वाशिंगटन । दुनिया के सबसे ताकतवर दफ्तर के लिए दोनों प्रमुख दावेदार यानी कमला हैरिस (Kamala Harris) और डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) इन दिनों अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। चुनावी मैदान में आरोप-प्रत्यारोप से लेकर मतदाताओं (Voters) को लुभाने के सब हथकंडे खूब आजमाए जा रहे हैं। नतीजों के बाद वाशिंगटन (Washington) के व्हाइट हाउस (White House) में कमला की सत्ता जमेगी या ट्रंप का कार्ड चलेगा, यह तो 5 नवंबर को होने वाला मतदान तय करेगा। लेकिन, इस चुनावी रेस के लिए अमेरिका में अर्ली वोटिंग यानी समय-पूर्व मतदान की कवायद जोर-शोर से जारी है।
3 करोड़ लोग कर चुके है मतदान
30 करोड़ में से करीब 3 करोड़ मतदाता अपना वोट डाल चुके हैं। इनमे पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और जिमी कार्टर भी शामिल हैं। ओबामा ने तो सोशल मीडिया पर एक वीडियो साझा करते हुए डाक मत की पूरी प्रक्रिया भी समझाई है और मतदाताओं से वोटिंग की अपील की है। अर्ली वोटिंग में मतदाता तय तिथि से पहले अपने नजदीकी वोटिंग बूथ पर जाकर वोट डाल सकते हैं। साथ ही डाक मतों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
स्विंग स्टेट्स में तेज अर्ली वोटिंग
अमेरिका में चुनावी रेस अक्सर कुछ सूबों की लड़ाई भी कही जाती है। अमेरिका के 50 सूबों में से अधिकतर में किसी एक दल के रजिस्टर्ड मतदाताओं की बहुलता के कारण उनके नतीजे प्रत्याशित ही होते हैं। ऐसे में कई सूबों का रंग लाल ( रिपब्लिकन) है या नीला (डेमोक्रेट), यह लगभग तय ही है। मगर कुछ सूबे पर्पल (बैंगनी) स्टेट्स कहे जाते हैं यानी ऐसे राज्य जहां रिपब्लिकन व डेमोक्रैटिक पार्टी के वोटर लगभग बराबर हैं।
स्विंग स्टेट को जीतना उम्मीदवार के लिए चुनौती
राष्ट्रपति पद के किसी भी उम्मीदवार के लिए इन बैटल-ग्राउंड स्टेट्स या स्विंग स्टेट को जीतना ही सबसे बड़ी चुनौती होता है। क्योंकि यह ऐसे सूबे हैं जहां नतीजे रिपब्लिकन और डेमोक्रेट पार्टियों के बीच पाले बदलते रहे हैं। हर उम्मीदवार इन सूबों में ही प्रचार पर खास ध्यान देता है। कमला हैरिस औऱ डोनाल्ड ट्रंप के बीच चल रहे चुनावी मुकाबले में इस बार एरिजोना, जॉर्जिया, मिशिगन, पैनसिल्वेनिया, नॉर्थ कैरोलाइना समेत 7 सूबों को निर्णायक कहा जा रहा है।
क्या कहते है आकड़े
ताजा आंकड़े बताते हैं कि जॉर्जिया, पैनसिल्वेनिया और एरिजोना जैसे स्विंग सूबों में मतदाताओं ने अर्ली वोटिंग में खासा उत्साह दिखाया है। इनमें भी बड़ी संख्या महिलाओं की है। एरिजोना में जहां रिपब्लिकन पार्टी के मतदाताओं ने बड़ी संख्या में डाक मतों का इस्तेमाल किया है, वहीं पैनसिल्वेनिया में डाक मतों का इस्तेमाल करने वालों में डेमोक्रेटिक पार्टी के पंजीकृत वोटरों की संख्या काफी ज्यादा है। स्विंग स्टेट्स में अर्ली वोटिंग के आंकड़े न केवल उम्मीदवारों की चुनावी ताकत की बानगी दिखाएंगे, बल्कि इस बात के भी संकेत भी दे देंगे कि दोनों में से कौन अंतर को पाट सकेगा।
चुनाव की पांच प्रमुख तारीखें
अमेरिका में मतदान खत्म होते ही मतों की गिनती शुरू हो जाती है। 24 घंटे के भीतर आमतौर पर नतीजों की तस्वीर साफ हो जाती है। मगर कांटे की टक्कर, पेचीदा प्रक्रिया के कारण कई बार यह प्रक्रिया हफ्तों तक भी खिंचती रही है।
अमेरिकी संविधान के मुताबिक दिसंबर माह के दूसरे मंगलवार के बाद आने वाले पहले सोमवार को सभी 50 राज्यों व डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया में इलेक्टर राष्ट्रपति पद उम्मीदवार के चुनाव के लिए जमा होते हैं। इस बार यह कवायद 17 दिसंबर को होगी।
नए राष्ट्रपति के शपथ ग्रहण के लिए 20 जनवरी की तारीख मुकर्रर है।
कांग्रेस और सिनेट के बीच चुनाव
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के साथ ही कांग्रेस और सिनेट के लिए भी चुनाव होते हैं। लिहाजा चुनाव बाद जनवरी माह की तीसरी तारीख को नए सदस्यों वाली कांग्रेस की पहली बैठक होती है। साथ ही 6 जनवरी को हाउस व सिनेट की संयुक्त बैठक की तिथि तय है जिसमें इलेक्टोरल मतों की अंतिम गिनती पर मुहर लगाई जाती है।
तीन तरीकों से वोटिंग
