्यादी सहयोगी नजरिए को प्रोत्साहित कर सकता है. रूबियो ने कलेक्टिव डिफेंस के लिए अमेरिकी प्रतिबद्धताओं की जरूरत पर जोर दिया है, नाटो को “अमेरिकी सुरक्षा का एक स्तंभ” कहा है और रूसी और अन्य ग्लोबल खतरों का मुकाबला करने में इसकी भूमिका को गौर किया जाता है.
रुबियो के एजेंडे में यूक्रेन-रूस युद्ध सबसे ऊपर होगा. फ्लोरिडा के सीनेटर ने हाल ही में दिए इंटरव्यू में कहा कि यूक्रेन को रूस के साथ बातचीत के जरिए समाधान की तलाश करनी चाहिए, न कि पिछले दशक में रूस द्वारा कब्जा किए गए सभी इलाकों को वापस पाने पर जोर देना चाहिए.
वह अप्रैल में पारित यूक्रेन के लिए 95 बिलियन डॉलर के सैन्य सहायता पैकेज के खिलाफ वोट देने वाले 15 रिपब्लिकन सीनेटरों में से एक थे. रुबियो ने सितंबर में NBC से कहा, “मैं रूस के पक्ष में नहीं हूं – लेकिन दुर्भाग्य से वास्तविकता यह है कि यूक्रेन में युद्ध का अंत बातचीत के जरिए ही होगा.”
फिलिस्तीन-इजरायल पर रुबियो का क्या रुख?
मिडिल ईस्ट पर रुबियो ने हमास-इजरायल संघर्ष पर मजबूत रुख अपनाया है. उन्होंने लंबे वक्त से इजरायल को एक प्रमुख अमेरिकी सहयोगी के रूप में समर्थन दिया है और हमास जैसे अन्य समूहों की आलोचना की है. जिन्हें वे क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा मानते हैं. रुबियो ने इजरायल को सुरक्षा सहायता का समर्थन किया है और हमास की कार्रवाइयों की निंदा की है, गाजा से शुरू होने वाली हिंसा के लिए निर्णायक प्रतिक्रिया का आह्वान किया है. इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के प्रति उनका नजरिया पारंपरिक GOP विचारों के मुताबिक है, जो इजरायल की सुरक्षा को मजबूत करने वाली नीतियों की वकालत करते हैं जबकि शत्रुतापूर्ण या चरमपंथी माने जाने वाले समूहों को अलग-थलग करने की कोशिश करते हैं.
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