अलीगढ़। भारतीय इतिहास के पन्नों में भुला दिए गए “जाट आइकॉन” राजा महेंद्र प्रताप सिंह (Raja Mahendra Pratap Singh) ने जिस शैक्षिक-सामाजिक परिवर्तन का सपना देखा था, उसके पूरा होने का समय आ गया है. जिस अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना में उन्होंने भू-दान किया, उसने भले ही उन्हें सम्मान न दिया हो, लेकिन अब उसी अलीगढ़ (Aligarh) में “जाटलैंड के नायक” के नाम पर विश्वविद्यालय की स्थापना होने जा रही है। मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) स्वयं इसकी आधारशिला रखेंगे.
इस खास मौके पर राजा महेंद्र प्रताप के वंशजों की गरिमामयी मौजूदगी रहेगी. इसके साथ ही 14 सितंबर 2019 को लिया सीएम योगी आदित्यनाथ का वह संकल्प भी पूरा होगा, जब उन्होंने तुष्टिकरण की राजनीति के चलते उपेक्षित कर दिए गए राजा महेंद्र प्रताप सिंह को यथोचित सम्मान दिलाने का वचन दिया था.
विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री का अलीगढ़ दौरा कई मायनों में अहम माना जा रहा दरअसल, किसान आंदोलन को जाटों का समर्थन मिलने के बाद जाट राजा महेंद्र सिंह स्टेट यूनिवर्सिटी का शिलान्यास कर प्रधानमंत्री जाटों को अपने पाले में करने की कोशिश करेंगे. यही वजह है कि जानकार प्रधानमंत्री के दौरे को बीजेपी का चुनावी शंखनाद भी मान रहे हैं.
AMU ने नहीं दिया सम्मान
बता दें कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अपनी सम्पत्ति दान कर दी थी. उस अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास में राजा महेंद्र प्रताप सिंह को कोई स्थान नहीं मिला. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर भी जो तथ्य दिए गए हैं, उसमें सिर्फ सैय्यद अहमद खान के योगदान का जिक्र तो है पर विश्वविद्यालय के लिए जमीन का एक बड़ा हिस्सा दान करने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह का कोई उल्लेख नहीं है. इतिहास की इस भूल के सुधार की जरूरत बताते हुए मुख्यमंत्री योगी ने राजा महेंद्र प्रताप सिंह को उनका गौरव वापस दिलाने का संकल्प लिया था. योगी ने राजा महेंद्र प्रताप के नाम पर अलीगढ़ जनपद में राजा महेंद्र प्रताप सिंह के नाम पर विश्वविद्यालय स्थापना की घोषणा की थी. बकौल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ “राजा महेंद्र प्रताप ने अपनी पूरी सम्पत्ति दान कर दी मगर उनके साथ न्याय नहीं हुआ. उन्हें भुला दिया गया.”
जानिए कौन थे राजा महेंद्र प्रताप सिंह
देश के दो बड़े विश्वविद्यालयों के “नींव की ईंट” की तुलना करें तो अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, दोनों की स्थापना में क्षेत्रीय राजाओं ने भूमि दान की थी, मगर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के संस्थापक सर सैय्यद अहमद खान ने भूमि दान देने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह को भुला दिया, जबकि पंडित मदन मोहन मालवीय ने काशी नरेश के योगदान को सदैव सिर-माथे पर रखा।
प्रसिद्ध इतिहासकार इरफ़ान हबीब ने लिखा है कि “राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया था. वर्ष 1914 के प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान वह अफगानिस्तान गए थे. 1915 में उन्होंने आज़ाद हिन्दुस्तान की पहली निर्वासित सरकार बनवाई थी.” बाद में सुभाष चंद्र बोस ने 28 साल बाद उन्हीं की तरह आजाद हिंद सरकार का गठन सिंगापुर में किया था. एक समय उन्हें नोबल शांति पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था।
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