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    सरकार बनाने के सामने भाजपा के सारे ‘फार्मूले’ फेल

  • October 23, 2023

    • टिकट की पहली सूची में दिल्ली की चली, बाद में प्रदेश के नेताओं के हिसाब से बिठाए समीकरण, प्रदेश में सीमित हुआ दिल्ली दरबार

    इंदौर, संजीव मालवीय। भाजपा की पहली सूची घोषित होने के साथ ही तय हो गया था कि अब मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव की बागडौर दिल्ली हाईकमान ने अपने हाथ में ले ली है। साथ ही कहा जाने लगा कि मध्यप्रदेश में गुजरात फार्मूेले पर चुनाव लड़ा जाएगा। दूसरी सूची में भी इसका कुछ असर नजर आया, लेकिन बाद में जब भाजपा में अंतर्कलह बढ़ा और विरोध के स्वर उठने लगे तो प्रदेश के नेताओं ने केन्द्रीय नेतृत्व के सामने चिंता जताई कि ऐसे में तो हम 127 सीटों तक भी नहीं पहुंच पाएंगे और सरकार से बाहर हो जाएंगे। वहीं अलग-अलग एजेंसियों के सर्वे ने भी बड़े नेताओं की नींद उड़ा दी। कहा जा रहा है कि प्रदेश में संघ और उसके बाद दो सर्वे निजी एजेंसी से करवाए गए, जिसमें सरकार बनने पर संदेह लग रहा था।

    भाजपा जिस गुजरात फार्मेूले को एक के बाद एक प्रदेश में लागू करना चाह रही थी, उसमें उसे बैकफुट पर आना पड़ा है। गुजरात के हालात कुछ अलग थे, जहां पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने नया प्रयोग कर फिर से सरकार बनाई थी, उसी फार्मूेले पर वे कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में फेल हुए, लेकिन बाद में इसे मध्यप्रदेश में भी लागू किया गया। यही नहीं एक बार तो अफवाह उड़ी कि वर्तमान मंत्री और विधायकों के बड़े स्तर पर टिकट काटे जाएंगे। इस खबर ने पार्टी के अंदर असंतोष का काम किया और कई नेताओं ने इसका विरोध आला नेतृत्व के सामने किया और बताया कि इससे तो सरकार बचाना मुश्किल हो जाएगा। उसके बाद चौथी और पांचवी सूची में पार्टी ने अपना फार्मूला बदला और दिल्ली का हस्तक्षेप प्रत्याशी चयन में बदले हुए फार्मूेले के रूप में नजर आया।

    बड़े नेताओं को क्षेत्रों तक सीमित कर दिया!
    दूसरी सूची में जिस तरह से नाम आए, उसमें 3 केन्द्रीय मंत्रियों सहित 7 सांसदों के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को विधानसभा में उम्मीदवार बनाकर उन्हें सीमित कर दिया गया। सीटें भी ऐसी दी गईं कि वहां से दूसरी सीटों पर प्रचार के लिए अपना समय नहीं निकाल पाएंगे। इंदौर एक की बात करें या फिर दिमनी जैसी विधानसभा की या फिर प्रहलाद पटेल के नरसिंहपुर की। फग्गनसिंह कुलस्ते, राकेशसिंह जैसे नेताओं को भी अपने क्षेत्र में सीमित कर दिया। इन सीटों पर उतारे गए बड़े नेता कई सीटों पर अपना प्रभाव जमा सकते थे, हालांकि दिल्ली नेतृत्व के सामने कोई कुछ कह नहीं पाया।

    कम वोटों से हारने वालों को मौका
    पार्टी ने पहली सूची में एक नया प्रयोग किया और जिन विधानसभा सीटों पर पिछली बार भाजपा प्रत्याशी बहुत ही कम वोटों से हारे थे, उन्हें फिर से मौका दिया गया, जिससे इन सीटों पर विरोध तेज हो गया और जो दावेदारी कर रहे थे, उनका कहना था कि हारने वालों को टिकट क्यों दिए? इसके बाद पार्टी में अंसतोष दिखने लगा था, जिसकी खबर बड़े नेताओं तक पहुंची। तीसरी सूची में वर्तमान विधायकों को मौका दिया गया तो पांचवीं सूची में कई कुछ ऐसे नाम काटकर नए चेहरों पर भी दांव लगाया गया। यहां भी कुछ जगह विरोध सामने आए, लेकिन वे ज्यादा समय तक नहीं रहे, क्योंकि इन नामों में प्रदेश की सहमति थी।

    टिकट के लिए दिल्ली का मुंह देखना पड़ा
    यह पहली ही बार रहा कि भाजपा में रायशुमारी न होकर सीधे भाोपाल से दिल्ली नाम भेज दिए गए और वहां से टिकट का फैसला हुआ। नहीं तो पहले जिलास्तर पर रायशुमारी होती थी और टिकट को लेकर नाम तय होते थे। पैनल बनाकर स्थानीय नेता भोपाल के संगठन को भेजते थे और फिर वहां से एक और छलनी लगती थी, उसके बाद दिल्ली से ही नाम घोषित होते थे, लेकिन पूरा डिस्कशन दिल्ली में नहीं होता था। केन्द्रीय चुनाव समिति में मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के अलावा उज्जैन से सत्यनारायण जटिया ही शामिल किए गए।

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