– गिरीश्वर मिश्र
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्यदुःख भयहारणिका त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाचिता।।
मां दुर्गे ! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ जनों द्वारा चिंतन करने पर उन्हें परम कल्याणकारी बुद्धि प्रदान करती हैं। दुःख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवि ! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए सदा ही दया से भरा रहता हो ?
शरद का नवरात्र भारत का एक अत्यंत महत्वपूर्ण भारतीय पर्व है जब शक्ति की आराधना का अवसर उपस्थित होता है. इस समय ग्रीष्म और वर्षा के संतुलन के साथ शीत ऋतु का आगमन हो रहा होता है। इसके साथ ही प्रकृति की सुषमा भी निखरती है। इस तरह के परिवर्तन के साथ प्रकृति हमारे लिए शक्ति और ऊर्जा के संचय का अवसर निर्मित करती है। यह शक्ति या सामर्थ्य मूलत: आसुरी प्रवृत्तियों को वश में रखने के लिए होती है। आसुरी प्रवृत्तियाँ प्रबल होने से मद आ जाता है और तब प्राणी हिंस्र हो उठता है। तब उचित-अनुचित का विवेक नहीं रहता और मदान्ध होकर उत्पात करने और दूसरों को अकारण कष्ट पहुंचाने की प्रवृत्ति बढ़ती है। ऐसी आसुरी शक्तियों से रक्षा और सात्विक प्रवृत्ति के संवर्धन के लिए शक्ति की देवी की आराधना की जाती है। वैसे तो देवी नित्यस्वरूप वाली हैं, अजन्मा हैं, समस्त जगत उन्हीं का रूप है और सारे विश्व में वह व्याप्त हैं फिर भी उनका प्राकट्य अनेक रूपों में होता है। अनेकानेक पौराणिक कथाओं में शुभ, निशुम्भ, महिषासुर, रक्तबीज राक्षसों के उन्मूलन के लिए देवी विकराल रूप धारण करती हैं और राक्षसों के उपद्रवों से मुक्ति दिलाती हैं।
देवी वस्तुतः जगदंबा हैं और हम सभी उनके निकट शिशु हैं। वे माँ रूप में सबकी हैं और आश्वस्त करती हैं कि निर्भय रहो। वह भक्तों के लिए सुलभ हैं। उनकी भक्ति की परंपरा में ‘नव दुर्गा’ प्रसिद्ध हैं। इनमें शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की परिगणना होती है परन्तु देवी के और भी रूप हैं जिनमें चामुंडा, वाराही, ऐन्द्री, वैष्णवी, माहेश्वरी, कुमारी, लक्ष्मी, ईश्वरी और ब्राह्मी प्रमुख रूप से चर्चित हैं। ये सभी रूप दैत्यों के नाश, भक्तों के लिए अभय और देवताओं के लिए कल्याण के लिए शस्त्र धारण करती हैं।
‘देवी कवच’ में प्रार्थना की गई है कि जया आगे, विजया पीछे, बाईं तरफ अजिता और दाई ओर अपराजिता, सभी हमारी रक्षा करें। देवी कवच में ही पूरे शरीर के अंगों तथा योग-क्षेम के लिए देवी के अनेक रूपों को संकल्पित किया गया है और इनका स्मरण करते हुए निष्ठापूर्वक अपनी रक्षा के लिए शरणागत भाव से अपने को अर्पित किया गया है। देवी के ये रूप इस प्रकार हैं : उद्योतिनी, उमा, मालाधारी, यशस्विनी, त्रिनेत्रा, यमघंटा, शंखिनी, द्वारवासिनी, कालिका, शांकरी, सुगंधा, चर्चिका, अमृतकला, सरस्वती, कुमारी, चंडिका, चित्रघंटा, महामाया, कामाक्षी, सर्वमंगला, भद्रकाली, धनुर्धारी, नीलग्रीवा, नलकूबरी, खड्गिनी, वज्रधारिणी, दंडिनी, अम्बिका, शूलेश्वरी, कुलेश्वरी, महादेवी, शोकविनाशिनी, ललिता, शूलधारिणी, कामिनी, गुह्येश्वरी, पूतना, कामिका, महिषवाहिनी, भगवती, बिन्ध्यवासिनी, महाबला, नारसिंही, तैजसी, श्रीदेवी, तलवासिनी, दंष्ट्राकराली, ऊर्ध्वकेशिनी, कौबेरी, वागीश्वरी, पारवती, कालरात्रि, मुकुटेश्वरी, पद्मावती, चूडामणि, ज्वालामुखी, अभेद्या, ब्रह्माणी, छत्रेश्वरी, वज्रहस्ता, कल्याणशोभना, योगिनी, नारायणी, वाराही, वैष्णवी, इन्द्रानी, चण्डिका, महालक्ष्मी, सुपथा, क्षेमकरी, महालक्ष्मी तथा विजया।
