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    भूखंड पीडि़तों के साथ भूमाफिया के चंगूल में फंसी संस्थाओं को भी एनओसी दिलवाने का दबाव

  • March 14, 2023

    योजना 171 में शामिल 13 गृह निर्माण संस्थाओं में से अधिकांश मद्दे सहित अन्य जमीनखोरों के कब्जे वाली

    सरकारी घोषित जमीनों और निजी जमीन और भूखंडधारियों को दी जा सकती है एनओसी

    इंदौर। प्राधिकरण की योजनाओं में शामिल रही गृह निर्माण संस्थाओं (home building agencies) के पीडि़तों की गुहार शासन, प्रशासन और पुलिस से अब तक यह रहती थी कि उनके भूखंडों को भूमाफियाओं के चंगुल से छुड़वाकर कब्जे दिलवाए जाएं। मगर अब ये ही पीडि़त उन संस्थाओं को भी एनओसी (NOC) देने का दबाव बना रहे हैं जो अभी जेल गए मद्दे जैसे जमीनखोरों को कब्जे में रही है। योजना 171 में शामिल 13 गृह निर्माण संस्थाओं में से अधिकांश संस्थाएं भूमाफियाओं के कब्जे में रही है और सदस्यों की जमीनें रसूखदारों को बेच दी गई। इनमें से अयोध्यापुरी, पुष्प विहार, श्री महालक्ष्मी नगर में तो प्रशासन ने भूमाफियाओं से जमीनें छुड़वाकर पीडि़तों को उनके भूखंडों के कब्जे भी दिलवाए, तो   त्रिशला गृह निर्माण, सूर्या सहित अन्य जेबी और फर्जी संस्थाओं में शामिल जमीनों को धारा 20 की सीलिंग छूट के उल्लंघन के चलते सरकारी भी घोषित कर दिया।  इन्हें एनओसी देने  में कोई परेशानी नहीं है, लेकिन जिन संस्थाओं  की जमीनों को अभी  सरकारी घोषित नहीं किया गया है, उन्हें भी भूमाफिया एनओसी दिलाने के प्रयास में है।

