वॉशिंगटन । अमेरिका ने तिब्बत पर कानून बनाकर इस पर्वतीय इलाके पर चीन के अधिकार को सीधी चुनौती दे दी है। चीन यहां 50 साल से ज्यादा समय से लगातार उत्पीड़न कर रहा है। वहां की सांस्कृतिक पहचान नष्ट करने के लिए सुनियोजित चालें चल रहा है। तिब्बत के आध्यात्मिक प्रमुख दलाई लामा ने भारत में शरण ली हुई है और उनके संरक्षकत्व में यहीं से तिब्बत की निर्वासित सरकार कार्य कर रही है।
अमेरिका ने हाल ही में द टिबेटन पॉलिसी एंड सपोर्ट एक्ट (टीपीएसए) बनाकर तिब्बत में चीन के उत्पीड़न को रोकने की शुरुआत कर दी है। इससे पहले तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री को अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने आमंत्रित किया था और उनके साथ आधिकारिक वार्ता की थी। चीन ने इस पर कड़ा विरोध जताया था।
थिंक टैंक यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (ईएफएसएएस) ने कहा है कि अमेरिकी कानून ने भारत के लिए चीन से भविष्य के संबंध तय करने के लिए बातचीत के विकल्पों को बढ़ाया है। भारत इस कानून का हवाला देकर चीन के साथ तिब्बत मसले पर कड़ाई के साथ बात कर सकता है। भारत को इस मामले में अब अमेरिका का साथ मिलना भी तय हो गया है।
अमेरिकी संसद में टीपीएसए को सत्ता पक्ष और विपक्ष का मजबूत समर्थन मिला। इससे संबंधित प्रस्ताव को प्रतिनिधि सभा में सांसद जेम्स मैकगवर्न और क्रिस स्मिथ ने रखा था। जबकि सीनेट में मार्को रूबियो और बेन कार्डिन ने पेश किया था। तिब्बत के लिए चलने वाला अंतरराष्ट्रीय अभियान का मानना है कि टीपीएसए पर्वतीय राष्ट्र को लेकर अमेरिकी नीति का नया अध्याय है।
एक समय मध्य एशिया का यह स्वतंत्र देश अब दुनिया के सबसे ज्यादा उत्पीड़न झेल रहे इलाकों में से एक है। तिब्बत में यह उत्पीड़न चीन कर रहा है। टीपीएसए दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन के मामले में तिब्बती बौद्ध समुदाय का फैसला सर्वोपरि मानता है। अमेरिका दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन प्रक्रिया में चीन सरकार के हस्तक्षेप को मान्यता नहीं देता। इस तरह के हस्तक्षेप में चीन का जो भी अधिकारी शामिल होगा, निश्चित रूप से उसे अमेरिका का प्रतिबंध झेलना होगा।
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