वाशिंगटन (Washington)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के इस साल के मध्य में होने वाले अमेरिका दौरे (america tour) से पहले ही बाइडन प्रशासन (Biden administration) भारत (India) के साथ एक बड़े रक्षा समझौते ( jet engine deal) को अंजाम देने की तैयारी कर रहा है। इस बात का खुलासा अमेरिका में भारतीय मूल के डेमोक्रेट सांसद की तरफ से ही किया गया है। खन्ना के मुताबिक, फाइटर जेट के लिए बनने वाले इंजन की डील पर अमेरिका की ओर से पूरी तैयारी कर ली गई है और पीएम मोदी के दौरे से पहले ही इस पर अंतिम फैसला हो सकता है।
अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउज ऑफ रिप्रेंजेटेटिव्स के सदस्य खन्ना ने कहा कि भारत को पता है कि सोवियतकाल के सैन्य उपकरण अब ठीक से काम नहीं करते और रूस भी अब धीरे-धीरे चीन की तरफ झुक रहा है। साथ ही भारत भी अब खुले तौर पर अमेरिका के साथ मजबूत रिश्ता बनाने का इच्छुक है।
उन्होंने कहा, “अमेरिकी सरकार की प्राथमिकता है कि यह समझौता जल्द से जल्द हो जाए, उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे से पहले। हम इस पर ही काम कर रहे हैं।” उन्होंने कहा कि हम यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि पीएम मोदी अमेरिकी संसद के साथ बातचीत करें। दोनों सदनों के उपसभापति स्पीकर से उन्हें न्योता देने का अनुरोध करेंगे।
‘भारत की ऊर्जा जरूरतों पर भी सोचना जरूरी’
भारतीय मूल के सांसद ने कहा कि हमें रक्षा क्षेत्र में मजबूत होना होगा और यह बेहद अहम समय है। जेट इंजन्स रक्षा लिहाज से बेहद जरूरी हैं। खन्ना ने भारत की ऊर्जा और ईंधन जरूरतों को पूरा करने पर भी जोर दिया और कहा कि हमें विकास के लिए एक वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत ढूंढना होगा। हमें खुशी है कि भारत ने यूक्रेन में पुतिन के आक्रमण की निंदा की है। भारत और रूस के बीच के रिश्ते अमेरिका के लिए चिंता का विषय नहीं होने चाहिए, क्योंकि हमारी साझेदारी आने वाले दशकों तक चलने वाली है।
भारत के लिए क्यों अहम है जेट इंजन पर समझौता?
गौरतलब है कि भारत के पास अभी अधिकतर फाइटर जेट्स रूसी मूल के हैं। भारत ने अब तक अपने लड़ाकू विमानों के लिए उपकरण भी रूस से ही खरीदे हैं। हालांकि, मोदी सरकार अपनी रक्षा खरीद को लगातार विविधता देने की कोशिश कर रही है। इसी सिलसिले में भारत की तरफ से अपने लड़ाकू विमानों के लिए अमेरिकी जेट इंजन्स लेने पर बात चल रही है। माना जा रहा है कि चीन की बढ़ती चुनौती से निपटने और भारत की रूसी हथियारों पर निर्भरता को कम करने के लिए यह बड़ा कदम साबित हो सकता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने की थी समझौते पर बात
इसी साल की शुरुआत में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल अमेरिका दौरे पर गए थे। यहां दोनों देशों के बीच जेट इंजन डील को लेकर बातचीत हुई थी। खबर आई थी कि दोनों देश जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी (जीई) के इंजनों का संयुक्त उत्पादन कर सकते हैं। क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी समझौते के तहत ये अहम तकनीक भारत को मिल सकती है।
भारत के लिए कितने अहम होंगे ये इंजन
बाइडन प्रशासन जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी के प्रस्ताव पर विचार कर रहा है और जल्द ही भारतीय लड़ाकू विमानों में इन इंजनों को इस्तेमाल करने की मंजूरी दे सकता है। हालांकि अभी तक यह तय नहीं है कि इसकी मंजूरी कब तक मिल सकेगी।
बता दें कि अगर अमेरिकी सरकार जनरल इलेक्ट्रिक कंपनी के प्रस्ताव को मंजूर कर लेती है तो यह भारत की रूस के हथियारों पर निर्भरता कम करने की दिशा में ऐतिहासिक कदम होगा। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से ही अमेरिका कूटनीतिक तौर पर रूस को अलग-थलग करने में जुटा है। फिलहाल भारतीय लड़ाकू विमान, रूस, यूरोप और भारत की खुद की मिश्रित तकनीक से बनाए जाते हैं।
आगे भी जारी रह सकता है यह सहयोग
लड़ाकू विमानों के इंजन के संयुक्त उत्पादन के साथ ही अमेरिका भारत के साथ आर्टिलरी सिस्टम, आर्मर्ड इंफेंट्री व्हीकल, सेमीकंडक्टर, क्वाटंम कंप्यूटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के साथ ही मेरीटाइम सिक्योरिटी जैसे क्षेत्रों में सहयोग कर सकता है।
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