    प्राधिकरण ने योजना 171 को वर्षों पहले भी इसी कारण नहीं छोड़ा था, क्योंकि इसमें शामिल संस्थाओं की जमीनें जहां विवादित थी, वहीं इनसे जुड़े भूमाफियाओं के खिलाफ़ शासन -प्रशासन की मुहिम भी चल रहीं थीं और इसके साथ ही अधिकांश संस्थाओ की वरीयता सूची ही नहीं बनी और माफियाओं ने इनके रिकॉर्ड भी खुर्दबुर्द कर डाले ।  तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह ने पत्र लिखा कि इस तरह की विवादित संस्थाओं को एनओसी देने की बजाय जिन पीडि़तों को भूखंडों के कब्जे दिलवाए हैं , उन्हें व्यक्तिगत स्तर पर  एनओसी यानि निजी विकास की अनुमति दी जाय बजाए किसी भी संस्था की पूरी जमीन छोड़ते हुए एनओसी दे ,  मगर योजना 171 में शामिल 13 गृह निर्माण संस्थाओं का मामला इससे अलग है, जिसमें सबसे अधिक जमीन मजदूर पंचायत गृह निर्माण संस्था की लगभग 70 एकड़ के करीब है, जिसमें पुष्प विहार सहित उसकी अन्य कॉलोनियां है। पुष्प विहार में ही प्रशासन के सहयोग से भूखंड पीडि़त संघर्ष समिति के जरिए जिनकी पहली रजिस्ट्रियां थी उनको लगभग 970 भूखंडों के अलॉटमेंट के साथ कब्जे भी दिलवाए जा चुके हैं। वहीं 100 भूखंड धरोहर के बचे हैं, तो 35 भूखंड ऐसे हैं जो टीएनसीपी के नक्शे में मौजूद नहीं है। संघर्ष समिति के अध्यक्ष एनके मिश्रा का कहना है कि टीएनसीपी के नक्शे में 1157 भूखंड मंजूर किए गए थे और अब हम प्राधिकरण की एनओसी ना मिलने के चलते नगर निगम से भवन अनुज्ञा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं और अब प्राधिकरण से दुखी है , दूसरी तरफ हकीकत यह है कि योजना 171 में मजदूर पंचायत के अलावा देवी अहिल्या श्रमिक कामगार, न्याय विभाग कर्मचारी गृह निर्माण, इंदौर विकास गृह निर्माण, लक्ष्मण नगर गृह निर्माण, सूर्या गृह निर्माण, मारुति गृह निर्माण, सन्नी को-ऑपरेटिव, रजत गृह निर्माण, त्रिशला गृह निर्माण, संजना गृह निर्माण, श्रीकृपा और अप्सरा गृह निर्माण की जमीनें शामिल है। अभी देवी अहिल्या श्रमिक कामगार संस्था के लेटरपेड पर अध्यक्ष विमल अजमेरा सहित अन्य संचालकों ने प्राधिकरण अध्यक्ष और सीईओ को जो पत्र सौंपा  , उसमें इन 13 गृह निर्माण संस्थाओं की जमीनों का ब्योरा देते हुए जो 10 फीसदी जमा की जाने वाली राशि है , उसका ब्रेकअप भी प्रस्तुत किया है। मजे की बात ये है कि इसी सूची में त्रिशला गृह निर्माण तर्फे अध्यक्ष दिलीप पिता आनंदीलाल सिसोदिया उर्फ मद्दे का नाम लिखा है , जबकि मद्दे को अभी जमीनों के फर्जीवाड़े और रासुका के चलते पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेजा है।  वहीं रजत गृह निर्माण संस्था ने तो देवी अहिल्या की ही जमीन खरीद ली, जबकि कोई भी गृह निर्माण संस्था दूसरी संस्था को जमीन नहीं बेच सकती। वहीं रजत के कर्ताधर्ताओं ने जमीनों की जहा आपस में ही बंदरबांट भी कर ली और इसी तरह बनी सन्नी को-ऑपरेटिव संस्था में तोलानी ने रजत गृह निर्माण की जमीन को भी रंगून गार्डन में शामिल कर लिया था और साथ में सन्नी को-ऑपरेटिव की जमीन तो मौजूद थीं ही , रंगून गार्डन को कुछ समय पूर्व प्रशासन ने ऑपरेशन भूमाफिया के चलते तोड़ा और 70 हजार स्क्वेयर फीट जमीन सरेंडर भी करवाई। वहीं जिस देवी अहिल्या की जमीन पर अयोध्यापुरी काबिज है, उसके अध्यक्ष विमल अजमेरा के खिलाफ भी जांच चल रही है, जिन्होंने अपने परिवार के नाम पर ही अवैध भूखंड कबाड़ लिए , इसी तरह लक्ष्मण नगर गृह निर्माण संस्था में भी तमाम घोटाले हैं और प्रशासन द्वारा तैयार की गई सीलिंग एक्ट के उल्लंघन वाली संस्थाओं की सूची में इसका भी नाम शामिल है। वहीं रंगून गार्डन के सामने स्थित मारुति गृह निर्माण में भी घोटाले कम नहीं हुए। स्कूल के भूखंड के अलावा उसने एक निजी कम्पनी को ही जमीन बेच दी और हुई शिकायतों के बाद पिछले वर्ष नगर तथा ग्राम निवेश ने दी गई अनुमति को स्थगित भी किया और नगर निगम ने भी मंजूरी देने की अपनी कार्रवाई रोक दी . इन 13 संस्थाओं में शामिल श्रीकृपा भी जेबी संस्था है, जिसकी जमीन बेस्टेक इंडिया, गोल्ड स्टार रियल इस्टेट जैसी निजी संस्थाओं के नाम हो गई तो संजना गृह निर्माण की जमीन पर तो अवैध एयरोप्लेन रेस्टोरेंट खुल गय था, जिसका खुलासा भी अग्निबाण ने किया था और नतीजतन प्रशासन और सहकारिता विभाग ने सदस्यों को भूखंड देने की बजाय वाणिज्यिक उपयोग के इस मामले में संस्था को  नोटिस भी थमाया। बाद में हालांकि एयरोप्लेन रेस्टोरेंट तो बंद हो गया और उसमें हुई 20 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी के चलते एक पार्टनर आदित्य पंचारिया को गिरफ्तार भी किया गया था। यही स्थिति अप्सरा, इंदौर विकास जैसी अन्य जेबी संस्थाओं की है। अब सवाल यह है कि भूखंड पीडि़तों को न्याय दिलवाने के नाम पर इन दागी और भूमाफियाओं के कब्जे वाली संस्थाओं को कैसे एनओसी दिलवाई जा सकती है? उसकी बजाय प्राधिकरण पात्र भूखंड पीडि़तों की सूची सहकारिता विभाग के सहयोग से तैयार कर रजिस्ट्री करवा चुके भूखंडधारकों के नाम से ही एनओसी जारी करे, ताकि वे अपने मकान बना सकें , बजाय योजना में शामिल संस्थाओं की पूरी जमीनें छोडऩे के, ताकि माफियाओं के चंगुल में फिर से कोई जमीन न जाने पाए।


    शासन नोटिफिकेशन के आधार पर पीडि़त मांग रहे हैं राहत

    पुष्प विहार संघर्ष समिति के अध्यक्ष एनके मिश्रा का कहना है कि शासन के एक्ट संशोधन नोटिफिकेशन के आधार पर ही प्राधिकरण बोर्ड ने संकल्प पारित कर शासन को भेजा था , जिसमें 10 फीसदी से कम व्यय वाली योजनाओं से राशि की वसूली करते हुए उन्हें छोडऩा है। इतना ही नहीं, शासन ने 28.09.2020 को संशोधित नियम भी पारित कर दिया, जिसके उप नियम 23-24 में स्पष्ट है कि प्राधिकरण द्वारा जमा की जाने वाली वांछित राशि को दर्शाते हुए दो समाचार-पत्रों में उसकी सूचना प्रकाशित करवाएगा और योजना पर किए गए कुल व्यय की राशि की प्रतिपूर्ति होने पर इसे अधिसूचित करते हुए योजना व्यपगत यानी समाप्त हो जाएगी। पीडि़तों का अपना पक्ष सही है, मगर प्राधिकरण की परेशानी यह है कि वह भूखंड पीडि़तों की मदद तो करना चाहता है, मगर उसके चक्कर में भूमाफिया के चंगुल में फंसी और कई सरकारी घोषित हो चुकी संस्थाओं की जमीनों के संबंध में निजी विकास की एनओसी जारी कर उलझना भी नही चाहता है ।

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