लखनऊ: अखिलेश यादव एक बार फिर नए गठबंधन के साथ चुनाव में उतरने की तैयारी में है. इस बार उन्होंने अपना पार्टनर बीएसपी के बदले कांग्रेस को बनाने का मन बनाया है. अब तक मिल रहे संकेत से तो यही लगता है कि कांग्रेस ही उनकी नई पार्टनर होगी. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष Akhilesh Yadav ने अब अपनी कोर कमेटी की बैठकों में इस पर चर्चा भी शुरू कर दी है. बीजेपी और कांग्रेस मेरे लिए दोनों एक जैसे हैं कहने वाले अखिलेश का ह्रदय परिवर्तन होने लगा है.
सबसे बड़ी बात ये है कि अब संभावित गठबंधन के लिहाज से वे रणनीति बनाने के मूड में हैं. इसके साथ ही उन्होंने अपनी पार्टी के महत्वपूर्ण नेताओं का मूड भी टटोलना शुरू कर दिया है. 23 जून को पटना में हुई विपक्षी नेताओं की बैठक के बाद से ममता बनर्जी के तेवर पहले जैसे हैं. उनका आरोप है कि बंगाल में बीजेपी से कांग्रेस और लेफ्ट की गुप-चुप दोस्ती है. कांग्रेस को लेकर अखिलेश यादव के तेवर भी ममता की तरह ही रहे हैं.
क्यों गठबंधन चुनना चाहते हैं अखिलेश?
पटना में हुई प्रेस कांफ्रेंस में ममता ने अखिलेश को अखिलेश भाई कह कर संबोधित किया था. विपक्ष की बैठक के बाद से ममता के तेवर गर्म हैं पर अखिलेश नरम पड़ गए हैं. उन्होंने ये मान लिया है कि आम चुनाव में बीजेपी को रोकने के लिए गठबंधन जरूरी है. बिना गठबंधन के चुनाव में गए तो फायदा बीजेपी का ही होगा.
गठबंधन के पिछले सारे अनुभव अखिलेश के लिए बड़े खट्टे रहे हैं. इसके बावजूद बड़ी लड़ाई को देखते हुए उन्होंने समझौते का कड़वा घूंट फिर से पीने का तय किया है. उससे पहले अखिलेश ने समाजवादी पार्टी के जिम्मेदार नेताओं का फीडबैक लेना शुरू कर दिया है.
गठबंधन पर बैठकों का दौर शुरू
गठबंधन पर नेताओं के मन की बात जानने के लिए अखिलेश यादव ने बैठकों का दौर शुरू कर दिया है. शुरूआत हुई है आजमगढ़ से. यहां से वे खुद और उनके पिता मुलायम सिंह यादव सांसद रह चुके हैं. आजमगढ़ को समाजवादियों का गढ़ कहा जाता है. इस बैठक में आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र से पार्टी के करीब सौ नेताओं को बुलाया गया था.
अखिलेश ने पहले तो अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी को लेकर चर्चा की. बूथ कमेटी बनाने से लेकर कार्यकर्ताओं की ट्रेनिंग और वोटर लिस्ट पर मंथन हुआ. पिछला चुनाव हम क्यों हारे? इस पर भी खूब माथा पच्ची हुई.
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