इंदौर। कोरोना (Corona) के प्रभावी होते ही इंदौर (Indore) शहर के सरकारी अस्पतालों (Government Hospitals) के साथ ही लगभग सभी निजी हॉस्पिटल (Private Hospitals) भी फुल हो गए हैं। जिन अस्पतालों में बेड खाली भी हैं वहां आईसीयू में जगह नहीं होने से मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है। वैसे भी अधिकांश मरीज प्रारंभ में होम आइसोलेशन (Home Isolation), यानी घर में ही इलाज शुरू कर देते हैं, लेकिन जैसे ही उनकी तबीयत बिगडऩे लगती है वैसे ही डॉक्टरों द्वारा उन्हें अस्पताल भेजे जाने की सलाह दी जाती है। ऐसे मरीजों के इलाज के लिए आईसीयू, यानी गहन चिकित्सा इकाई होना बेहद जरूरी है, लेकिन शहर के सभी निजी अस्पतालों में गहन चिकित्सा इकाई के बेड सीमित संख्या में होने के कारण सबसे पहले आईसीयू ही भरे जाते हैं। इन आईसीयू (ICU) में भर्ती मरीजों का इलाज भी लंबे समय चलता है, इस कारण बेड खाली होना मुश्किल हो जाता है। फिलहाल हालत यह है कि 25-25 अस्पताल घूमने के बाद भी मरीजों के लिए बेड नहीं मिल पा रहे हैं।
पिछले तीन माह से कोरोना के मरीजों की सीमित संख्या के चलते एक बार फिर अस्पतालों की हालत सामान्य हो चुकी थी, लेकिन पिछले 15 दिनों से यकायक कोरोना के बढ़ते मरीजों की तादाद ने अस्पतालों में मरीजों का अंबार लगा दिया है। सामान्य बुखार आते ही घबराए मरीज अस्पताल की ओर रुख करने से पहले कोविड टेस्ट कराते हैं और यदि वे कोरोना पॉजिटिव पाए जाते हैं तो बिना सिम्टम्स के घर पर ही इलाज की सलाह दी जाती है। कोरोना प्रोटोकॉल (Corona Protocol) के प्रारंभिक डोज खाने के बाद कई लोगों की स्थिति में सुधार आने लगता है, लेकिन जब भी ऐसे मरीजों की हालत बिगड़ती है वैसे ही उन्हें आईसीयू की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि वे गंभीर स्थिति में आ चुके होते हैं। ऐसी स्थिति में शहर के सामान्य अस्पताल तो उन्हें भर्ती करने से ही इनकार कर देते हैं। ऐसे में जब वे बड़े अस्पतालों का रुख करते हैं तो वहां आईसीयू बेड खाली नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में कई अस्पतालों में चक्कर लगाने के बाद मरीजों को किसी सामान्य अस्पताल के ऐसे आईसीयू में एडमिट होना पड़ता है, जो गहन चिकित्सा के नाम्र्स को पूरा नहीं करते हैं।
जरूरत हो या न हो…फिर एक बार मरीजों को महंगे इंजेक्शन लगना शुरू…
सारे कोविड अस्पतालों ने एक प्रोटोकॉल (Protocol) बना लिया है और उसी के तहत इलाज किया जा रहा है…जैसे ही मरीज (Patients) अस्पताल में भर्ती होता है वैसे ही ढाई-ढाई हजार रुपए के रेडमेसिवर इंजेक्शन के 6 से 8 डोज लगाना शुरू कर दिए जाते हैं… अस्पतालों में इन इंजेक्शनों की कीमत मुनाफा लगाकर वसूल की जाती है, जबकि यह इंजेक्शन उन विषम परिस्थितियों में ही लगाना उचित होता है जब मरीज के लंग्स 40 प्रतिशत से ऊपर इन्फेक्टेड हो गए हों। इन इंजेक्शनों के साइड इफेक्ट भी जबरदस्त होते हैं, जिस कारण मरीज की हालत और खराब होने लगती है और जैसे-जैसे मरीज की हालत बिगड़ती है वैसे-वैसे अस्पताल इलाज के नाम पर रुपए ऐंठना शुरू कर देते हैं, जबकि हकीकत यह होती है कि दवाओं और इंजेक्शन के चलते मरीज अपने आप को असहज महसूस करने लगता है और यह स्थिति दवाइयों के नियंत्रित होने के बाद अपने आप ठीक हो सकती है। लेकिन अस्पताल अपनी कमाई बढ़ाने के लिए मरीज के परिजनों से हालत खराब होने का डर बताकर पैसे वसूलते रहते हैं।
क्या होता है आईसीयू… यानी गहन चिकित्सा कक्ष
आईसीयू (ICU), यानी अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई उसे कहा जाता है जहां बेड पर ही व्यक्ति का निरंतर रक्तचाप, दिल की धडक़नें, ऑक्सोमीटर से ऑक्सीजन की स्थिति पता की जाती है। इस आईसीयू (ICU) में डॉक्टर और नर्सों की 24 घंटे लगातार ड्यूटी होती है। आईसीयू में ही वेंटिलेटर भी उपलब्ध होते हैं, जो ऑक्सीजन की कमी होते ही कृत्रिम रूप से श्वास की व्यवस्था कर व्यक्ति को गंभीर स्थिति से बाहर लाने में सहयोगी होते हैं। इन आईसीयू (ICU) में केवल गंभीर स्थिति के मरीजों को ही भर्ती किया जाता है और उनकी लगातार निगरानी की जाती है। हर अस्पताल ( Hospitals) के इन आईसीयू में सीमित संख्या में बेड होते हैं और जो लोग भर्ती होते हैं उन्हें भी जल्दी छुट्टी नहीं मिल पाती है। इस कारण जहां एक ओर बेड कम होते हैं, वहीं बेड भरे हुए भी होते हैं।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved