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अयोध्या के सांसद अवधेश प्रसाद को हाथ पकड़कर संसद में लाए अखिलेश यादव, जानिए क्‍या है इसके राजनीतिक मायने

नई दिल्‍ली (New Delhi) । लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) के बाद संसद (Parliament) के पहले सत्र का सोमवार को पहला दिन था। इस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी, होम मिनिस्टर अमित शाह समेत सभी सांसदों (MP) ने सदस्यता की शपथ ली। यही नहीं 18वीं लोकसभा का यह पहला दिन मिलने-मिलाने और एक दूसरे से परिचय का भी था। इस दौरान अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) अपने सांसदों के साथ अलग ही अंदाज में नजर आए। समाजवादी पार्टी के सभी 37 सांसदों ने संविधान की एक प्रति ले रखी थी। अखिलेश यादव ने कहा कि हम संविधान लेकर इसलिए चल रहे हैं ताकि संदेश दिया जा सके कि संविधान को आंच नहीं आ सकती, जिसकी कोशिश में सत्तापक्ष जुटा है। ऐसी ही बात कांग्रेस के सीनियर नेता राहुल गांधी ने भी कही।

यही नहीं अखिलेश यादव इस दौरान अयोध्या वाली सीट कहे जाने वाले फैजाबाद से जीतकर आए अवधेश प्रसाद के साथ दिखे। संसद में एंट्री करने के दौरान उनके साथ पत्नी डिंपल यादव, चाचा रामगोपाल यादव समेत सभी सांसद थे। लेकिन अखिलेश यादव थोड़ा पीछे गए और फिर हाथ पकड़कर अवधेश प्रसाद को आगे लेकर आए। फिर उनका मीडिया से भी परिचय कराया। यही नहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी से मुलाकात के दौरान भी अवधेश प्रसाद को उन्होंने आगे ही रखा।


अवधेश प्रसाद को आगे रखकर क्या साध रहे अखिलेश यादव
अखिलेश यादव की तरफ से इस तरह अवधेश प्रसाद को महत्व और सम्मान दिए जाने के मायने निकाले जा रहे हैं। दरअसल अवधेश प्रसाद दलित कैटिगरी में आने वाली पासी बिरादरी से आते हैं। ऐसे में उन्हें इस तरह आगे की पंक्ति में लाना और महत्व देना एक संदेश की कोशिश है कि सपा दलितों को भी साथ लेकर चलती है। अब तक अखिलेश यादव की सपा पर आरोप लगते रहे हैं कि वह गैर-यादव ओबीसी और अन्य दलितों को महत्व नहीं देती है। ऐसे में अखिलेश यादव के इस कदम से बड़ा संदेश जाएगा। इसके अलावा इसके साथ ही वह भाजपा के हिंदुत्व वाले नैरेटिव को भी चोट पहुंचाने की कोशिश लगातार अवधेश प्रसाद को आगे करके कर रहे हैं।

क्यों अयोध्या की जीत अखिलेश को दे रही हौसला
बता दें कि 1989 से अब तक भाजपा के एजेंडे में अयोध्या और राम मंदिर सबसे ऊपर रहे हैं। 500 सालों के बाद अयोध्या में राम मंदिर बनने को भाजपा अपनी चुनावी संभावनाओं से जोड़कर देख रही थी। लेकिन नतीजा आया तो उसे 2019 के मुकाबले यूपी में 29 सीटें कम मिलीं। इसके अलावा फैजाबाद लोकसभा सीट से भी हार गई। ऐसे में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी यूपी के नतीजों को अपने लिए बड़ी सफलता मान रही है। 37 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करके समाजवादी पार्टी सदन का तीसरा सबसे बड़ा दल बन गई है।

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