अमेरिका में चुनाव के लिए मतदान की व्यवस्था लगभग वैसी ही है जैसी भारत में होती है। यानी मतदान एक निर्धारित केंद्र पर किया जाता है। इसके अलावा डाक से भी लोग वोट देते हैं। अंतर है तो बस अर्ली वोटिंग यानी तय तिथि से पूर्व मतदान का।
साल 2020 में कोविड काल में हुए राष्ट्रपति चुनाव में रिकॉर्ड संख्या में लोगों ने डाक मतपत्रों का इस्तेमाल किया। इसके बाद से डाक-मतपत्र सुविधा को लेकर रुझान बढ़ा है।
अमेरिका में अर्ली वोटिंग यानी तय मतदान तिथि से पहले भी एक नियत अवधि में वोट दे सकते हैं। इसके तहत 2.5 करोड़ से ज्यादा लोगों ने मत डाले हैं। इनमें एक बड़ी संख्या उनकी है जिन्होंने बूथ पर जाकर वोट दिया, जबकि कई ने डाक मतों का उपयोग किया। अर्ली वोटिंग 4 नवंबर तक चलेगी।
अमेरिका ऐसे चुनता है राष्ट्रपति
दुनिया के दो बड़े और जीवंत लोकतंत्रों यानी भारत और अमेरिका चुनावों के जरिए ही अपना नेता चुनते हैं। मगर दोनों मुल्कों में शासन व्यवस्था भी अलग है और अपना नेता चुनने का तरीका एक दूसरे से काफी अलग है। खैर, चलिए आपको बताते हैं कि आखिर अमेरिका अपना नेता यानी राष्ट्रपति चुनता कैसे है और अमेरिकी चनाव की कवायद भारतीय निर्वाचन प्रणाली से कितनी अलग है।
भारत और अमेरिका के चुनाव में अंतर को समझिए
भारत और अमेरिका के चुनाव में सबसे बड़ा अंतर तो ताकतवर दफ्तर के लिए उम्मीदवारों के चयन में ही नजर आ जाता है। भारत में चुनावी बहुमत हासिल करने वाले दल के सांसद जिसे अपना नेता चुनते हैं जो प्रधानमंत्री बनता है। वहीं अमेरिका में कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दावेदारी का खुद ऐलान करता है। जीत जाए तो वही राष्ट्रपति बनता है। यानी अमेरिका में जनता राष्ट्रपति पद के लिए पसंदीदा उम्मीदवार के नाम पर वोट देती है।
राष्ट्रपति पद का दावेदार अपनी पार्टी चुनने के साथ ही शुरुआत में अपने चुनाव के लिए खुद ही फंड भी जुटाता है और प्रचार भी करता है। उसकी लोकप्रियता और जन समर्थन का पलड़ा तौलने के बाद रिपब्लिकन या डेमोक्रेटिक पार्टी उसकी पीठ पर हाथ रखती है। यानी अपने अधिवेशन में औपचारिक तौर पर उसकी उम्मीदवारी पर मुहर लगाती हैं।
नवंबर में चुनाव होने का कारण
चुनाव की अवधि और तारीख भी दोनों देशों के चुनावों का एक बड़ा अंतर है। भारत में हर पांच साल में आम चुनाव होते हैं। वहीं अमेरिका में राष्ट्रपति पद का कार्यकाल चार साल का होता है। इसके अलावा एक बड़ा फर्क मतदान की तारीखों का भी है। भारत में आम चुनावों की तारीख बदलती रही है वहीं अमेरिका पिछले करीब 180 सालों से राष्ट्रपति पद चुनाव के लिए नवंबर के पहले मंगलवार को वोट डालता आ रहा है। अमेरिकी संविधान के मुताबिक मंगलवार भी वो जो नवंबर माह में ही पहले सोमवार के बाद आए। इस बार यह तारीख 5 नवंबर है। साल 2020 में वोट 3 नवंबर को डाले गए थे तो 2016 में 8 नवंबर को वोटिंग हुई थी।
जनता नहीं इलेक्टर्स चुनते हैं राष्ट्रपति
अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव सीधे नहीं होता। जनता उन लोगों को चुनती है जो राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। अमेरिका के 50 सूबों से ऐसे 538 इलेक्टर्स को चुना जाता है। इसे ही इलेक्टोरल कॉलेज कहा जाता है। इलेक्टर्स की यह संख्या हर राज्य में अलग अलग है और इसका निर्धारण सूबे में आबादी के अनुपात से किया जाता है। यानी कैलिफोर्निया जैसे राज्य से जहां 55 इलेक्टर्स चुने जाते हैं तो वहीं अलबामा और व्योमिंग जैसे छोटे राज्य में केवल एक ही इलेक्टर चुना जाता है। बाद में पार्टी पसंद के आधार पर चुने गए इलेक्टर्स राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए मतदान करते हैं।
एक नजर चुनावी इतिहास पर
अमेरिका का चुनावी इतिहास बताता है कि जनता का पॉपुलर वोट हासिल करने वाले उम्मीदवार भी चुनाव हारे हैं और इलेक्टोरल कॉलेज का मैजिक नंबर हासिल कर नेता व्हाइट हाउस का सफर सुनिश्चित कर लेते हैं।
राष्ट्रपति बनने के लिए किसी भी उम्मीदवार को 270 या उससे अधिक मत हासिल करने होते हैं। चुनाव ‘विनर टेक्स ऑल’ के सिद्धांत पर होता है। किसी भी राज्य में 50 फीसद से अधिक इलेक्टर्स का वोट हासिल करने वाले उम्मीदवार के खाते में ही शेष सभी इलेक्टर्स के मत भी चले जाते हैं।
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