नई दिल्ली । 2008 के मुंबई आतंकी हमले(mumbai terror attack) के एक प्रमुख आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा(Main accused Tahawwur Hussain Rana) को अमेरिका से प्रत्यर्पित(Extradited from the US) कर गुरुवार को दिल्ली(Delhi) लाया गया। अब उस पर भारत में देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, हत्या और आतंकवाद जैसे गंभीर आरोपों के तहत मुकदमा चलेगा। इसके लिए उसे मौत तक की सजा दी जा सकती है। राणा की प्रत्यर्पण प्रक्रिया के दौरान भारत और अमेरिका दोनों ने यह स्पष्ट किया कि सजा में मौत की सजा को बाहर नहीं रखा गया है। यह इस मामले की गंभीरता को दर्शाता है।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने राणा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की जिन धाराओं में मुकदमा दर्ज किया है उनमें 120-B (आपराधिक साजिश), 121 (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ना), 121-A (युद्ध छेड़ने की साजिश), 302 (हत्या), 468 और 471 (जालसाजी और जाली दस्तावेजों का उपयोग) के अलावा गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम UAPA की धाराएं भी शामिल हैं। राणा के खिलाफ धारा 18 और 20 (आतंकवादी गतिविधियों से संबंधित अपराध) के तहत भी मामला दर्ज किया गया है।
NIA के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “जिन अपराधों के लिए राणा का प्रत्यर्पण हुआ है वे अमेरिका में भी अपराध माने जाते हैं। इसलिए अमेरिका की ओर से मौत की सजा को लेकर कोई आपत्ति नहीं जताई गई है।”
जेल में सुरक्षा और प्रताड़ना से सुरक्षा की गारंटी
भारत सरकार ने अमेरिका को यह भरोसा भी दिलाया है कि राणा को भारत में हिरासत के दौरान पूरी सुरक्षा दी जाएगी और उसे प्रताड़ित नहीं किया जाएगा। इससे पहले 2005 में अबू सलेम के प्रत्यर्पण के समय पुर्तगाल को भारत ने मौत की सजा न देने की गारंटी दी थी। लेकिन राणा के मामले में ऐसी कोई शर्त लागू नहीं की गई।
कौन है तहव्वुर राणा?
तहव्वुर राणा का जन्म 1961 में पाकिस्तान में हुआ था। वह अब कनाडा का नागरिक बन गया है। वह शिकागो कैंपबेल एवेन्यू में रहता था। 18 अक्टूबर 2009 को अमेरिकी जांच एजेंसी एफबीआई ने उसे गिरफ्तार किया था। वह पाकिस्तानी सेना में डॉक्टर (कैप्टन रैंक) रह चुका है। इसके बाद उसने इमिग्रेशन लॉ सेंटर खोला था।
राणा और डेविड कोलमैन हेडली एक साथ पाकिस्तान के मिलिट्री बोर्डिंग स्कूल में पढ़े थे और वहीं से उनकी दोस्ती शुरू हुई। बाद में राणा ने कनाडा की नागरिकता ली और शिकागो में बसकर कई व्यवसाय शुरू किए। कोर्ट दस्तावेजों के अनुसार, राणा ने न केवल हेडली और अन्य साजिशकर्ताओं को वित्तीय और लॉजिस्टिक सहायता दी, बल्कि पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं से नियमित संपर्क भी बनाए रखा।
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