अनूपपुर। भारत सरकार द्वारा लाए गए चारों लेबर कोड बिल (Labor code bill) के साथ कोयला उद्योग (Coal industry) के निजीकरण के खिलाफ 11वें वेतन समझौता के लिए जेबीसीसीआई-का गठन करने, किसानों के लिए लाए गए तीनों कृषि कानून के खिलाफ,बढ़ती हुई महंगाई पर विराम लगाने, कर्मचारियों को 30 वर्ष की सेवा या 50 वर्ष की उम्र के बाद जबरन सेवानिवृत्ति करने के फैसले के खिलाफ, ठेका मजदूरों के लिए कोल इंडिया की हाई पावर कमेटी द्वारा निर्धारित बढ़ा हुआ वेतन लागू करने के लिए, बैंक एवं बीमा के निजीकरण पर रोक लगाने आदि मांगो को लेकर देश के 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियन ने संयुक्त निर्णय पर शुक्रवार को विरोध प्रदर्शन किया। एटक एसईसीएल के महासचिव एवं एसईसीएल (AITUC SECL Secretary General and SECL) संचालन समिति के सदस्य कामरेड हरिद्वार सिंह के नेतृत्व में राजनगर में शहीद भगत सिंह चौक पर एटक एवं सीटू यूनियन ने संयुक्त रूप से भारत सरकार के मजदूर विरोधी, उद्योग विरोधी, किसान विरोधी आदि नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर क्षेत्रीय महाप्रबंधक हसदेव क्षेत्र को ज्ञापन सौंपा। इस दौरान एटक यूनियन के क्षेत्रीय सचिव कन्हैया सिंह,अध्यक्ष यूके पाठक,सीटू क्षेत्रीय अध्यक्ष बघेला सिंह, सचिव देवेन्द्र निराला उपस्थित रहे।मध्यप्रदेश राज्य एटक के अध्यक्ष हरिद्वार सिंह ने कहा कि आज देश का हर वर्ग आंदोलन कर रहा है। देश के किसानों को तीन महीने से ऊपर हो गए आंदोलन करते हुए लेकिन सरकार को उनकी सुध नहीं है। महंगाई चरम सीमा पर है, पेट्रोल 100 रुपये प्रति लीटर से ऊपर है, खाने का तेल 150 के ऊपर है। बेरोजगारी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं, हर वर्ग परेशान है। बैंक का भी निजीकरण को लेकर बैंककर्मी भी हड़ताल पर हैं। देश के नौजवानों को रोजगार नहीं मिल रहा है। लाखों लोगों ने अपनी नौकरी खो दी है। सरकार रोजगार देने में पूर्णत: असफल है।
देश की अर्थव्यवस्था नीचे आ गई है। यह सरकार पूंजीपतियों एवं मालिकों की सरकार है यह आम जनता, मजदूर, किसान की सरकार नहीं है। भारत सरकार ने 44 श्रम कानून को समाप्त कर 4 लेबर कोड पारित किया है जो की पूर्णत: मज़दूर विरोधी है। औद्योगिक संबंध नियम विधेयक 2020 में सरकार ने श्रमिकों के हड़ताल करने के अधिकारों को सीमित कर दिया है। साथ ही कंपनियों को भर्ती और छंटनी को लेकर ज्यादा अधिकार दिए हैं। जब कोयला खदानें निजी मालिकों के हाथों में थी तब कोयला मजदूरों की सुरक्षा पर कोई भी ध्यान नहीं दिया जाता था। कोयला मजदूरों को कई कानून और सुविधाएं उनके पक्ष में मिले लेकिन अब यह सरकार पुन: कोयला उद्योग (Coal industry)को निजी मालिकों के हाथ में सौपना चाहती है। किसानों को जमीन के बदले रोजगार देना बंद कर दिया गया है।(हि.स.)