कमल के आसन पर विराजमान जगदम्बा के श्री अंगों की कांति उदयकाल के सहस्रों सूर्यों के सामान है। वे सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सज्जित रहती हैं। वे प्राणियों के इन्द्रियों की अधिष्ठात्री हैं और सबमें व्याप्त रहती हैं। चिति (चैतन्य) रूप में इस कान्ति, लज्जा, शान्ति, श्रद्धा, वृत्ति, स्मृति, तुष्टि, दया आदि रूपों में प्रणम्य हैं।
आज मनुष्य विचलित हो रहा है, हिंसा की प्रवृत्तियाँ प्रबल हो रही हैं, परस्पर अविश्वास पनप रहा है और चित्त अशांत हो रहा है। स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तरों पर जीवन मूल्यों का क्षरण भी परिलक्षित हो रहा है, ऐसे कठिन समय में जगदम्बा का स्मरण, वंदन और अर्चन हमारा मार्ग प्रशस्त करेगा। साधना और समर्पण का कोई विकल्प नहीं है। इस अवसर पर भगवान राम का स्मरण आता है जिन्होंने दुर्धर्ष रावण के साथ हुए युद्ध के क्षणों में शक्ति की आराधना की थी। हिन्दी के महान कवि महाप्राण निराला ने ‘राम की शक्ति पूजा’ शीर्षक कविता रची थी जिसे काव्य जगत में विशेष ख्याति मिली थी। श्रीराम ने देवी दुर्गा की आराधना में 108 नील कमल अर्पित करने का निश्चय किया और अंत में एक कमल कम पड़ गया तब श्रीराम के मन में यह भाव आया :
“यह है उपाय”, कह उठे राम ज्यों मन्द्रित घन
“कहती थीं माता मुझे सदा राजीवनयन।
दो नील कमल हैं शेष अभी, यह पुरश्चरण
पूरा करता हूँ देकर मातः एक नयन।”
कहकर देखा तूणीर ब्रह्मशर रहा झलक,
ले लिया हस्त, लक-लक करता वह महाफलक।
ले अस्त्र वाम पर, दक्षिण कर दक्षिण लोचन
ले अर्पित करने को उद्यत हो गये सुमन
जिस क्षण बँध गया बेधने को दृग दृढ़ निश्चय,
काँपा ब्रह्माण्ड, हुआ देवी का त्वरित उदय
“साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम !”
कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।
देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वर वामपद
असुर-स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर।
ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्र सज्जित,
मन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित।
हैं दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग,
दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,
मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभर
श्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वर वन्दन कर।
“होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।”
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।
श्रीराम में शक्ति का निवेश हुआ और रावण परास्त हुआ। विजयादशमी आज भी रावण दहन के साथ संपन्न होती है और सात्विक वृत्ति तथा सद्गुण की विजय की गाथा को स्मरण दिलाती है। देवी दुर्गा सकल जगत का मंगल करने वाली हैं। आवश्यकता है अपने में सात्विक गुणों के संधान की और श्रद्धा की। देवी सब तरह का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हैं। वे कल्याणदायिनी शिवा हैं। वे सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला हैं।
(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति हैं।)
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