– प्रमोद भार्गव
अमेरिका में संरक्षणवादी नीतियों के चलते भारतीय नागरिकों के बाद अब छात्रों हितों पर भी कुठाराघात कर दिया गया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एच-1-बी वीजा के नियम पहले ही कठोर बना चुके हैं। उन्होंने अप्रवासियों के बच्चों के जन्म के साथ नागरिकता का अधिकार समाप्त करने का बयान भी दिया था। अमेरिका ने नीतिगत निर्णय लेकर भारत से निर्यात की जाने वाली 90 वस्तुओं को शुल्क मुक्त सूची से हटा दिया है। यानी अब इन वस्तुओं के आयात पर अमेरिका में आयात शुल्क लगेगा। भारत इनमें से 50 वस्तुएं बड़ी मात्रा में निर्यात करता है। एक के बाद एक ऐसे नियम भारतवंशियों के लिए चिंता का सबब बन रहे हैं।
अमेरिका के संघीय आव्रजन प्राधिकरण के नए दिशा-निर्देशों के मुताबिक यदि वहां के विश्वविद्यालय अपनी सभी कक्षाएं ऑनलाइन आयोजित करते हैं तो लाखों भारतीय छात्रों समेत अन्य विदेशी छात्रों को अमेरिका छोड़ना होगा। ऐसा नहीं करने पर उन्हें निकाला भी जा सकता है। यदि ये छात्र अमेरिका में रहकर ही शिक्षा प्राप्त करना चाहते है तो उन्हें ऐसे कॉलेजों में प्रवेश लेना होगा, जहां परिसर में कक्षाओं में पढ़ना जरूरी है। अमेरिका के शिक्षाविदों और सांसदों ने इन दिशा-निर्देशों को भयावह एवं क्रूर करार दिया है। दरअसल अमेरिकी आव्रजन एवं सीमा शुल्क प्रवर्तन (आईसीआई) ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है, ‘अमेरिकी विदेश मंत्रालय उन छात्रों के लिए वीजा जारी नहीं करेगा जिनके स्कूल या पाठ्यक्रम अगले सेमेस्टर में पूरी तरह केवल ऑनलाइन पढ़ाई करा रहे हैं। ऐसे छात्रों को अमेरिका में दाखिल होने की इजाजत भी नहीं दी जाएगी। इस सेमेस्टर की पढ़ाई हर साल सितंबर से दिसंबर के बीच होती है।
अमेरिकी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों को एफ-1 और एम-1 वीजा दिए जाते हैं। ‘स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम’ (एसईवीपी) की 2018 रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में चीन के सबसे अधिक 4,78,732 और भारत के 2,51,290 छात्रों ने शिक्षा प्राप्त की थी। ‘एसोसिएशन ऑफ इंटरनेशनल एजुकेटर्स’ के विश्लेषण के अनुसार अमेरिका के उच्च शिक्षा संस्थानों में पढ़ने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों ने 2018-19 में चले सत्र के दौरान करीब 31 करोड़ रुपए का योगदान दिया था। इसी दौरान ऐसे ही छात्रों ने अमेरिका में 4,58,290 नौकरियों के अवसर प्रदान किए। नए नियम अमेरिका को अर्थ एवं सेवा के क्षेत्र में अहम् योगदान देने वाले छात्रों पर थोपे जा रहे हैं। इन नियमों को लागू करने के पीछे ऑनलाइन शिक्षा से हो रही आर्थिक हानि की भरपाई करना है। दरअसल ऑनलाइन शिक्षा छात्र अपने ही देश में रहते हुए प्राप्त कर सकता है। यदि यही छात्र अमेरिका में जाकर शिक्षा ग्रहण करते हैं तो इनसे अमेरिका को होने वाली आय में कई गुना वृद्धि हो जाएगी। इन्हें अमेरिका में किराए के घर या छात्रावासों में रहना होगा। वहीं भोजन लेना होगा। शिक्षा परिसर में जाने के लिए स्थानीय यातायात सुविधा भी लेना जरूरी होगी। यदि ये छात्र अपने देशों से अमेरिकी वायुसेवा से आते हैं तो उससे भी अमेरिका को आमदनी होगी। संचार उपकरण और इंटरनेट सुविधा भी छात्रों के लिए जरूरी हैं, जो अमेरिका की आय में इजाफा करेगी। तय है, इन नियमों की पृष्ठभूमि में अमेरिका अपने आय के स्रोतों को बढ़ाने की मंशा पाले हुए है।
ट्रंप की ‘अमेरिका प्रथम’ जैसी राष्ट्रवादी भावना के चलते अमेरिकी कंपनियों के लिए अब एच-1-बी वीजा पर विदेशी नागरिकों को नौकरी पर रखना आसान नहीं रह गया है। ट्रंप प्रशासन ने वीजा प्रक्रिया को कठोर बनाने के लिए नए नियम लागू किए हैं। नए प्रावधानों के तहत कंपनियों को अनिवार्य रूप से यह बताना होगा कि उनके यहां पहले से कुल कितने प्रवासी काम कर रहे हैं। एच-1 बी वीजा भारतीय पेशेवरों में काफी लोकप्रिय है। इस वीजा के आधार पर बड़ी संख्या में भारतीय अमेरिका की आईटी कंपनियों में सेवारत हैं। श्रम विभाग ने नए प्रावधानों का फॉर्म कंपनियों को मुहैया करा दिए हैं। ट्रंप की ‘बाय अमेरिकन, हायर अमेरिकन’ नीति के तहत यह पहल की गयी है। इन प्रावधानों का सबसे ज्यादा प्रतिकूल असर भारतीयों पर पड़ा है। इस नीति से एल-1, एच-2 बी और जे-1 वीजाधारी भी प्रभावित हुए हैं।
अमेरिका में इस समय स्थाई तौर से बसने की वैधता प्राप्त करने के लिए सालों से छह लाख भारतीय श्रेष्ठ कुशल पेशेवर लाइन में लगे हैं। इस वैधता के लिए ग्राीन कार्ड प्राप्त करना होता है। इस साल अमेरिका ने आम श्रेणी के लोगों के लिए 65000 एच-1 बी वीजा देने का निर्णय लिया है, इसके अतिरिक्त 20000 एच-2 बी वीजा उन लोगों को दिए जाएंगे, जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अमेरिका के ही उच्च शिक्षण संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की है। अमेरिका में जो विदेशी प्रवासियों के बच्चे हैं, उनकी उम्र 21 साल पूरी होते ही, उनकी रहने की वैधता खत्म हो जाती है। दरअसल एच-1 बी वीजा वाले नौकरीपेशा वाले लोगों की पत्नी और बच्चों के लिए एच-4 वीजा जारी किया जाता है लेकिन बच्चों की 21 साल उम्र पूरी होने के साथ ही इसकी वैधता खत्म हो जाती है। इन्हें जीवन-यापन के लिए दूसरे विकल्प तलाशने होते हैं। ऐसे में ग्रीन-कार्ड प्राप्त कर अमेरिका के स्थायी रूप में मूल-निवासी बनने की संभावनाएं शून्य हो जाती हैं। दरअसल, अमेरिका में प्रावधान है कि यदि प्रवासियों के बच्चे 21 वर्ष की उम्र पूरी कर लेते हैं और उनके माता-पिता को ग्रीन-कार्ड नहीं मिलता है तो वे कानूनन स्थाई रूप से अमेरिका में रहने की पात्रता खो देते हैं।
अमेरिका ने भारत से निर्यात की जाने वाली 90 वस्तुओं को निःशुल्क आयात की सूची से बाहर कर दिया है। मसलन अब इन वस्तुओं के आयात पर शुल्क लगेगा। भारत इनमें से करीब 50 वस्तुओं का निर्यात बड़ी मात्रा में करता है। ये वस्तुएं वस्त्र और कृषि उत्पादों से जुड़ी होती हैं, इन्हें लघु और मझोले कारोबारी तैयार करते है। ट्रंप का यह आदेश 1 नवंबर 2019 से लागू है। फिलहाल यह तय नहीं है कि भारत का कितना निर्यात इस नए कानून से प्रभावित होगा लेकिन 2017 में भारत ने अमेरिका को विविध प्रकार की 5.6 अरब डॉलर की निशुल्क वस्तुएं निर्यात की थीं। जबकि अमेरिका ने भारत में कुल निर्यात 47.8 अरब डॉलर का किया था। अमेरिका ने अभीतक भारत से की जाने वाली इन वस्तुओं को जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंस (जीएसपी) के तहत रखा था। इसका लाभ भारतीय व्यापारियों को मिल रहा था, जो अब नुकसान उठाने की जद में आ गए हैं। भारतीय चैंबर ऑफ कॉमर्स और फिक्की जैसी औद्योगिक संस्थाएं इस मुद्दे पर अपना विरोध अमेरिकी विदेश व्यापार कार्यालय को जता चुकी हैं। भारत से अरहर दाल, सुपारी, तारपीन गम, आम, सैंडस्टोन, टिन क्लोराइड, बेरियम क्लोराइड, बफेलो लेदर, हैंडलूम कॉटन, फेब्रिक, हैंडलूम कॉर्पेट, सोने की परत चढ़े धातुई बर्तन और नेकलेस जैसी वस्तुएं निर्यात की जाती है, जिनपर अब शुल्क लगेगा। दरअसल जीएसपी के तहत अमेरिका अल्प विकसित और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए वहां से चुनिंदा वस्तुओं के आयात पर अबतक शुल्क नहीं लगाता था। हालांकि शुल्क मुक्त आयात की सीमा तय होती है। ट्रंप ने कहा था कि विकासशील देश निर्धारित सीमा से कहीं ज्यादा निर्यात कर रहे हैं, जिससे अमेरिकी उद्योग धंधे प्रभावित हो रहे हैं, अमेरिका ने इसी प्रभाव को समाप्त करने के लिए यह निर्णय लिया है। भारत के आलावा पाकिस्तान, अर्जेंटीना, ब्राजील, थाइलैंड, सूरीनाम, फिलीपींस, इक्वाडोर और इंडोनेशिया भी इस आदेश से प्रभावित होंगे।
ट्रंप ने अमेरिका में रह रहे अप्रवासी लोगों के बच्चों की जन्म-आधारित नागरिकता को भी खत्म करने का ऐलान किया है। ट्रंप ने दावा किया है कि अमेरिका दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जहां जन्मे बच्चों को अमेरिकी नागरिकता सरलता से हासिल हो जाती है। यह नागरिकता अवैध प्रवासियों के अमेरिका में जन्में बच्चों को भी मिलती है। अमेरिकी संविधान का 14वां संशोधन वहां जन्मे बच्चों को अमेरिकी नागरिकता के अधिकार की गारंटी देता है। इस संशोधन की पहली पंक्ति में लिखा है कि अमेरिका में पैदा हुए लोग अमेरिकी नागरिक हैं। अमेरिका में छिड़े गृहयुद्ध के बाद 1866 में यह संशोधन कांग्रेस ने पारित किया था। यह सुविधा अमेरिका में रहने वाले भारतीयों को भी मिलती है। यदि ट्रंप को राष्ट्रपति बनने का दूसरा अवसर मिलता है तो वे जन्म के साथ जुड़ी अमेरिकी नागरिकता संबंधी नियम को खत्म कर सकते हैं?
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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