नई दिल्ली: चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में महंगाई के थोड़ा कम होने का अनुमान है. इसका मुख्य कारण कच्चे तेल की कीमतें 105 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर पहुंचने और अच्छे मॉनसून के अनुमान पर आधारित है. इससे उपभोक्ताओं की जेब को कुछ राहत मिलेगी. कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के संजीव प्रसाद कहते हैं कि अगले कुछ महीनों में महंगाई अपने शीर्ष पर पहुंच जाएगी और उसके बाद इस वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में बेस आधार पर थोड़ी नीचे आ जाएगी.
अप्रैल में महंगाई 2014 के बाद सबसे अधिक
पिछले महीने सीपीआई (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) 7.79 फीसदी पर पहुंच गया था. यह 2014 की मई में 8.3 फीसदी की सीपीआई के बाद सर्वाधिक है. वहीं, महंगाई लगातार 4 महीने से आरबीआई के सुरक्षित दायरे (2-6 फीसदी) के बाहर रही है. बढ़ती महंगाई भारतीय अर्थव्यस्था को काफी नुकसान पहुंचा सकती है. इससे उद्योगों की आय में गिरावट देखने को मिल सकती है. महंगाई बढ़ेगी तो लोगों अपने खर्चों में कटौती करेंगे और इसका सीधार असर उद्योगों की आय पर होगा.
सरकार ने महंगाई रोकने के लिए उठाए कदम
आरबीआई ने अप्रैल में अचानक की ही रेपो रेट (बैंको को लोन देने की ब्याज दर) में 40 बेसिस पॉइंट का इजाफा करते हुए सबको हैरान कर दिया था. केंद्रीय बैंक ने कहा कि यूक्रेन युद्ध, कमोडिटी की बढ़ती कीमतें और आपूर्ति श्रृंखला में आ रही रुकावटों के कारण महंगाई के बढ़ने के आसार हैं. इसके बाद सरकार ने महंगाई को काबू करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं. इनमें तेल की कीमतें घटाने के लिए टैक्स कम करना, गेहूं के निर्यात को सीमित करना और खाद्य पदार्थ की कीमतों को घटाने के लिए कई तरह के शुल्क हटाना शामिल हैं.
मॉनसून पर काफी कुछ निर्भर
जून-सितंबर में आने वाला मॉनसून भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी प्रभाव डालता है. मनीकंट्रोल के एक लेख के अनुसार, देश में पूरे साल होने वाली वर्ष का 70 फीसदी हिस्सा इसी दौरान आता है. वहीं, देश के आधे खेत फसल के लिए मॉनसून पर निर्भर करते हैं. भारत के कुल श्रमबल का आधा हिस्सा खेती से जुड़े कामों में लगा है. इसलिए कृषि देश के कुल आर्थिक आटउटपुट में 15 फीसदी का योगदान करता है.
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